सोनिया गाँधी का युग समाप्त, कांग्रेस में अब राहुल का ‘राज’

आज से कांग्रेस पार्टी में सोनिया युग की औपचारिक समाप्ति हो गयी। अब राहुल राज शुरू हो गया। इसी के साथ राहुल की चिंताओं से भी पार्टी और देश दोनों रूबरू हुए। अपने अब तक के राजनीतिक अनुभव और दृष्टि को राहुल ने सलीके से सभी के सामने तो रखा ही साथ ही पार्टी के कार्यकर्ताओं को भाजपा जैसी पार्टी से जूझने का सन्देश भी दिया। उनके सामने चुनौतियों का जो पहाड़ है उसका एहसास उन्हें है, इस बात को उन्होंने सभी तक सलीके से पहुंचा भी दिया। राहुल की ताजपोशी के अवसर पर श्रीमती सोनिया गाँधी का सम्बोधन भी बहुत मायने रखता है। सोनिया ने भी अपने सन्देश में कई बातें कहीं जिनका प्रभाव आने वाले दिनों में अवश्य दिखेगा।

कांग्रेस पार्टी के 132 साल का सफर
कांग्रेस को 132 साल हो गए। गुलाम भारत में जब रिटायर्ड ब्रिटिश अधिकारी एलन ओक्टावियन ह्यूम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन किया तो यह करोड़ों भारतीयों के लिए अंग्रेजों से आजादी की मांग के मुखपत्र की तरह थी। तब लोग इस संगठन से जुड़ते गए और आजादी की मांग बड़ी और धारदार होती गई। तब इसमें सब कुछ लोकतांत्रिक था। हर साल संगठन की देश के अलग-अलग शहरों में बैठक होती थी और पार्टी का एक राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना जाता था। पार्टी के नव-निर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी के परनाना जवाहरलाल नेहरू और उनके पिता मोतीलाल नेहरू भी इसके अध्यक्ष बने थे। इस पार्टी में वंशवाद की राजनीति का बीज तब पड़ा, जब मोतीलाल नेहरू ने अपने पुत्र जवाहरलाल नेहरू को पार्टी का अध्यक्ष बनाने के लिए महात्मा गांधी को एक सिफारिशी पत्र लिखा। उसके बाद तो पार्टी और नेहरू परिवार एक दूसरे के पर्याय होते चले गए।
एक तिहाई समय तक गाँधी-नेहरू परिवार
यह सत्य है कि कांग्रेस पार्टी की कुल उम्र के करीब एक तिहाई समय तक इसकी अध्यक्षता नेहरू-गाँधी परिवार के पास ही रही। जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा और यहां तक कि राजीव गांधी के काल तक परिवार के नेतृत्व को किसी प्रकार की चुनौती नहीं मिली। बहुत बाद में यदि मिली भी तो उसे पार्टीजनों का ही बहुत साथ नहीं मिला। बाहर से देखने वालों को कभी लगा कि वंशवादी राजनीति पार्टी को नुकसान पहुंचा रही है तो कभी लगा कि नेहरू-गांधी परिवार ही पार्टी को एक सूत्र में जोड़े रख सकता है। ऐसे में वंशवाद के बूते ही पूरे भारत के चलने का अमेरिका में पिछले दिनों सनसनीखेज बयान देने वाले 47 वर्षीय राहुल गांधी अब खानदान की विरासत का ताज पहन रहे हैं।
राहुल के सामने चुनौतियों का पहाड़
 इस परिवार से अब तक बने अध्यक्षों ने पार्टी और संगठन को आगे बढ़ाया है। अब राहुल गाँधी  से भी ऐसी ही उम्मीदें हैं, लेकिन उनके समक्ष वर्त्तमान चुनौतियां पहाड़ की मानिंद हैं। उत्तर भारत समेत ज्यादातर बड़े राज्यों से सत्ता से बेदखल हो चुकी कांग्रेस पर सांगठनिक पकड़ के साथ-साथ सत्ता की राजनीति का संतुलन साधने जैसी चुनौतियों से मुकाबला करने में राहुल के कौशल की कठिन परीक्षा होगी। अभी गुजरात और हिमांचल के परिणाम भी बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रहे हैं। राहुल गाँधी अपने परिवार से छठे और कांग्रेस पार्टी के 49वें अध्यक्ष हैं। 1885 में गठन के बाद करीब 132 साल पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी पर चार दशक से ज्यादा नेहरू-गांधी परिवार की पकड़ रही है। इन 132 साल में से 43 साल तक इस पार्टी का अध्यक्ष इसी परिवार से रहा है।
प्रथम अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू
 मोतीलाल नेहरू ऐसे व्यक्ति हैं जो नेहरू-गांधी परिवार से कांग्रेस के पहले अध्यक्ष हुए। वर्ष 1919 में जब ये अध्यक्ष बने तब इस पद का कार्यकाल एक साल का हुआ करता था। दूसरी बार 1928 में अध्यक्ष की कुर्सी संभाली। इसके बाद मोतीलाल के बेटे जवाहर लाल ने पार्टी की कमान 1929 में संभाली। वह दो साल तक लगातार पद पर बने रहे। दूसरी बार 1936 में वह अध्यक्ष बने और अगले साल यानी 37 तक कुर्सी पर रहे। आजादी के बाद 1947 में ये देश के पहले प्रधानमंत्री बने। आजाद भारत में बाद में 14 साल के अंतर के बाद चौथी बार ये पार्टी के अध्यक्ष पद पर 1951 में काबिज हुए और 1954 तक लगातार इसे बरकरार रखा। जवाहरलाल की पुत्री और मोतीलाल की पौत्री इंदिरा गांधी थोड़े समय के लिए 1959 में पार्टी की अध्यक्ष बनीं। इसके बीस साल बाद 1978 में वह दोबारा अध्यक्ष बनीं और 31 अक्टूबर, 1984 तक अध्यक्ष पद पर रहीं। श्रीमती इंदिरा गांधी की मौत के बाद उनके बेटे राजीव गांधी ने पार्टी की कमान संभाली। इससे पहले वह पार्टी के महासचिव थे। वर्ष 1991 में एक आत्मघाती हमले में मारे जाने तक वह कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।
सोनिया ने 1997 में ली थी सदस्यता
 पति की मौत के बाद लगातार दबावों के बावजूद श्रीमती सोनिया गाँधी ने अध्यक्ष पद को नहीं ग्रहण किया। विदेशी मसले के मद्देनजर वे लगातार इस पद को ठुकराती रहीं। अंतत: 1997 में कोलकाता में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ली। मार्च, 1998 को सोनिया कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं। तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी की जगह सोनिया को पार्टी की मुखिया बनाने के लिए कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने अपनी विशेष शक्ति का इस्तेमाल किया। इसी वर्ष 6 अप्रैल, 1998 को आल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने इसका अनुमोदन किया। यहाँ उल्लेख करना आवश्यक है कि 15 मई, 1999 को लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी के वरिष्ठ नेताओं शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर द्वारा विदेशी मूल मसले पर उनकी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को चुनौती देने पर सोनिया ने पद से इस्तीफा दे दिया। तब 20 मई, 1999 को इन तीनों नेताओं को कांग्रेस वर्किंग कमेटी से छह साल के लिए बाहर कर दिया गया। इसके बाद ही उन्होंने अपना इस्तीफा वापस लिया। बीते नौ दिसंबर को सोनिया गांधी ने अपने जीवन के 71 साल पूरे किए। सोनिया गाँधी ने लगातार 19 साल से अधिक समय तक पार्टी की अध्यक्ष बने रहने का रिकॉर्ड भी बनाया। अगर 14 मार्च 2018 तक वह पद पर बनी रहतीं तो लगातार 20 साल तक अध्यक्ष का रिकॉर्ड बनता। अब 47 साल की उम्र में पार्टी के अध्यक्ष बनने वाले ये गांधी-नेहरू खानदान के छठे सदस्य हैं।
कांग्रेस के गठन का उद्देश्य
 पराधीन भारत में ब्रिटिश सरकार के सेवानिवृत्त लोक सेवा अधिकारी एलन ओक्टावियन ह्यूम ने 28 दिसंबर, 1885 को कांग्रेस की स्थापना की। 28 दिसंबर से 31 दिसंबर तक बंबई में इसका पहला सत्र आयोजित किया गया। कलकत्ता विश्वविद्यालय को लिखे अपने पत्र में उन्होंने एक ऐसी संस्था बनाने का विचार रखा था जो भारतीय हितों का प्रतिनिधित्व कर सके। उनका उद्देश्य था कि इस संस्था के जरिए पढ़े लिखे सभ्रांत भारतीयों की सरकार में भागीदारी बढ़ाई जा सके। साथ ही भारतीय जनता और अंग्रेजी हुकूमत के बीच राजनीतिक व सामाजिक चर्चाएं करने का मंच तैयार हो सके। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत और भारतीय जनता के बीच एक संवाद स्थापित करने के उद्देश्य के साथ इस संस्था को खड़ा करने की पहल की और मार्च, 1885 में एक नोटिस जारी किया जिसके मुताबिक भारतीय राष्ट्रीय संघ की पहली बैठक दिसंबर में पूना में आयोजित की जानी थी। बाद में पूना में हैजा फैलने के बाद यह बैठक बंबई में रखी गई। ह्यूम ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डफरिन से अनुमति लेकर पहली बैठक का आयोजन कराया और वोमेश चंद्र बनर्जी कांग्रेस के पहले चुने हुए अध्यक्ष बने।
कांग्रेस पार्टी और इसके अध्यक्ष
 इस 132 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी में अब तक कुल 86 लोग अध्यक्ष रह चुके हैं। 87वां नंबर राहुल गांधी का है। इसमें कुछ लोग ऐसे हैं जो एक से अधिक बार भी पार्टी के अध्यक्ष बने। देश के स्वतंत्र होने के बाद अब तक 15 लोगों ने कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षता की है। इस 70 साल में से 43 साल पार्टी की कमान नेहरू-गांधी परिवार के चार सदस्यों ने संभाली। जवाहर लाल नेहरू तीन साल अध्यक्ष रहे। श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने 8-8 साल के लिए पार्टी की कमान संभाली। श्रीमती सोनिया गांधी रिकार्ड 19 साल तक कांग्रेस की अध्यक्ष रही हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू सहित इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिंह राव कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं जो देश प्रधानमंत्री भी बने।
विदेश मूल के पांच अध्यक्ष 
 इस पार्टी का इतिहास थोड़ा अलग है। करीब एक दशक पहले सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने की बहस छिड़ी थी लेकिन उनसे पहले विदेशी मूल के पांच लोग पार्टी अध्यक्ष रह चुके हैं। उनका जन्म भारत में नहीं हुआ था। हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य अल्फ्रेड वेब, इंडियन सिविल सर्विस के पूर्व सदस्य सर विलियम व्याडरबर्न, सर हेनरी कॉटन, आइसीएस अधिकारी एनी बेसेंट और स्कॉटिश व्यापारी जॉर्ज यूल के नाम इनमें शामिल हैं। कांग्रेस ऐसी पार्टी है जिसमें हिन्दू महासभा के प्रमुख नेता मदनमोहन मालवीय भी इसके अध्यक्ष रहे हैं तो दूसरी तरफ कई जननायकों ने भी इसकी कमान सम्हाली है। लेकिन उनमें कोई लंबा कार्यकाल नहीं पा सका। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, नेता जी सुभाष चंद्र बोस, मौलाना अबुल कलाम आजाद और सरोजिनी नायडू भी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। प्रसिद्ध पत्रकार, न्यायविद और राजनेता वोमेश चंद्र बनर्जी दिसंबर 1885 में मुंबई में आयोजित कांग्रेस के पहले सत्र के अध्यक्ष थे। उनके बाद अध्यक्षता करने वालों में दादाभाई नौरोजी दूसरे थे। हिंदू महासभा के मुख्य नेताओं में से एक महामना मदन मोहन मालवीय ने भी कांग्रेस की अध्यक्षता की। बी. पट्टाभि सीतारमैया, पुरुषोत्तम दास टंडन, यूएन खीर, एन. संजीव रेड्डी, के. कामराज, एस. निजलिंगप्पा, बाबू जगजीवन राम, डॉ. शंकर दयाल शर्मा, डीके बरुआ, पीवी नरसिंह राव और सीताराम केसरी भी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। अब कमान राहुल के हाथ है। देखना है राहुल कितना करिश्मा दिखा पाते हैं।
– संजय तिवारी
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