अंतहीन पीड़ा से मुक्त हो पंचतत्व में विलीन हुई अरुणा

ARUNA

मुंबई । 42 साल से अंतहीन पीड़ा से मुक्त हो आखिरकार अरुणा शानबाग का शरीर पंचतत्व में मिल गया। केईएम अस्पताल के डीन डॉक्टर अविनाश सुपे ने भोईवाड़ा शमशान घाट में अरुणा के शरीर को मुखाग्नि दी। इस दौरान अरुणा की देखभाल करने वाली नर्सें गमगीन थीं उनकी आंखों से लगातार आंसू निकल रहे थे। साथ ही अरुणा शानबाग अमर रहे के नारे लग रहे थे। अंतिम संस्कार के वक्त अरुणा के परिजन भी मौजूद थे।
गौरतलब है कि 42 साल कोमा में रहने के बाद सोमवार को अरुणा शानबाग का निधन हो गया। इससे पहले अस्पताल के डीन अविनाश सुपे द्वारा अरुणा के शव को परिजनों कोे सौंपने के एलान के बाद अस्पताल की नर्सों द्वारा जबरदस्त विरोध किया गया था। यही नहीं इस फैसले को वापस लेने के लिए नर्सों ने डीन के खिलाफ नारेबाजी की थी। नर्सों का कहना था कि जब उसे परिजनों के जरुरत थी जब कोई नहीं आया अब क्यों सुध ली है। नर्सों की बात मानते हुए अस्पताल प्रशासन की तरफ से ही अंतिम संस्कार की प्रक्रिया संपन्न की गई।
गौरतलब है कि अरुणा अस्पताल में रेप का शिकार होने के बाद से ही कोमा में थी। पिछले पांच दिनों से उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। 66 वर्षीय अरुणा पिछले 42 साल से जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रही थी।
किंग एडवर्ड मेमोरियल (केइएम) अस्पताल के डीन अविनाश सुपे ने बताया था कि वह निमोनिया से पीडि़त थी। पिछले वर्ष अरुणा को सप्ताह भर आइसीयू में रखने के बाद नगर निगम संचालित केइएम अस्पताल के नवीनीकृत कमरे में स्थानांतरित किया गया था। केइएम अस्पताल परेल में स्थित है। अस्पताल का स्टाफ ही उनकी देखभाल कर रहा था।
अरुणा पर 27 नवंबर 1973 को अस्पताल के एक सफाईकर्मी ने बेरहमी से हमला किया था और दुष्कर्म किया था। उन्हें इसका गहरा सदमा पहुंचा था और वे कोमा में चली गई थी। हादसे के 27 साल बाद सन् 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा की मित्र पिंकी बिरमानी की ओर से दायर इच्छामृत्यु याचिका को स्वीकारते हुए मेडिकल पैनल गठित करने का आदेश दिया था। हालांकि 7 मार्च 2011 को कोर्ट ने अपना फैसला बदल दिया था।

You might also like

Comments are closed.