भले डॉक्टर जवाब दे दे लेकिन भक्तों के कष्ट हर लेती हैं दुधाखेड़ी माँ

भानपुरा। धरती के भगवान यानी डॉक्टर भी कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों के इलाज नहीं होने और जिंदगी के कुछ ही दिन बचने की बात बोल देते हैं, तब भी मरीज और उनके परिजन निराश नहीं होते हैं। जी हां, आस्था और विश्वास का सबसे बड़ा दरबार मंदसौर जिले में श्री दुधाखेड़ी मां के मंदिर परिसर में लगता है। यहां रोज हजारों की संख्या में मरीज और मरीजों के परिजन अपनी अर्जी लगाने आते हैं और गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीज कुछ ही दिनों में सेहतमंद होकर जाते हैं। पुजारी लक्ष्मीनारायण ने बताया कि यह मरीज के स्वस्थ्य होने का भरोसा ही नहीं मां के मंदिर का चमत्कार भी है। मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में भानपुरा से करीब 10 किमी दूरी पर श्री दुधाखेड़ी माता मंदिर है। यहां श्री केशर माताजी का चमत्कारिक मंदरि है, जिसमें माताजी अपने पांचमुख वाले स्वरूप में दिव्य दर्शन दे रही हैं। माताजी के मंदिर के चार द्वार हैं, माताजी कुंड के समान मंदिर में विराजमान हैं।

दिव्य ज्योति का आकर्षण
 मां की अतिप्राचीनतम प्रतिमा के सम्मुख दिव्य ज्योति प्रज्जवलित है, जो श्रद्धालुओं के लिए माँ का आशीर्वाद है। ज्योति मंदिर के गर्भगृह में प्रज्जवलित होती है। सुबह और शाम के समय मां की विशेष आरती और श्रृंगार होता है। इस समय बड़ी संख्या में भक्त दर्शनलाभ लेने पहुंचते हैं।
चमत्कार के बाद बलि प्रथा खत्म, मन्नत पूरी होते ही चढ़ाते हैं मुर्गे
 सदियों से आदिशक्ति रूपी दुधाखेड़ी मां के दरबार में मालवा, मेवाड़ व हाड़ोती अंचल के सुदूर गांवों के श्रद्धालु बड़ी आस्था के साथ पहुंचते हैं। बड़े-बड़े अस्पतालों के नामी डॉक्टरों के द्वारा मरीज को नहीं बचा पाने की बात कही जाती हैं, तो मरीज और उनके परिजन सीधे मां के दरबार में अर्जी लगाते हैं। कई तो बीमारी का पता लगते ही सीधे मां के दरबार में ही पहुंचते हैं। यहां खासतौर से लकवे की बीमारी से पीड़ित लोग स्वास्थ्य लाभ लेते देखे जा सकते हैं। यहाँ दैहिक, दैविक और भौतिक कष्ट भी दूर किए जाते हैं।
यहां पहले बलि प्रथा थी, लेकिन करीब 50 साल पहले बलि प्रथा के दौरान आकाशीय बिजली गिरने से मवेशी बच गए। चमत्कार के बाद यहां हमेशा से बलि प्रथा खत्म हो गई। इसके बाद यहां मुर्गा और बकरा चिह्न अंकित चांदी के सिक्के मन्नत पूरी होने के बाद चढ़ाए जाते हैं। यहां जब से बलि प्रथा खत्म हुई है, तब से श्रद्धालुओं की संख्या में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है।
दूध की धारा से प्रकट हुई थीं दुधाखेड़ी माताजी
 आज जिस जगह माताजी का मंदिर है, वहां सदियों पहले वन क्षेत्र हुआ करता था। उस वक्त उस वन में एक लक्कड़हारा वन में पेड़ काटने पहुंचा, यहां माँ अपने दिव्य स्वरूप में आईं। लक्कड़हारा को एक स्त्री की आवाज सुनाई दी, जिसमें माँ ने कहा, हरे वन काटना भयंकर पाप है। एक वन काटना मतलब 35 लाख इंसानों को मारने के बराबर होता है। उसी वक्त लक्कड़हारे ने पेड़ काटना बंद कर दिए और लौट गया। उसे पश्चिम क्षेत्र में एक वृद्धा आती नजर आईं और वहां वन से दूध की धारा बहने लगी। उस वृद्धा ने कहा, बेटा पेड़ों का पूजन करना चाहिए। लक्कड़हारे ने कहा, माताजी आज से वन नहीं काटूंगा, इतना सुन माँ वहां से गायब हो गईं। दूध की धारा देखने आसपास के लोगों का जमवाड़ा लग गया। दूर-दूर से लोग दूधाखेड़ी माँ के दर्शन के लिए आने लगे और ऐसे यहां माँ की मूर्ति स्थापित की गई और मंदिर बनवाया गया। इसके बाद माँ पंचमुखी प्रतिमा के रूप में दर्शन देने लगीं, जिस जगह दूध की धारा बह रही थी, आज वहां माँ की प्रतिमा स्थापित है और कुंड बना हुआ है।
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