वेटिकन में लहराया तिरंगा, दो भारतीय संत घोषित

वेटिकन सिटी। पोप फ्रांसिस ने रविवार को एक विशेष समारोह में भारत के फादर कुरिआकोसी इलिआस चावारा और सिस्टर यूप्रासिआ को मरणोपरांत संत की उपाधि दी। छह साल पहले सिस्टर अलफोंसा संत की उपाधि पाने वाली पहली भारतीय महिला थीं।

वेटिकन के सेंट पीटर्स चौक में आयोजित एक विशेष प्रार्थना समारोह के दौरान पोप ने केरल के कैथोलिक पादरी चावारा और सिस्टर यूप्रासिआ के साथ चार अन्य को संत घोषित किया। इस सार्वजनिक समारोह में बड़ी संख्या में श्रद्धालु, बिशप, पादरी और नन जुटी थीं। इस पल का गवाह बनने के लिए केरल से बड़ी संख्या में ईसाई श्रद्धालु वेटिकन पहुंचे। भारत सरकार की ओर से भी एक दल आया है जिसका नेतृत्व राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन कर रहे हैं। जिन अन्य चार धर्मगुरुओं को संत की उपाधि दी गई है, उनमें इटली के गियोवन्नि एंटोनियो फरीन, लुडोविको दा कैसोरिया, निकोला दा लांगोबार्दी और अमाटो रोंकोनि शामिल हैं। एक लंबी प्रक्रिया के बाद पादरी चावारा और सिस्टर यूप्रासिआ को संत की उपाधि से नवाजा गया है।

फादर चावारा ने खोला था संस्कृत विद्यालय

वर्ष 1805 में अलपुझा जिले के एक साधारण परिवार में फादर चावारा का जन्म हुआ था। उनका निधन 1871 में हुआ। वह एक धर्मगुरु के साथ एक समाज सुधारक भी रहे। उन्होंने न सिर्फ कैथोलिक ईसाइयों बल्कि दूसरे समुदायों के वंचित तबकों की शिक्षा के लिए काफी काम किया। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने सबसे पहले एक संस्कृत विद्यालय की स्थापना की थी। फादर चावारा को संत घोषित करने की प्रक्रिया 1984 में शुरू हुई थी।

‘प्रेयरिंग मदर’ थीं सिस्टर यूप्रासिआ

त्रिचूर जिले में 1877 में सिस्टर यूप्रासिआ का जन्म हुआ। उनका निधन 1952 में हुआ था। वह जीवनभर त्रिचूर के आश्रम में ही रहीं। ‘प्रेयरिंग मदर’ के नाम से मशहूर सिस्टर यूप्रासिआ अपने पास आने वाले पीडि़तों को सांत्वना और जीवन के संबंध में सलाह देती थीं। उन्हें संत घोषित करने की प्रक्रिया 1987 में शुरू हुई थी।

केरल से अब तीन संत

इन दोनों को संत की उपाधि मिलने के बाद केरल की सदियों पुरानी मालाबार कैथोलिक चर्च के पास अब तीन संत हो गए हैं। इसके पहले 2008 में सबसे पहले सिस्टर अलफोंसा को यह उपाधि मिली थी।

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