मोदी-शरीफ की मीटिंग के लिए करना होगा इंतजार: सुषमा

काठमांडू। सार्क सम्मेलन शुरू होने के पहले मंगलवार को काठमांडू में विदेश मंत्रियों की बैठक हुई। बैठक संपन्न होने के बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ की मुलाकात को लेकर अभी और इंतजार करना होगा।

इस बीच पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहार सरताज अजीज ने इस मुद्दे पर टिप्पणी ही नहीं की। सार्क सम्मेलन से पहले यह कयास लगाए जा रहे हैं कि पीएम मोदी और पाक पीएम शरीफ की मुलाकात नेपाल में हो सकती है। लेकिन, इसे लेकर अभी तक किसी ओर से कोई भी स्पष्ट बयान नहीं आया है।

उल्लेखनीय है कि शपथ ग्रहण समारोह के साथ दक्षिण एशियाई साझेदारी पर प्राथमिकताएं दर्ज कराने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल की अर्धवार्षिकी भी न केवल सार्क नेताओं के साथ मनाएंगे बल्कि साझा मुनाफे के मंत्र भी गिनाएंगे। सदस्य देशों के आपसी विवादों के चलते अक्सर तय इरादों को हकीकत बनाने से चूकते रहे सार्क की कामयाबी को पीएम मोदी का जोर ऊर्जा और खासकर बिजली को सबकी जरूरत और सबके फायदे का करार बनाने पर होगा।

सूत्रों के मुताबिक नेपाल में बुधवार से शुरू हो रहे दो दिवसीय शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम अपने भाषण में उन मुद्दों पर अधिक जोर देंगे जहां आर्थिक मुनाफा मतभेदों पर भारी पड़ सकता है। ऊर्जा, सड़क और संचार संपर्क सुविधाओं में भारत अपनी क्षमताओं को साझा करने की पेशकश करेगा।

इनमें सबसे अहम है बिजली का क्षेत्र। भारतीय खेमा क्षेत्रीय पावर ग्रिड की योजना को जल्द से जल्द पूरा करने पर भी जोर देगा। उल्लेखनीय है कि इस संबंध में समझौते के लिए पूरी तैयारी भी हो चुकी है और शिखर सम्मेलन में रजामंदी की औपचारिकता के बाद इस पर दस्तखत संभव है।

इसके अलावा मोदी पड़ोसी देशों से अतिवादी हिंसा पर रोक लगाने व आतंकवाद को जरा भी सहन नहीं करने के मुद्दे पर सहयोग चाहेंगे।वह अपने भाषण में आतंकवाद का मिलकर मुकाबला करने का आह्वान करेंगे। महत्वपूर्ण है कि ऊर्जा की किल्लत के मद्देनजर इस मोर्चे पर पाकिस्तान भी भारत के साथ सहयोग को तैयार है।

पाक को वाघा सीमा के रास्ते बिजली देने को लेकर बातचीत चल रही है। भारत जहां भूटान-नेपाल जैसे पड़ोसी मुल्कों से बिजली लेना चाहता है। वहीं, एलपीजी गैस में उत्पादन क्षमता अन्य देशों के साथ साझा करने को तैयार है। रेल व सड़क संपर्क के मुद्दे पर भी पीएम का खासा जोर होगा।

मालूम हो, अपने शपथग्रहण को ‘लघु सार्क शिखर सम्मेलन’ की शक्ल देने के साथ मोदी ने इस बात पर जोर दिया था कि एक-दूसरे की क्षमता और अनुभवों को साझा किया जाए। गौरतलब है 28 साल पुराने दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन में सदस्य देशों के बीच कॉमन वीजा, एक मुद्रा, सुगम आवाजाही समेत अनेक सहयोग मुद्दों पर बातें तो हुईं पर अमल की रफ्तार बहुत धीमी है।

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