जानें, शनि देव की अदभूत कहानी

सूर्य और छाया के मिलन से तीन बच्चों का जन्म हुआ द्य सूर्य छाया दोनों एक दूसरे पर संतुष्ट थे, छाया ने जिन तीन बच्चों को जन्म दिया वे है – मनु,शनि, पुत्री भद्रा हमारे जीवन में तेजपुंज तथा शक्तिशाली शनि का अदभुत महत्व है द्य वैसे शनि सौर जगत के नौ ग्रहों में से सातवां ग्रह हैय जिसे फलित ज्योतिष में अशुभ माना जाता है द्य आधुनिक खगोल शास्त्र के अनुसार शनि की धरती से दुरी लगभग नौ करोड मील है द्य इसका व्यास एक अरब बयालीस करोड साठ लाख किलोमीटर है तथा इसकी गुरुत्व शक्ति धरती से पंचानवे गुना अधिक है द्य शनि को सूरज की परिक्रमा करने पर उन्नीस वर्ष लगते है द्य अंतरिक्ष में शनि सधन नील आभा से खूबसूरत, बलवान, प्रभावी, दृष्टिगोचर है, जिसे 22 उपग्रह है। शनि का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी से अधिकतम है द्य अतः जब हम कोई भी विचार मन में लाते है, योजना बनाते है, तो वह प्रत्सावित अच्छी – बुरी योजना चुंबकीय आकर्षन से शनि तक पहुँचती है और अच्छे का परिणाम अच्छा जब की बुरे का बुरा परिणाम जल्द दे देती है द्य बुरे प्रभाव को फलज्योतिष में अशुभ माना गया है द्य लेकिन अच्छे का परिणाम अच्छा होता है अतः हम शनि को शत्रु नहीं मित्र समझे और बुरे कर्मो के लिए वह साडेसाती है, आफत है य शत्रु है। श्री शनैश्वर देवस्थान के अनुुसार शनिदेव की जन्म गाथा या उत्पति के संदर्भ में अलग – अलग कथा है। सबसे अधिक प्रचलित शनि उत्पति की गाथा स्कंध पुराण के काशीखण्ड में इस प्रकार प्रस्तुत सूर्यदेवता का ब्याह दक्ष कन्या संज्ञा के साथ हुआ। संज्ञा सूर्यदेवता का अत्याधिक तेज सह नहीं पाती थी द्य उन्हें लगता था की मुझे तपस्या करके अपने तेज को बढ़ाना होगा या तपोबल से सूर्य की अग्नि को कम करना होगाय लेकिन सूर्य के लिए वो पतिव्रता नारी थी द्य सूर्य के द्वारा संज्ञा के गर्भ से तीन संतानों का जन्म हुआ – . वैवस्वत मनु . यमराज . यमुना. संज्ञा बच्चों से बहुत प्यार करती थीय मगर सूर्य की तेजस्विता के कारण बहुत परेशान रहती थी द्य एक दिन संज्ञा ने सोचा कि सूर्य से अलग होकर मै अपने मायके जाकर घोर तपस्या करूंगीय और यदि विरोध हुआ तो कही दूर एकान्त में जाकर तप करना उचित रहेगा। संज्ञा ने तपोबल से अपने ही जैसी दिखने वाली छाया को जन्म दिया, जिसका नाम सुवर्णा रखा अतः संज्ञा की छाया सुवर्णा। छाया को अपने बच्चोँ की जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा कि आज से तुम नारी धर्म मेरे स्थान पर निभाओगी और बच्चों कि परवरिश भी करोगी द्य अगर कोई आपत्ति आ जाये तो मुझे बुला लेना मै दौडी चली आऊँगी, मगर एक बात याद रखना कि तुम छाया हो संज्ञा नहीं यह भेद कभी किसी को पता नहीं चलना चाहिए। संज्ञा छाया को अपनी जिम्मेदारी सौपकर अपने पीहर – मायके चली गयी द्य घर पहुँचकर पिताश्री को बताया कि मै सूर्य का तेज सहन नहीं कर सकती, अतः तप करने अपने पति से बिना कुछ कहे मायके आयी हूँ द्य सुनकर पिताने संज्ञा को बहुत डाटा कहा कि, बिन बुलाये बेटी यदि मायके में आए तो पिता व पुत्री को दोष लगता है द्य बेटी तुम जल्द अपने ससुराल सूर्य के पास लौट जाओ ,तब संज्ञा सोचने लगी कि यदि मै वापस लौटकर गई तो छाया को मैंने जो कार्यभार सौंपा है उसका क्या होगा ? छाया कहाँ जायेगी ? सोचकर संज्ञा ने भीषण, घनघोर जंगल में, ( जो उत्तर कुरुक्षेत्र में था ) शरण ले ली। अपनी खुबसूरती तथा यौवन को लेकर उसे जंगल में डर था अतः उसने बडवा – घोडी का रूप बना लिया कि कोई उसे पहचान न सके और तप करने लगी द्य धर सूर्य और छाया के मिलन से तीन बच्चों का जन्म हुआ द्य सूर्य छाया दोनों एक दूसरे पर संतुष्ट थे, सूर्य को कभी संदेह नहीं हुआ द्य छाया ने जिन तीन बच्चों को जन्म दिया वे है – . मनु .शनिदेव . पुत्री भद्रा ( तपती ) दूसरी कथा के अनुसार शनिदेव कि उत्पति महर्षि कश्यप के अभिभावकत्व में कश्यप यज्ञ से हुई । जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो शिव भक्तिनी छाया ने शिव कि इतनी तपस्या की कि उन्हें अपने खाने – पीने तक का ख्याल नहीं रहता था । अपने को इतना तपाया की गर्भ के बच्चे पर भी तप का परिणाम हुआ, और छाया के भूखे प्यासे धुप-गर्मी में तपन से गर्भ में ही शनि का रंग काला हो गया । जब शनि का जन्म हुआ तो सूर्यदेव शनि को काले रंग का देखकर हैरान हो गए । उन्हें छाया पर शक हुआ । उन्होंने छाया का अपमान कर डाला, कहा कि यह मेरा बेटा नहीं है। श्री शनिदेव के अन्दर जन्म से माँ कि तपस्या शक्ति का बल थाय उन्होंने देखा कि मेरे पिता, माँ का अपमान कर रहे है । उन्होने क्रूर दृष्टी से अपने पिता को देखा, तो पिता कि पूरी देह का रंग कालासा हो गया । घोडों की चाल रुक गयी । रथ आगे नहीं चल सका । सूर्यदेव परेशान होकर शिवजी को पुकारने लगे । शिवजी ने सूर्यदेव को सलाह बताई और कथन किया की आपके द्वारा नारी व पुत्र दोनों की बेज्जती हुई है इसलिए यह दोष लगा है । सूर्यदेव ने अपनी गलती की क्षमा मांगी और पुनश्च सुन्दर रूप एवं घोडों की गति प्राप्त की । तब से श्री शनिदेव पिता के विद्रोही और शिवाजी के भक्त तथा माता के प्रिय हो गए। हमारे जीवन में जन्म से लेकर, मृत्यु तक शनिदेव का प्रभुत्व है । जन्मते ही जातक के परिवार वालों की अभिलाषा होती है की हमारी राशि में या जन्म लेने वाले बच्चे की राशि में शनि कैसा है ? कौन से पाये पर बच्चे का जन्म हुआ है । प्रस्तुत पाये की पहचान की शनि के अच्छे – बुरे होने की पहचान जन्म से बतलाता है । अपने शरीर में लौह तत्व है, उस आयरन तत्व का स्वामी शनि है । शनि के कमजोर होने से, शनि के प्रकोप, शनि पीड़ा से वह आयरन तत्व शरीर में कम हो जाता है । आयरन की कमी से तमाम प्रकार की शारीरिक व्याधियों व्यक्ति को कमजोर करती है । आयरन है शरीर में तो बल है । आयरन के बिना शरीर की उर्जा समाप्त हो जाती है । शनि जिनका प्रबल है, उन्हें आयरन की हैरानी कभी नहीं होती है।

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