भारत से मित्रता निभाने को इजराइल तोड़ता रहा कई प्रोटोकॉल

भारत-इजराइल संबंध आज आसमान की ऊँचाइयों से भी ऊपर हैं, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन दिवसीय यात्रा ने कई दृष्टियों से अभूतपूर्व बना दिया है। सच में, स्वतंत्र भारत के किसी भारतीय प्रधानमंत्री की प्रथम इजराइल यात्रा में 70 वर्षों की प्रतीक्षा और 25 वर्षों के राजनयिक संबंधों की वर्षगाँठ का अभूतपूर्व रोमांच व उत्साह स्पष्टतः देखा जा सकता है। यही कारण है कि यात्रा के कुछ दिन पूर्व जहाँ ट्वीटर पर बेंजामिन नेतन्याहू ने प्रधानमंत्री मोदी का महान प्रधानमंत्री बताया, वहीं इजरायली मीडिया में भी भारत की धूम मची रही। सख्त मिजाज वाले नेतन्याहू बहुत विरले ही प्रॉटोकॉल तोड़ते देखे जाते हैं, परंतु प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा के दौरान प्रॉटोकॉल टूटते ही रहे। प्रधानमंत्री मोदी के तेल अवीव में एयरपोर्ट से उतरने के 15 मिनट पूर्व ही इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अगवानी के लिए पहुंच गये। साथ ही एयरपोर्ट पर ही नेतन्याहू ने इस यात्रा को ऐतिहासिक एवं 4 जुलाई 2017 को ऐतिहासिक दिन बताया। वास्तव में 4 जुलाई 2017 वह ऐतिहासिक दिन बना जब प्रथम बार कोई भारतीय प्रधानमंत्री इजराइल की यात्रा पर पहुंचे। इस यात्रा में उत्साहपूर्ण अभूतपूर्व घटनाओं की कोई कमी नहीं है। इजराइल में प्रधानमंत्री मोदी का जिस तरह अभूतपूर्व स्वागत हुआ, वह इससे पूर्व केवल दो राष्ट्र प्रमुखों को ही प्राप्त हुआ- प्रथम अमेरिकी राष्ट्रपति एवं द्वितीय पॉप को।

इजराइली कूटनीति अपनी स्मार्टनेस के लिए प्रसिद्ध है, ऐसे में भारत के प्रति उनका यह अभूतपूर्व प्रेम जहाँ एक ओर भारत की वैश्विक शक्ति को प्रतिबिंबित करता है, वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक नेतृत्व की भूमिका को भी स्पष्ट करता है। यही कारण है कि भारतीय प्रधानमंत्री का स्वागत करने हेतु एयरपोर्ट पर ही 18 इजराइली कैबिनेट मंत्रियों के अतिरिक्त इजराइली सुरक्षा प्रतिष्ठान के भी सभी महत्वपूर्ण पदाधिकारी उपस्थित थे।
प्रधानमंत्री मोदी ने 48 घंटे की इजराइल यात्रा में 18 से ज्यादा कार्यक्रमों में भाग लिया और इन सभी कार्यक्रमों में इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू की गर्मजोशी वाली उपस्थिति बनी रही। प्रधानमंत्री मोदी जब बेंजामिन नेतन्याहू के साथ फूलों के फार्म “डैन” का दौरा कर रहे थे, तो सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि इजराइल ने अपने एक बेहद खास फूल का नाम प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर रखने की घोषणा की। इस यात्रा के दौरान इजराइली प्रधानमंत्री तो अपने प्रोटोकॉल भारतीय नेता के स्वागत में तोड़ते ही रहे, साथ ही इजराइली राष्ट्रपति रिवलिन ने भी प्रॉटोकॉल तोड़कर प्रधानमंत्री का स्वागत किया। इजराइली राष्ट्रपति रिवलिन से वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इजराइल को सच्चा दोस्त बताते हुए कहा कि आज हमारा रिश्ता “आई से आई” का है। जहाँ आई फॉर इंडिया व आई फॉर इजराइल है। स्वयं इजराइली राष्ट्रपति ने पिछले वर्ष के भारत यात्रा को स्मरण करते हुए उसे ऐतिहासिक बताया।
भारत-इजराइल शिखर वार्ता एवं समझौते
 इजराइल द्वारा भारत को दिए गए अति विशिष्ट महत्व को भारत-इजराइल शिखर वार्ता के उपरांत इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के एक भावुक वक्तव्य से भी समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा कि दोनों देशों के रिश्ते “वैवाहिक संबंधों” जैसे हैं, यह रिश्ता स्वर्ग में बनी शादी है, जिसे हम धरती पर क्रियान्वित कर रहे हैं। दोनों प्रधानमंत्रियों की मौजूदगी में जमीन से अंतरिक्ष तक सहयोग के 7 प्रमुख समझौते हुए हैं, जिसमें तीन अंतरिक्ष क्षेत्र को लेकर हैं। एक छोटे सैटेलाइट को लेकर है, दूसरा जीइओ ऑप्टिकल लिंक के लिए और तीसरा आणविक घड़ी में सहयोग के लिए। कृषि क्षेत्र में विकास के लिए आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए समझौता हुआ है। पेयजल और सफाई व्यवस्था तथा जल संरक्षण के क्षेत्र में भी सहयोग का निर्णय हुआ है। यूपी में क्लीन गंगा प्रोजेक्ट में भी मिलकर कार्य करने पर सहमति बनी है। इसके अतिरिक्त 259 करोड़ रुपए का औद्योगिक व प्रौद्योगिकी नवोन्मेष कोष बनेगा। आधी-आधी राशि दोनों देश देंगे।
आतंकवाद पर जबरदस्त प्रहार
 भारत और इजराइल आतंकवाद के खिलाफ मुहिम तेज करने के लिए एक दूसरे के सामरिक साझेदार हो गए हैं। इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा कि आतंकी संगठनों और उनके प्रायोजकों के खिलाफ कठोर कदम उठाने की जरूरत है। भारत और इजराइल दोनों आतंकवाद से पीड़ित हैं, इसलिए इजराइल भारत के इस दर्द को समझता है। इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी ने मुंबई बम धमाके में नरीमन हाउस के एक सर्वाइवर बच्चे मोशे व उसके परिवार वालों से मिलकर उस परिवार के दुख को साझा किया। ज्ञात हो 2008 के उस आतंकी हमले में मोशे के माता-पिता मारे गए थे। इस घटना से स्पष्ट होता है कि आतंकवादी हमलों में न केवल निर्दोष मारे जाते हैं, बल्कि वह मासूम बच्चों को भी अनाथ बना देता है।
वर्तमान वैश्विक संदर्भ में भारत इजराइल संबंधों के नवीन आयाम महत्वपूर्ण हो गए हैं। भारत और इजराइल कृषि क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र, अन्वेषण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष, जल प्रबंधन इत्यादि क्षेत्रों में परस्पर सहयोग द्वारा न केवल आपसी संबंधों को मजबूत करना चाहते हैं अपितु विश्व को भी परिवर्तित करना चाहते हैं। इजराइल ने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का भी समर्थन भी किया है। आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष एवं संकटकाल के सहयोगी के रूप में भी भारत-इजराइल संबंधों का महत्व है। दोनों देशों के संयुक्त बयान में स्टार्ट अप्स को भी उन क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया जिसमें द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाया जा सकेगा।
मध्यपूर्व में स्थित इजराइल तीन ओर से अरब राज्यों से घिरा है। 29 नवंबर 1947 को राष्ट्रसंघ ने फिलस्तीन का विभाजन करके एक भाग यहूदियों को दूसरा भाग अरबों को दे दिया। 15 मई 1948 को यहूदियों ने अपने भाग को इजराइल राज्य के नाम से घोषित किया। भारत ने इजराइल को सितंबर 1950 में मान्यता दी, लेकिन वहाँ कोई राजनयिक मिशन नहीं खोला। 29 जनवरी 1992 को भारत-इजराइल के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित हुए। भारत ने इजराइल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित कर पश्चिम एशिया में एक नये युग की सूत्रपात की। दोनों ही देश इस यात्रा में अभूतपूर्व रूप से राजनयिक संबंधों की 25वीं वर्षगाँठ काफी उमंगों के साथ मना रहे हैं।
इन 25 वर्षों में काफी कुछ बदला है, अब फिलस्तीन के समर्थन एवं इजराइल से संबंधों को विश्व समुदाय विरोधाभास के रूप में नहीं देखता। पहले की तरह अब दोनों देशों के नेता, रिश्तों की मजबूती के बारे में बात करने में झेपते नहीं हैं। यही कारण है कि रिवलिन ने 14 नवंबर को भारत आते ही कहा था कि हमारे रिश्तों में छिपाने लायक कुछ भी नहीं। इजराइली राष्ट्रपति रिवलिन ने कहा था कि भारत के साथ अपने संबंधों को लेकर इजराइल खुद को गौरवान्वित महसूस करता है।
मोदी ने एक परंपरा में किया बदलाव
 प्रधानमंत्री मोदी ने उस परंपरा को भी तोड़ा कि यात्रा से पूर्व भारतीय नेता पहले फिलस्तीन जाते थे, लेकिन मोदी फिलस्तीन की यात्रा पर नहीं गये। ऐसा नहीं है कि भारत ने फिलस्तीन के प्रति अपनी नीति में कोई बदलाव किया है। मई में ही फिलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने सफलतम भारत यात्रा की थी। जब 1992 में इजराइल से राजनयिक संबंधों की शुरुआत की गई थी, तब भी तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहाराव ने भारत यात्रा पर आए यासिर आराफात को विश्वास में लेकर उपरोक्त निर्णय लिया था।
इजराइल के लोगों में भारत के प्रति एक विशेष निष्ठा देखी जा सकती है। वहाँ की कई सड़कों और गलियों के नाम रवीन्द्र नाथ टैगोर और नेहरु जी के नाम पर हैं। भारत ने यहूदियों को सदैव सम्मान देकर इजराइली लोगों के मन में यह उत्कृष्ट सम्मान प्राप्त किया है। प्रधानमंत्री की तीन दिवसीय यात्रा का व्यापक प्रभाव हुआ है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी की सफलतम अमेरिका यात्रा के बाद संपन्न इस इजराइली यात्रा ने चीन और पाकिस्तान की नींद उड़ा दी है, जिसके कारण चीन बौखलाहट में सीमा विवाद पर सैन्य धमकी तक दे रहा है। आतंकवाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता में भारत का शर्त रहित समर्थन इत्यादि भारत-इजराइल संबंधों के ऐसे चिरस्मरणीय भाग हैं जो भारतीय कूटनीति के सफलतम तत्वों को रेखांकित करते हैं। वास्तव में भारत-इजराइल की इस अटूट मित्रता ने विश्व राजनीति के कई समीकरणों को भी उलट-पुलट दिया है।
राहुल लाल
(लेखक कूटनीतिक मामलों के विश्लेषक हैं।)
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