इस बार नवरात्र में जरूर याद रखें ये शुभ मूहर्त, नवरात्र में कन्या भोजन से जुड़ी जरूरी बातें

maxresdefaultनौ साल बाद नवमी और दशमी तिथि का मिलन हो रहा है। इसके चलते लोगों में असमंजस बना हुआ है। वहीं, ज्योतिषियों का मानना है कि ऐसी स्थिति में नवमी पूजन और रावण दहन एक ही दिन होना चाहिए।

22 अक्तूबर 2004 के शारदीय नवरात्रों में भी यही स्थिति थी। अब नौ साल बाद 13 अक्तूबर को फिर से नवमी का दशमी में मिलन हो रहा है। 13 अक्तूबर को दिन में एक बजकर सात मिनट तक नवमी तिथि रहेगी। इसी समय से दशमी तिथि की शुरुआत हो जाएगी, जो 14 अक्तूबर को सुबह 11 बजकर पांच मिनट तक रहेगी।

श्रवण नक्षत्र का योग
श्रवण नक्षत्र का योग बनने से विजया-दशमी शुभ मानी जाती है। 13 अक्तूबर को नवमी में दशमी तिथि का मेल और उदयकालीन श्रवण नक्षत्र का योग है। ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन अपराह्न काल में (1:12 बजे से 3:36 बजे तक) अपराजिता पूजन, आयुध पूजन करना सही रहेगा। शाम 6 बजे के बाद रावण दहन करना शुभ माना जा रहा है।

घट-स्थापना का शुभ मुहूर्त
5 अक्तूबर से शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो रही है। इस मौके पर सुबह कन्या और वृश्चिक लग्न में घट-स्थापना करना शुभ रहेगा। सुबह 4:52 बजे से 7:10 बजे तक कन्या लग्न रहेगा। सुबह 9:34 बजे से 11:53 बजे तक वृश्चिक लग्न रहेगा।

आचार्य भरत राम तिवारी का कहना है कि दोनों ही लग्न में घटस्थापना बेहद शुभ है। नवमी का कन्या पूजन और दशमी 13 अक्तूबर को ही मनाई जाए। डॉ. आचार्य सुशांत राज का कहना है कि तिथियों को लेकर लोगों में असमंजस है। 13 अक्तूबर को ही दशमी तिथि मनाई जानी शास्त्र-सम्मत है।

दुर्गा पूजा की तैयारी
दुर्गा-बाड़ी, बंगाली लाइब्रेरी, रायपुर सहित अन्य स्थानों पर बंगाली समुदाय ने दुर्गा पूजा की तैयारी शुरू कर दी है। देवी की प्रतिमाएं बनने लगी हैं। कोलकाता से आए कलाकार बंकिम चंद्र इन दिनों दुर्गा पूजा के लिए प्रतिमा तैयार कर रहे हैं। इस दौरान जगह-जगह सजे पंडालों में विशेष पूजा होगी और संग में धुन देंगे ढाकी। कोलकाता से यहां विशेष तौर पर ढाकी बुलाए गए हैं।

 

गुप्त नवरात्र में भगवती को मनाएं
गुप्त नवरात्र 7 धार्मिक ग्रंथों 7 रुद्रयामल तंत्र 7 नौ देवी 7 मंत्र
गुप्त नवरात्र आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा मंगलवार,9 जुलाई से प्रारम्भ होकर 17 जुलाई तक रहेंगे। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्र होते हैं। आषाढ़ एवं माघ शुक्ल पक्ष में गुप्त नवरात्र आते हैं।

गुप्त नवरात्र मनाने एवं इनकी साधना का विधान देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। मां दुर्गा जी इस सृष्टि की आदि शक्ति हैं। पितामह ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकर जी उन्हीं की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। अन्य देवता भी उन्हीं की शक्ति से शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं। मां दुर्गा जी के नौ रूप हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।

गुप्त नवरात्र में शिवा और शक्ति की सम्मिलित पूजा करने का विधान रुद्रयामल तंत्र और वाराहीतंत्र में वर्णित है। शिव-शक्ति की पूजा करने से वशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन, आकर्षण और मारण जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख समृद्धि प्राप्त होती है। मनोकामनाओं की सिद्धि प्राप्त करने का यह महान पर्व है।

इन दिनों मां भगवती की उपासना करने से जीवन धन-धान्य, राज्य सत्ता एवं ऐश्वर्य से भर जाता है। गुप्त नवरात्रों की प्रमुख देवी के स्वरूप का नाम सर्वेश्वर्यकारिणी देवी है। सर्व प्रथम गुप्त नवरात्रों की प्रमुख देवी सर्वेश्वर्यकारिणी माता को धूप, दीप, प्रसाद अर्पित करें। रुद्राक्ष की माला से प्रतिदिन ग्यारह माला ॐ श्रीं श्र्वैश्वर्याकारिणी देव्यै नमो नम:।’ मंत्र का जप करें। पेठे का भोग लगाएं।

नौ दिनों देवी की आराधना कर न सिर्फ शक्ति संचय किया जाता है वरन् नवग्रहों से जनित दोषों का शमन भी इस अवधि में सुगमता से किया जा सकता है। गुप्त नवरात्र में शक्ति पूजा से ग्रहजनित दुखों से मुक्ति मिलती है,जन्मकुंडली में स्थित अनिष्ट एवं कूर ग्रह शांत होकर शुभ फल प्रदान करते हैं। षष्टेश-अष्टमेश की दोष मुक्ति होकर स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

नवग्रह शांति के लिए
जन्म कुंडली में यदि नवग्रहों में से कोई भी ग्रह अनिष्ट फल दे रहा हो तो गुप्त नवरात्र में शक्ति उपासना करने से विशेष लाभ मिलता है। सूर्य ग्रह के कमजोर होने पर स्वास्थ्य लाभ के लिए शैल पुत्री की उपासना से लाभ मिलता है। चंद्रमा के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए कूष्मांडा देवी की आराधना करें। मंगल ग्रह के लिए स्कन्दमाता, बुध की शांति तथा अर्थव्यवस्था में वृद्धि के लिए कात्यायनी देवी, गुरु के लिए महागौरी, शुक्र के शुभत्व के लिए सिद्धिदात्री तथा शनि का दुष्प्रभाव दूर करने के लिए कालरात्रि की उपासना सार्थक रहती है।

राहु की शुभता के लिए ब्रह्मचारिणी की उपासना तथा केतु के विपरीत प्रभाव को दूर करने के लिए चंद्रघंटा देवी की साधना करनी चाहिए। जब किसी की जन्म पत्रिका उपलब्ध नहीं हो और जीवन में कुछ परेशानियां आ रही हों जैसे बार-बार दुर्घटनाएं होना, मानसिक परेशानी, किसी भी काम में बार-बार विफलता आना, संतान के विवाह में विलम्ब या अन्य कष्ट होना, पूजा पाठ में मन नहीं लगना, चित्त विकृति, धनाभाव, व्यापार में नुकसान, रोजगार की समस्या, भय, शारीरिक व्याधि, दाम्पत्य जीवन में क्लेश आदि समस्याओं के समाधान के लिए गुप्त नवरात्र में देवी की आराधना तथा यंत्र सहित मंत्र जप करें सफलता मिलेगी। नवरात्र के बाद यंत्र को घर में रखें। अपनी मनोकामना के अनुरूप देवी के किसी भी मंत्र का जप प्रतिदिन कर लें।

शिव और शक्ति की सम्मिलित पूजा
गुप्त नवरात्र में शिव और शक्ति की सम्मिलित पूजा सार्ध नवचंडी पाठ के रूप में की जाती है। वाराही और रुद्रयामल तंत्र में सम्पूर्ण फलदायी सार्ध नवचंडी पाठ का विधान बताते हुए कहा गया है कि जो इस पाठ को करता है वह भय से मुक्त होकर राज्य, श्री, सर्वविधि सम्पत्ति एवं सभी इच्छित कामनाओं को प्राप्त करता है। इस पाठ को करने से रोगों के कष्ट से मुक्ति मिलती है। यह अनुष्ठान गुप्त नवरात्र या अन्य किसी भी पर्व के दिन शुभ मुहूर्त में 11 ब्राह्मणों द्वारा एक ही दिन में पूरा किया जाता है।

इनमें से 9 ब्राह्मण दुर्गासप्तशती के पूर्ण पाठ, एक ब्राह्मण सप्तशती का अर्ध-पाठ और एक ब्राह्मण द्वारा षड़ांग रुद्राष्टाध्यायी का पाठ किया जाता है। अर्धपाठ का क्रम इस प्रकार है-मधुकैटभ-नाश, महिषासुर-विनाश, शुक्रादिस्तुति, देवीसूक्त, नारायणस्तुति, फलानुकीर्तन और वरप्रदान।

अर्थात दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय से प्रारम्भ करके चौथे अध्याय दशक्रादिस्तुति के श्लोक संख्या 27 यानी ‘रक्ष सर्वत’ तक, फिर पंचम अध्याय में प्रारम्भ से श्लोक संख्या 82 ‘भक्तिविनम्रमूर्तिभि’ तक, फिर ग्यारहवें अध्याय में प्रारम्भ से श्लोक संख्या 35 यानी ‘वरदा भव’ तक तथा अंत में 12वें और 13वें अध्याय का पूर्ण पाठ करें।

यह अर्धपाठ सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला कहा गया है। पाठ के पश्चात् हवन करें। इसमें सप्तशती के पूर्ण पाठ मंत्रों का हवन, श्रीसूक्त हवन तथा शिवमंत्र ‘रुद्र सूक्त’ का हवन भी अपेक्षित है। तदनंतर ब्राह्मण भोजन तथा बटुक एवं कुमारिकाओं को भोजन कराएं, दक्षिणा दें।

नवरात्र के सिद्ध चमत्कारिक मंत्र
मनुष्य ऐसा प्राणी है जो कभी तृप्त नहीं होता है। वर्तमान में मनुष्य ने अपने जीवन को इतनी आवश्यकताओं से घेर लिया है कि वह उनमें ही उलझा रहता है। ऐसे मनुष्यों के लिए समस्याओं को हल करने के लिए सरलतम मंत्र दे रहे हैं। जो नवरात्रि में करने से सफलता मिलती है एवं समस्या से छुटकारा मिलता है।

दुर्गा सप्तशती में श्लोक, अर्धश्लोक और उवाच मिलकर 700 मंत्र है। जो कि सारे जगत को अर्थ, काम, धर्म, मोक्ष प्रदान करते हैं। जो जिस कामना से श्रद्धा एवं विधि के साथ सप्तशती का परायण करता है। उसे उसी भावना और कामना के अनुसार निश्चय ही फल सिद्धि मिलती है।

पावन नौ दिनों के लिए ऐसे दिव्य मंत्र दिए जा रहे हैं, जिनके विधिवत परायण करने से स्वयं के नाना प्रकार के कार्य व सामूहिक रूप से दूसरों के कार्य पूर्ण होते हैं। इन मंत्रों को नौ दिनों में अवश्य जाप करें। इनसे यश, सुख, समृद्धि, पराक्रम, वैभव, बुद्धि, ज्ञान, सेहत, आयु, विद्या, धन, संपत्ति, ऐश्वर्य सभी की प्राप्ति होती है। विपत्तियों का नाश होगा।

1. विपत्ति-नाश के लिए :
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्पापहरे देव िनारायणि नमोस्तुते।।

2. भय नाश के लिए :
सर्वस्वरूपे सर्वेश सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि, दुर्गे देवि नमोस्तुते।।

3. पाप नाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिए :
नमेभ्य: सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

4. मोक्ष की प्राप्ति के लिए :
त्वं वैष्णवी शक्तिरन्तवीर्या।
विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भूवि मुक्ति हेतु:।।

5. हर प्रकार के कल्याण के लिए :
सर्वमंगल्यमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते।।

6. धन, पुत्रादि प्राप्ति के लिए :
सर्वबाधाविनिर्मुक्तो-धनधान्यसुतान्वित:
मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।

7. रक्षा पाने के लिए :
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खंडे न चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च।।

8. बाधा व शांति के लिए :
सर्वबाधाप्रमशन: त्रैलोक्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्धैरिविनाशनम्।।

9. सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिए :
पत्नी मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणी दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम।।

 

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