भगवान दत्तात्रेय के चमत्कारी मंदिर में पूरी होती है भक्तों की हर मनोकामना

हिंदू धर्म में भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेव, ब्रह्म, विष्णु और महेश का एकरुप माना गया है। मान्यताओं के अनुसार श्री दत्तात्रेय भगवान विष्णु के छठवें अवतार हैं। भगवान दत्तात्रेय की जयंती मार्गशीर्ष माह में मनाई जाती है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में ब्रह्मपुरी स्थित श्री दत्तात्रेय भगवान का मंदिर है। मंदिर के पुजारी माधेश्वर प्रसाद पाठक ने बताया कि यह मंदिर मनोकामना पूर्ति करने वाला माना जाता है। यहां भगवान भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं। मराठी समुदाय सहित अन्य समुदायों एवं वर्गों में भगवान दत्तात्रेय के भक्त बहुत बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, ऐसे बहुत से श्रद्धालु हैं, जो भगवान दत्तात्रेय के संदर्भ में कोई जानकारी नहीं रखते फिर भी उनकी प्रतिमा या तस्वीरों को बेहद कोतूहल एवं आश्चर्य से निहारते हैं। तीन सिर, छह हाथों वाले इस अवतारी पुरुष के बारे में आइए जानते हैं…

 भगवान श्री दत्तात्रेय के अवतार की कथा
 अवतारी पुरुष एवं साधु-संतों की इस पावन धरा में ऐसे असीमित रहस्यमयी व्यक्तित्व भी हुए हैं, जो सदियों बाद आज भी अपने प्रभाव से हमें आशीर्वाद देते हैं, मनोबल बढ़ाते हैं, धर्म व आस्था के मार्ग में बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। अत्री मुनि की पत्नी मां अनुसूइया भारतीय धर्मग्रंथों में एक आदर्श पतिव्रता स्त्री के उदाहरण स्वरूप सदियों पहले से ही जानी जाती हैं। उस काल में भी मां अनुसुइया की ख्याति इसी रुप में दूर-दूर तक फैली हुई थी, भगवान विष्णु की पत्नी मां लक्ष्मी, भगवान शिवशंकर की पत्नी मां पार्वती एवं भगवान ब्रह्मा की पत्नी मां ब्रह्माणी, मां अनुसुइया के प्रति अपने मन की ईर्ष्या से प्रभावित तीनों देवियों ने अपने पतियों से मां अनुसुइया की परीक्षा लेने की जिद की। आखिरकार भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपनी पत्नियों की जिद को देखते हुए मां अनुसुइया की परीक्षा लेने की ठान ली और तीनों ब्राह्मणों का वेश धारण करके अत्री मुनि की कुटिया में भिक्षा मांगने पहुंचे। तीनों ब्राह्मणों ने भिक्षा मांगने का जो समय सुनिश्चित किया था वह जान बुझकर ऐसा था कि उस समय अत्री मुनि अपनी कुटिया में न हों।
मां अनुसुइया ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश से पति के आने तक रुकने का आग्रह किया। लेकिन उन्होंने शीघ्र भीख देने के लिए कहा। मां अनुसुइया कुटिया के भीतर से तीनों ब्राह्मणों के लिए भीख लाईं लेकिन तीनों ने शर्त रखी कि उन्हें (मां अनुसुइया) नि:वस्त्र होकर भिक्षा देनी होगी। यह बात सुनते ही मां अनुसुइया दुविधा में पड़ गईं और मां अनुसुइया हाथ जोड़कर भगवान की प्रार्थना करने लगीं। देखते ही देखते सामने खड़े तीनों ब्राह्मण दुध मुंहे बच्चे बन गए और मां अनुसुइया ने अपनी गोद में उठाकर उन्हें अपना दूध पिलाया। इस तरह मां अनुसुइया का नारीत्व की रक्षा भी हो गई। और तीनों ब्राह्मणों को खाली हाथ लौटाने के पाप से भी बच गईं।
 सृष्टि के रचयिता अब छोटे बच्चों के रुप में अत्री मुनि की कुटिया में रहने लगे, अत्री मुनि और मां अनुसुइया ने अब उन्हें गोद ले लिया था। इधर तीनों देवताओं की पत्नियां वक्त बीतने पर विचलित हो रही थीं। उन्हें मां अनुसुइया से क्षमा याचना कर अपने पति को वापस मांगना पड़ा, जिससे ब्रह्माण्ड का संतुलन बना रहे। मां अनुसुइया ने तीनों के पति लौटा दिए और यह आशीर्वाद लिया कि तीनों उनके बच्चों के रुप में भी हमेशा उनके पास रहें।
 इसी तरह भगवान शिव के रुप में ऋषि दुर्वासा का जन्म हुआ, भगवान ब्रह्म के रुप में चंद्र का जन्म हुआ और भगवान विष्णु के प्रत्यक्ष रुप में भगवान दत्तात्रेय ने इस सृष्टि में जन्म लिया, इस तरह भगवान दत्तात्रेय में ब्रह्मा, विष्णु, महेश का सम्मिश्रण देखने एवं महसूस करने को मिलता है।
ऐसा है भगवान दत्तात्रेय का स्वरुप
 भगवान दत्तात्रेय के छह हाथों में त्रिशूल, डमरु, शंख चक्र, कमंडल एवं जपमाला है। भगवान दत्त्तात्रेय की व्याख्या में स्पष्ट किया गया है कि त्रिशूल अहम को मारता है, डमरु आत्मा को जगाता है, शंख ओमकार का जरिया है, चक्र ब्रह्माण्ड की तरह है, जिसकी कोई शुरुआत नहीं है और जिसका कोई अंत नहीं है, वह सदैव अस्थिर है, जाप माला आत्मा को मुक्त करती है। कमंडल में बुद्धिमानी का शहद है, इस तरह भगवान दत्तात्रेय अपने भक्तों को अंतहीन जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त करते हैं। भगवान दत्तात्रेय के इर्द-गिर्द चार कुत्ते चार वेद हैं। भगवान के बाजू में खड़ी गाय कामधेनू है वह भक्तों की धार्मिक इच्छा पूरी करती हैं। भगवान औडुम्बर (डुमर) वृक्ष के सामने खड़ रहते हैं यह स्वर्गिक इच्छा प्रदान करता है। भगवान हमेशा इस वृक्ष के नीचे निवास करते हैं।
– कमल सिंघी
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