चिंता से दूरी है जरूरी

अकसर हमारे सामने कुछ ऐसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं, जिनकी वजह से हम चिंतित हो जाते हैं। यह हमारे मन की स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन समस्या तब आती है, जब कोई व्यक्ति छोटी-छोटी बातों को लेकर हमेशा चिंतित रहने लगे या किसी परेशानी का हल ढूंढ कर उससे बाहर निकलने के बजाय लगातार उसी के बारे में सोचता रहे। यह उसके लिए खतरे का संकेत है।

ज्यादा चिंतित रहने की आदत जीएडी
(जनरलाइज्ड एंग्जॉयटी डिसॉर्डर), ओसीडी (ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसॉर्डर) और फोबिया जैसी गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याओं को जन्म देती है। इसलिए जहां तक संभव हो चिंता को अपने आसपास फटकने नहीं देना चाहिए।

क्यों होता है ऐसा
अपनी इच्छा के अनुकूल कोई कार्य नहीं होने पर चिंतित होना स्वाभाविक है, पर छोटी-छोटी बातों के लिए हमेशा अनावश्यक रूप से चिंतित होना व्यक्ति को मानसिक रूप से सुस्त और निराशावादी बना देता है। आनुवंशिकता की वजह से भी कुछ लोगों को चिंतित रहने की आदत होती है। अगर घर में माता-पिता या परिवार के किसी अन्य सदस्य को चिंतित रहने की आदत हो तो बच्चे के व्यक्तित्व पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पडता है और उसमें भी चिंतित रहने की आदत विकसित हो जाती है। लगातार परेशानी भरे अनुभवों का सामना, आत्मविश्वास में कमी और जिम्मेदारियों का बढता दबाव भी चिंता का प्रमुख कारण है। इसके अलावा सिरोटोनिन हॉर्मोन की कमी की वजह से भी चिंता होती है।

ऐसे रहें चिंतामुक्त
– सबसे पहले शांत मन से विचार करें कि किन बातों की वजह से आपको ज्यादा चिंता होती है।
– अपनी चिंता की सही वजह जानने के बाद सकारात्मक ढंग से समस्या समाधान की ओर कदम बढाएं, पर उसी मुद्दे पर बहुत ज्यादा न सोचें।
– जहां तक संभव हो खुद को व्यस्त रखने की कोशिश करें।
– नियमित रूप से एक्सरसाइज, योगाभ्यास और मॉर्निग वॉक करें। इससे ब्रेन से एंडोर्फिस नामक हॉर्मोन का सिक्रीशन होता है, जो तनाव को दूर करने में सहायक होता है।
– कई बार हमारे सामने ऐसी स्थितियां आती हैं कि हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते। ऐसे में चिंतित होने के बजाय सही समय का इंतजार करें।
– खानपान की आदतों और जीवनशैली में बदलाव लाएं। जंक फूड, चाय-कॉफी, एल्कोहॉल और सिगरेट जैसी चीजें थोडे समय के लिए चिंता से राहत जरूर दिलाती हैं, लेकिन इनकी अधिक मात्रा मस्तिष्क की कार्यक्षमता घटती है।
– सकारात्मक सोच अपनाएं। अच्छी किताबें पढें और खुशमिजाज लोगों के साथ वक्त बिताएं।

धैर्य का साथ नहीं छोडती
मैं स्वभाव से बेहद आस्तिक हूं। जब कभी चिंता की वजह से मेरा मन तनावग्रस्त होता है तो मैं ईश्वर को याद करती हूं। इससे मेरी सारी चिंताएं दूर हो जाती हैं। मुझे ऐसा लगता है कि जिन बातों पर हमारा वश नहीं होता, उनके बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहिए। चिंता तन और मन दोनों के लिए नुकसानदेह है। मुझे ऐसा लगता है कि वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता। इसीलिए मुश्किल स्थितियों में भी मैं धैर्य का साथ कभी नहीं छोडती।

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