भक्ति-शक्ति और विजयश्री के दाता हैं रेणुकानंदन परशुराम
भगवान विष्णु के छठे अवतार रेणुकानंदन भगवान परशुराम का जन्म वैशाख मास की शुक्लपक्ष की तृतीया को महर्षि जमदग्रि व माता रेणुका के घर में हुआ। विलक्षण बुद्धि, चेहरे पर अद्भुत तेज व अत्यंत बलशाली परशुराम के बचपन का नाम राम था, त्रिलोकीनाथ नीलकंठधारी भगवान भोलेनाथ ने अपने परमप्रिय राम को युद्ध की कलाओं में निपुण करने के उपरांत ‘परशा’ धारण करवाते हुए ‘परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे’ मंत्र पर पूर्ण उतरते हुए धर्म की रक्षा का आशीर्वाद प्रदान किया।
भगवान शिव द्वारा मिले ‘परशे’ को धारण कर राम से परशुराम हुए प्रभु ने 21 बार सम्पूर्ण धरती से क्रूर राजाओं का नाश करते हुए न केवल धर्मध्वजा व विजय पताका फहराई अपितु सम्पूर्ण धरती को दक्षिणास्वरूप महर्षि कश्यप को प्रदान किया। चिरंजीवी भगवान परशुराम ने जहां शस्त्रविद्या भोलेनाथ से प्राप्त की वहीं शास्त्रविद्या महर्षि कश्यप से ली।
धर्म व धर्मअनुयायियों की रक्षा हेतु शस्त्र उठाने वाले परशुराम ने कर्ण ,द्रोणाचार्य व भीष्मपितामह जैसे शूरवीरों को जहां युद्ध की शिक्षा दी, वहीं कलियुग की समाप्ति के दौरान धरती पर प्रकट होने वाले भगवान के कल्कि अवतार को भी वेद-वेदांत की शिक्षा देने का जिम्मा उठाया हुआ है।
सतयुग में सत्ता व सिंहासन के मद में चूर राजा सहस्रार्जुन के कोप की शिकार जनता में त्राहि-त्राहि मची हुई थी। अपने शस्त्र और सत्ता की ताकत में चूर सहस्रार्जुन भगवान परशुराम जी के पिता महर्षि जमदग्रि जी के आश्रम की सुविधा सम्पन्नता को देख ठगा-सा रह गया, जब उसे अपने सहयोगियों से पता चला कि यह सब सम्पन्नता महर्षि के आश्रम में रह रही कामधेनु गाय का प्रभाव है तो उसने बलपूर्वक कामधेनु को ले जाने का प्रयास किया व यही गलती उसके काल का कारण बनी, महर्षि का वध कर कामधेनु को बलपूर्वक ले जाने का प्रयास करने वाले सहस्रार्जुन द्वारा किए अत्याचार का पता लगने पर भगवान परशुराम ने उसका सेना सहित वध कर धरती पर सत्तासीन क्रूर राजाओं के नाश का सिंहनाद कर दिया।
त्रेता युग में राजा जनक द्वारा अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर हेतु रखे समारोह में पहुंचे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने भगवान शंकर के धनुष को तोड़ा तो उसकी सूचना मिलने पर गुस्से में समारोह में पहुंचे भगवान परशुराम को भगवान राम ने यह कह कर शांत किया कि
‘नाथ शंभू धनो बंज निहारा
होयी एकहू एक दास तुम्हारा।’
द्वापर युग में भी भगवान श्री कृष्ण को संदीपनी ऋषि के आश्रम में जाकर सुदर्शन चक्र प्रदान करने वाले भगवान परशुराम ने हर युग में दुराचारियों-पापियों का नाश करने का प्रण लिया हुआ है। अष्ट चिरंजीवियों में शामिल भगवान परशुराम अजर, अमर व अविनाशी होने के साथ-साथ समस्त मानव जाति के पूज्य हैं।
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