लिबरल्स ने लगाई गुहार लिंग-भेद बिल में बदलाव को स्वीकारें सीनेट

औटवा। स्वदेशी महिलाओं और अनेक महिला गठबंधनों के भारी दबाव पर प्रधानमंत्री जस्टीन ट्रुडो द्वारा भारतीय अधिनियम के अंतर्गत लिंग-भेद विधान में संशोधन को सीनेट द्वारा स्वीकारने की अपील की गई हैं। लिबरल सरकार द्वारा एस-3 में बदलाव के लिए एक जागरुकता प्रचार अभियान चलाया गया जिसका आयोजन मूल सीनेटरस लिलीयन डायक और सांड्रा लवलेस-निकालस द्वारा किया गया। कैनेडा के अंतरराष्ट्रीय कार्यों के महिला गठबंधन ने भी इस बदलाव का समर्थन किया हैं, जिसमें अनेक महिला संस्थाओं का समर्थन पत्र भी शामिल किया गया हैं, सभी का मानना हैं कि भारतीय अधिनियम में लिंग-भेद की पूर्ण और अंतिम बदलाव होना चाहिए। इस पत्र में लिखा गया कि पारित एस-3 में कैनेडा सरकार द्वारा भारतीय अधिनियम का दोहराव किया गया हैं, इसमें कुछ भेद पूर्ण नीतियों को हटाया गया हैं जिससे लिंग-भेद नीति बदलाव आया हैं। यह भेद 1876 के पश्चात भारतीय अधिनियम में पहली बार किया गया, 2009 ब्रिटीश कोल्मबिया कोर्ट में आरंभ हुए केस के वादी शैरॉन मक्लेवर ने अपील की थी कि इसमें स्वदेशी महिलाओं को छोड़ रखा था उसे शामिल किया जाएं। उन्होंने आगे कहा कि पहले के भारतीय अधिनियम में स्वदेशी महिलाओं के लिए बहुत कठोर नियम लागू किए गए थे, पहले पुरुष के बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते थे और न ही अपने बच्चों का भविष्य सुधार सकते थे। गत जून में, एस-3 के बदलाव को पारित करते हुए 6 (1) (ए) सभी प्रकार से संशोधित को लागू किया गया इसके अनुसार सभी भारतीय महिलाओं को वे सभी अधिकार दिए गए जो भारतीय पुरुष को होते हैं। फिलहाल हाऊस ऑफ कॉमनस में सीनेट द्वारा इसे स्वीकार नहीं किया गया हैं और सरकार को कहा गया कि इसके लिए और अधिक साक्ष्य जुटाएं, जिससे इस संशोधन में और अधिक बदलाव आ सके। सेन डायक ने आगे कहा कि इस संदेश को लागू करना अत्यंत आवश्यक हैं, लेकिन अभी सीनेट ने इसे वापस लौटा दिया हैं।
You might also like

Comments are closed.