अलग करें तफ्तीश व कानून-व्यवस्था की पुलिस: हाईकोर्ट

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इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश में कानून व्यवस्था संभालने और आपराधिक मामलों की विवेचना वाली पुलिस को अलग-अलग करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि विवेचना करने वाली पुलिस विंग का मुखिया न्यायिक अधिकारी बनाया जाए ताकि आपराधिक मामलों की नियमानुसार विवेचना सुनिश्चित हो सके। कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह एवं डीजीपी को इसके लिए जल्द कदम उठाने का आदेश दिया।

यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति पीसी त्रिपाठी की खंडपीठ ने सुभाष चन्द्र जायसवाल की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह एवं डीजीपी से 16 सितम्बर को रिपोर्ट के साथ हलफनामा मांगा है और कहा कि कार्यवाही रिपोर्ट पेश नहीं की जाती तो दोनों अधिकारी 19 सितम्बर को कोर्ट में हाजिर हों। कोर्ट के निर्देश पर इलाहाबाद के जिलाधिकारी व एसएसपी हाजिर थे। उनकी आगे के लिए हाजिरी माफ कर दी है।

कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह एवं डीजीपी से हलफनामे में यह बताने को कहा है कि प्रदेश में ऐसे कितने आपराधिक मामले हैं, जिनकी विवेचना छह माह से अधिक समय से विचाराधीन है और उनके विवेचक कौन हैं। यह भी बताने को कहा है कि प्रदेश में पुलिस के कितने पद स्वीकृत हैं, कितनी पुलिस तैनात है और कितने पद रिक्त हैं। साथ ही रिक्त पद कितने समय में भरे जा सकेंगे। कोर्ट ने राज्य सरकार से प्रत्येक जिले में फोरेन्सिक जांच लैब बनाने और उसमें पर्याप्त संख्या में स्टाफ भी नियुक्त करने को कहा है । कोर्ट ने पोस्टमार्टम के बाद रखे गए विसरा की भी रिपोर्ट मांगी है।

सही विवेचना नहीं करती पुलिस
कोर्ट का कहना है कि प्रदेश पुलिस सही विवेचना नहीं करती। दुराचार की शिकायत दर्ज करने में देर लगाती है और पीड़िता व आरोपियों की मेडिकल जांच कराने में देरी करके साक्ष्य समाप्त करने में सहयोग करती है। कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामलों की विवेचना करने वाली पुलिस प्रशिक्षित होनी चाहिए।

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