साउथ एशियनों में ह्दय रोगों के मामले तीन गुणा अधिक
टोरंटो,30 मई 2013 -कैनेडियन बेबी बूमर्स यानि 48 से 65 साल के कैनेडियनों के साथ ही इस आयु वर्ग के अन्य एशियन कैनेडियनों के भी अपने गोल्डन दौर में आनंद लेना चाहते हैं लेकिन उनका वर्तमान लाइफस्टाइल उन्हें अपने सपनों को सच करने में बाधा बन कर खड़ा है। हार्ट एंड स्ट्रोक फाउंडेशन की ताजा रिपोर्ट रिएल्टी चैक में हेल्थ एंड स्ट्रोक पर नई जानकारी दी गई है।
रिपोर्ट के अनुसार बेबी बूमर उम्र वाले साउथ एशियाई अपने आखिरी सालों में बीमारी, अपंगता और कई अन्य मुश्किलों से दोचार होंगे। मूल कैनेडियन अधिक लंबी उम्र जीते हैं जबकि साएथ एशियनों की औसत उम्र उनसे 10 साल तक कम रह रही है। इसका मुख्य कारण साउथ एशियनों में दिल के रोगों की अधिकतम मौजदूगी, जिसके चलते वे तेजी से मौत की तरफ बढ़ते हैं।
साउथ एशियनों को अक्सर हार्ट डिजीज, स्ट्रोक और अन्य गंभीर रोग देखे जा रहे हैं। इस उम्र के अधिकांश लोग फल सब्जियां काफी कम खा रहे हैं और 40 प्रतिशत से अधिक कोई शारीरिक गतिविधि भी नहीं करते हैं। अक्सर लोग तनाव भी महसूस करते हैं, जिससे उनमें ह्दय रोगों का प्रसार तेजी से होता है। वे लगातार अपने अंदाज में ही जिंदगी जीने में विश्वास रखते हैं।
करीब 74 प्रतिशत लोगों को पता ही नहीं है कि वे कैसे अपने ह्दय रोगों का जोखिम कम कर सकते हैं और लाइफस्टाइल बदलावों से ही स्ट्रोक का जोखिम 80 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। साउथ एशियनों के लिए ये जोखिम लगातार बढ़ रहा है।
मैकमास्टर यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर ऑफ मेडिसन और चेयरपर्सन ऑफ पापुलेशन हेल्थ, माइकल जी.डीग्रूट हार्ट एंड स्ट्रोक फाउंडेशन ऑफ इंडिया, डॉ.सोनिया आनंद का कहना है कि कैनेडियन और यूरोपियनों के मुकाबले साउथ एशियनों में मधुमेह और हार्ट के रोगों को काफी अधिक देखा जा रहा है। ये मामले उन लोगों में भी देखे जा रहे हैं, जिनका वजन अधिक नहीं है। ऐसे में ये महत्वपूर्ण है कि ऐसे प्रभावी स्वास्थ्य प्रमोशन कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाए जो कि उन्हें एक बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करने में सक्षम हों और इस प्रकार का जोखिम कम कर सकें।
हालांकि सभी मूल की महिलाओं में हद्य रोग अधिक बढ़ रहे हैं लेकिन साउथ एशियाई महिलाओं में ये सबसे अधिक देखा गया है। उनमें इस रोग के लक्ष्ण काफी छोटी उम्र में ही देखे जा रहे हैं। ऐसे में महिलाओं की तरफ भी इन रोगों से सुरक्षा के लिए विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
वहीं साउथ एशियनों में मधुमेह यानि शुगर, मोटापा आदि के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। उनके पेट के आसपास फैट का जमाव काफी अधिक पाया गया है और वे इस पर नियंत्रण भी नहीं रख पा रहे हैं। उनके लिए अभी से जागृत होना जरूरी है, नहीं तो उनके जीन आगे भी ऐसे ही ट्रांसफर होते रहेंगे।
स्टडी के अनुसार शारीरिक गतिविधि कम करने, स्मोकिंग, खराब खुराक और शराब का अधिक सेवन भी उन्हें इस रोग के दायरे में ला रहा है। शारीरिक तौर पर कुछ ना करते हुए वे अपनी जिंदगी के चार साल कम कर रहे हैं। वहीं वे बच्चों आदि के साथ खेलकर, बस या सबवे में पैदल चल कर शारीरिक गतिविधियों को बढ़ा सकते हैं। वहीं तनाव कम कर भी वे अपने हार्ट को बेहतर बना सकते हैं।
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