8 जून को शनि जयंती पर विशेष ,शनि जयंती का महत्व और फल

Shani-Jayanti-6502सूर्यपुत्र की आराधना का महापर्व
शनिवार के दिन शनि जयंती से इस पर्व का महत्व एवं फल अनंत गुणा हो जाता है। ज्ञान, बुद्धि एवं प्रगति के स्वामी गुरु का भी शनि के नक्षत्र में होने से इस वर्ष का शनि जन्मोत्सव दिवस आलस्य, कष्ट, विलंब, पीड़ानाशक होकर भाग्योदय कारक बनाने के लिए दुर्लभ अवसर है।
इस पर्व का लाभ लेने के लिए सर्वप्रथम स्नानादि से शुद्ध होकर एक लकड़ी के पाट पर काला कपड़ा बिछाकर उस पर शनिजी की प्रतिमा या फोटो या एक सुपारी रख उसके दोनों ओर शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाकर धूप जलाएँ। इस शनि स्वरूप के प्रतीक को जल, दुग्ध, पंचामृत, घी, इत्र से स्नान कराकर उनको इमरती, तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य लगाएँ। नैवेद्य के पूर्व उन पर अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुंकुम एवं काजल लगाकर नीले या काले फूल अर्पित करें। नैवेद्य अर्पण करके फल व ऋतु फल के संग श्रीफल अर्पित करें।
इस पंचोपचार पूजन के पश्चात इस मंत्र का जप कम से कम एक माला से करें।
ॐ प्रां प्रीं प्रौ स. शनये नम:॥
माला पूर्ण करके शनि देवता को समर्पण करें। पश्चात आरती करके उनको साष्टांग प्रणाम करें।
शनि जयंती पर इन कर्मों का ध्यान रखें :-
* सूर्योदय से पूर्व शरीर पर तेल मालिश कर स्नान करें।
* हनुमानजी के मंदिर के दर्शन अवश्य करें।
* ब्रह्मचर्य का पालन करें।
* पौधारोपण करें।
* यात्रा को टालें।
* तेल में बनी खाद्य सामग्री का दान गाय, कुत्ता व भिखारी को करें।
* विकलांग व वृद्ध व्यक्तियों की सेवा करें।
* शनिजी का जन्म दोपहर या सायंकाल में है। विद्वानों में इसको लेकर मतभेद है। अत: दोपहर व सायंकाल में मौन रखें।
* शनि महाराज व सूर्य-मंगल से शत्रुतापूर्ण संबंध होने के कारण इस दिन सूर्य व मंगल की पूजा कम करनी चाहिए।
* शनिजी की प्रतिमा को देखते समय उनकी आँखों को नहीं देखें।

 

शनि जयंती
शनि जयंती हिंदू धर्म के अनुसार येष्ठ मास की अमावस्या को शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है। 20 मई रविवार को शनि जयंती है। शनि जयंती के दिन शनि देव की विशेष पूजा की जाती है।
अक्सर कर के हमारे समाज में लोगों से सुनने को मिलता है कि शनिवार के दिन कोई भी शुभकार्य शुरु नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस दिन को शुभ नहीं मानते। और अगर इस दिन इत्फाकन कोइ घटना या कुछ पारिवारिक समस्या आ जाए तब तो लोग कहते है कि मुझ पर शनि की दषा है, मेरे शनि ग्रह में दिश में दोष हैं, या मुझ पर साढ़ेसाती चल रही है या शनिवार का दिन मेरे लिए अछा नहीं होता। अगर आप अपने उपर चल रहे शनि के विभिन्न दोषों से मुक्त होना चाहते हैं तो आने वाले शनि जयंती के दिन शनि देव को प्रसन्न करने के लिए विधि समेत पूजा कर एंव अनेक मंत्रों का उचारण कर के आप अपने कष्टों एंव शनि के प्रकोप से मुक्ति पा सकते हैं।
यॆष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या को सूर्यास्त के समय शिंगणापुर नगर में शनिदेव की उत्पप्ति हुई थी। पंडितों के अनुसार शनि जयंती पर उनकी साधना-अराधना और अनुष्ठान करने से शनिदेव विशिष्ठ फल प्रदान करते हैं। शनिदेव नीतीगत न्याय करते हैं। क्हते हैं ‘शनि वक्री जनै: पीड़ाÓ अर्थात शनि के वक्री होने से लोगों को पीड़ा होती है। इसीलिए शनि की दशा से पीडि़त लोगों को शनि जयंति के दिन उनकी पूजा अराधना करनी चाहिए। इससे उन्हें सुख प्राप्त होगा। और पूरे साल हर शनिवार के दिन पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने और सरसों के तेल का दिया जलाने से प्रसन्न किया जा सकता हैं। शनिवार को सुंदरकांड या हनुमान चालिसा का पाठ करेके इसके साथ ही इस दिन शनि.चालिसा का पाठ विशेष फल प्रदान कराता हैं। लेकिन शनि जयंती के दिन ही इस बार सूर्य ग्रहण का योग भी बन रहा है। योतिष के अनुसार सूर्य व शनि पिता पुत्र हैं इसलिए शनि जयंती के दिन सूर्य ग्रहण होना योतिषिय दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण घटना है। शनि जयंती के दिन सूर्य ग्रहण होना शुभ है। ये पहली बार नहीं है जब शनि जयंती के दिन सूर्य ग्रहण का योग बन रहा है। इसके पहले 2011 में भी शनि जयंती व सूर्य ग्रहण का योग बना था। शनि जयंती के साथ सूर्य ग्रहण का योग पिछले वर्षों में कई बार बना है।इस दिन सूर्य देव तथा शनि देव दोनों की आराधना करना श्रेष्ठ है। जो लोग शनि देव की साढ़े साती ढैय्या या महादशा से पीडि़त है उनके लिए शनि देव को प्रसन्न करने का यह उत्तम अवसर है। इस दिन सूर्य देव की उपासना करने से भी शुभ फल प्राप्त होंगे।
शनि चालिसा
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृषे, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गतिमति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवाय तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजीमीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उडि़ गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देवलखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।सो फल योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥

हिन्दुत्व अथवा हिन्दू धर्म
हिन्दुत्व को प्राचीन काल में सनातन धर्म कहा जाता था। हिन्दुओं के धर्म के मूल तत्त्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान आदि हैं जिनका शाश्वत महत्त्व है। अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर दिया गया था। इस प्रकार हिन्दुत्व सनातन धर्म के रूप में सभी धर्मों का मूलाधार है क्योंकि सभी धर्म-सिद्धान्तों के सार्वभौम आध्यात्मिक सत्य के विभिन्न पहलुओं का इसमें पहले से ही समावेश कर लिया गया था। मान्य ज्ञान जिसे विज्ञान कहा जाता है प्रत्येक वस्तु या विचार का गहन मूल्यांकन कर रहा है और इस प्रक्रिया में अनेक विश्वास, मत, आस्था और सिद्धान्त धराशायी हो रहे हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आघातों से हिन्दुत्व को भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसके मौलिक सिद्धान्तों का तार्किक आधार तथा शाश्वत प्रभाव है।

आर्य समाज जैसे कुछ संगठनों ने हिन्दुत्व को आर्य धर्म कहा है और वे चाहते हैं कि हिन्दुओं को आर्य कहा जाय। वस्तुत: आर्य शब्द किसी प्रजाति का द्योतक नहीं है। इसका अर्थ केवल श्रेष्ठ है और बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य की व्याख्या करते समय भी यही अर्थ ग्रहण किया गया है। इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ उदात्त अथवा श्रेष्ठ समाज का धर्म ही होता है। प्राचीन भारत को आर्यावर्त भी कहा जाता था जिसका तात्पर्य श्रेष्ठ जनों के निवास की भूमि था। वस्तुत: प्राचीन संस्कृत और पालि ग्रन्थों में हिन्दू नाम कहीं भी नहीं मिलता। यह माना जाता है कि परस्य (ईरान) देश के निवासी सिन्धु नदी को हिन्दु कहते थे क्योंकि वे स का उचारण ह करते थे। धीरे-धीरे वे सिन्धु पार के निवासियों को हिन्दू कहने लगे। भारत से बाहर हिन्दू शब्द का उल्लेख अवेस्ता में मिलता है। विनोबा जी के अनुसार हिन्दू का मुख्य लक्षण उसकी अहिंसा-प्रियता है

हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:।

एक अन्य श्लोक में कहा गया है
ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय:
गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:।
ॐकार जिसका मूलमंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है, भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है, तथा हिंसा की जो निन्दा करता है, वह हिन्दू है।
चीनी यात्री हुएनसाग् के समय में हिन्दू शब्द प्रचलित था। यह माना जा सकता है कि हिन्दू शब्द इन्दु जो चन्द्रमा का पर्यायवाची है से बना है। चीन में भी इन्दु को इन्तु कहा जाता है। भारतीय योतिष में चन्द्रमा को बहुत महत्त्व देते हैं। राशि का निर्धारण चन्द्रमा के आधार पर ही होता है। चन्द्रमास के आधार पर तिथियों और पर्वों की गणना होती है। अत: चीन के लोग भारतीयों को इन्तु या हिन्दु कहने लगे। मुस्लिम आक्रमण के पूर्व ही हिन्दू शब्द के प्रचलित होने से यह स्पष्ट है कि यह नाम मुसलमानों की देन नहीं है।
भारत भूमि में अनेक ऋषि, सन्त और द्रष्टा उत्पन्न हुए हैं। उनके द्वारा प्रकट किये गये विचार जीवन के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं। कभी उनके विचार एक दूसरे के पूरक होते हैं और कभी परस्पर विरोधी। हिन्दुत्व एक उद्विकासी व्यवस्था है जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता रही है। इसे समझने के लिए हम किसी एक ऋषि या द्रष्टा अथवा किसी एक पुस्तक पर निर्भर नहीं रह सकते। यहाँ विचारों, दृष्टिकोणों और मार्गों में विविधता है किन्तु नदियों की गति की तरह इनमें निरन्तरता है तथा समुद्र में मिलने की उत्कण्ठा की तरह आनन्द और मोक्ष का परम लक्ष्य है।
हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति अथवा जीवन दर्शन है जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को परम लक्ष्य मानकर व्यक्ति या समाज को नैतिक, भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के अवसर प्रदान करता है। हिन्दू समाज किसी एक भगवान की पूजा नहीं करता, किसी एक मत का अनुयायी नहीं हैं, किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रतिपादित या किसी एक पुस्तक में संकलित विचारों या मान्यताओं से बँधा हुआ नहीं है। वह किसी एक दार्शनिक विचारधारा को नहीं मानता, किसी एक प्रकार की मजहबी पूजा पद्धति या रीति-रिवाज को नहीं मानता। वह किसी मजहब या सम्प्रदाय की परम्पराओं की संतुष्टि नहीं करता है। आज हम जिस संस्कृति को हिन्दू संस्कृति के रूप में जानते हैं और जिसे भारतीय या भारतीय मूल के लोग सनातन धर्म या शाश्वत नियम कहते हैं वह उस मजहब से बड़ा सिद्धान्त है जिसे पश्चिम के लोग समझते हैं । कोई किसी भगवान में विश्वास करे या किसी ईश्वर में विश्वास नहीं करे फिर भी वह हिन्दू है। यह एक जीवन पद्धति है; यह मस्तिष्क की एक दशा है। हिन्दुत्व एक दर्शन है जो मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसकी मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकता की भी पूर्ति करता है।

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