ममता सरकार के कानून को हाई कोर्ट ने अवैध बताया
कोलकाता। कलकत्ता हाई कोर्ट में बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को सोमवार को फिर बड़ा झटका लगा। अदालत ने सोमवार को संसदीय सचिव नियुक्ति कानून को असंवैधानिक करार दिया है। ममता सरकार ने मंत्रियों का बोझ कम करने और विभिन्न विभागों में कार्य सुचारू रखने के लिए संसदीय सचिव नियुक्त कर नई परंपरा शुरू की थी। इसके लिए 2012 में विधानसभा के शीतकालीन सत्र में द वेस्ट बंगाल पार्लियामेंट्री सेक्रेटरीज (एप्वाइंटमेंट, सैलरीज, अलाउंसेज एंड मिस्लेनियस प्रोविजन) बिल-2012 पारित किया था। इस बिल के तहत संसदीय सचिवों को राज्यमंत्री के बराबर दर्जा व अन्य सुख-सुविधाएं दिए जाने का प्रावधान था। इस कानून को कलकत्ता हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लूर व न्यायमूर्ति असीम बनर्जी की खंडपीठ ने सोमवार को असंवैधानिक करार देते हुए तत्काल प्रभाव से संसदीय सचिवों के सभी पद निरस्त करने का फैसला सुनाया है। खंडपीठ ने सरकार द्वारा फैसले पर मांगा गया स्थगनादेश भी रद कर दिया है। फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है। ममता के चार वर्षो के शासनकाल में यह दूसरा मौका है, जब उनके द्वारा लागू किए कानून को हाई कोर्ट ने असंवैधानिक व अवैध करार दिया है। इससे पहले सिंगुर में किसानों को जमीन लौटाने के बिल को हाई कोर्ट ने अवैध बताया और मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। वर्तमान में संसदीय सचिवों की संख्या 23 है। अन्य राज्यों में भी रद हो चुका है कानून देश के अन्य कई राज्यों में भी संविधान की धारा 164(1)(ए) का उल्लंघन कर संसदीय सचिवों की नियुक्ति हुई थी। हिमाचल प्रदेश व गोवा में अदालत कानून को खारिज करने का फैसला सुना चुकी है। दिल्ली में भी अरविंद केजरीवाल सरकार द्वारा 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति का मामला कोर्ट में लंबित है। मणिपुर, मिजोरम, पंजाब, असम, राजस्थान में भी संसदीय सचिव नियुक्ति कानून लागू है, लेकिन अधिकतर राज्यों में इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। विरोधी दलों का कहना है कि ममता सरकार संविधान को ताक पर रखकर कानून बना रही है।
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