बेबी लारा सिखाती है स्कूली बचों को
टोरंटो -संवेदना और सहानुभूति, जर्मनी के कुछ स्कूलों में इनकी कमी दिखती है। खास कर ऐसे इलाकों में जो सामाजिक और आर्थिक मुश्किलों की चपेट में हैं। जर्मन प्रांत ब्रेमेन के एक स्कूल में एक बेबी स्कूली बचों को ट्रेनिंग दे रही है।
हरे चादर से छेड़ छाड़ नहीं करनी है, यह क्लास के सभी 25 बचों को पता है जो चादर के चारों ओर घेरा बनाकर बैठ गए हैं। हरा चादर सिर्फ लारा के लिए है, जो इतनी छोटी है कि अभी चल फिर भी नहीं सकती। सारी नजरें उस पर टिकी हैं, माहौल निश्चिंत और शांत है। बचे सावधानी से अपने जूतों से आवाज निकालते हैं, क्लप, क्लप, क्लप। एक लडक़ी बताती है, लारा को जूतों से प्यार है। पहला पाठ हो गया, दूसरों की जरूरतों और इछाओं को समझना।
लारा इस समय स्टार है। बचे उसे तब से जानते हैं, जब वह 8 हफ्ते की थी। वे उसका ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते हैं, उसे आकर्षित करना चाहते हैं। और उन्हें कामयाबी मिलती है। लारा जूतों की तरफ रेंगती है, उन्हें पकडऩे की कोशिश करती है। बचों को पता चलता कि लारा ने एक नई बात सीख ली है, वह रेंग सकती है, मां मेलानी का हाथ पकडक़र वह पैरों पर खड़ी भी हो सकती है।
लारा की हर गतिविधि पर 25 जोड़ी आंखें टिकी हैं। रूट्स ऑफ एम्पैथी प्रोग्राम इसका फायदा उठा रहा है। बचे स्वाभाविक रूप से लारा के बारे में सोच विचार करते हैं। रूट्स ऑफ एम्पैथी प्रोग्राम के ट्रेनर फिलिप ग्रेसहोएनर बचों से पूछते हैं कि लारा क्या चाह सकती है, वह किस हाल में है? जवाब के उन्हें लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता। एक साथ कई हाथ ऊपर उठ जाते हैं, खासकर लडक़े भी इसमें हिस्सा ले रहे हैं।
फिलिप ग्रेसहोएनर लारा के साथ ट्रेनिंग की तैयारी क्लास के साथ करते हैं। बचे 9 मुद्दों की चर्चा करेंगे। परिवार में सुरक्षा या बचे का पालन पोषण उनमें शामिल है। आज मुद्दा है एक दूसरे को समझना और संवाद। इस पर आरंभिक तैयारी और बातचीत के बाद अब बारी थी लारा और उसकी मां से मिलने की। बचे लारा से इस तरह बात करने की कोशिश कर रहे हैं कि वह समझ सके। मसलन जूते से आवाज निकालना। वह अपना नाम भी समझने लगी है और जब उसे कुछ अछा नहीं लगता तो वह बस नजरें फेर लेती है। और बचे जब उसके लिए गाना गाते हैं, वह हंसती है।
बचे बेबी लारा के साथ संपर्क में हैं। स्कूल की डिप्टी प्रिंसिपल रोजी लांगे कहती हैं कि यही लक्ष्य है, हम संबंध बनाने और जीवन जीने में सक्षम इंसान शिक्षित करना चाहते हैं, और उसके लिए जरूरी है कि दूसरों के साथ सहानुभूति हो, उसके साथ संवेदना हो। उनके स्कूल में दूसरों को समझना खास कर जरूरी है, क्योंकि वहां का माहौल बहुत मुश्किल है। स्कूल के करीब आधे बचे प्रवासी परिवारों से आते हैं। इसलिए सहिष्णुता और दूसरों का ख्याल रखना जरूरी है। लारा बचों को इसकी ट्रेनिंग देती है।
क्लास टीचर वेरेना गैर्डेस भी इसकी पुष्टि करती हैं। स्वाभाविक रूप से बचे अब भी एक दूसरे से झगड़ते हैं, लेकिन झगड़े में अपने अंदर भी झांकते हैं, दूसरों के बारे में सोचते हैं। लारा उनके लिए सहानुभूति लाने वाली है। लारा के साथ होने वाली ट्रेनिंग से क्लास टीचर भी प्रभावित हैं। आम तौर पर शोर मचाते और क्लास पर ध्यान न देने वाले बचे यहां एकदम एकाग्र हैं। जैसे ही लारा के हाथ से छूटकर खिलौना दूर जाता है, बचे कूद पड़ते हैं और उसे तुरंत लारा की ओर खिसका देते हैं, लेकिन पूरी सावधानी से। कहीं उसे चोट न लग जाए। उन्हें यह भी पता चल गया है कि लारा को क्या पसंद है, वह किस चीज से हंसेगी।
मूल रूप से रूट्स ऑफ एम्पैथी प्रोग्राम की शुरुआत कैनेडा में हुई। वहां मेरी गॉर्डन ने 1996 में इसकी शुरुआत की। तब से यह ट्रेनिंद तीन महाद्वीपों के कई देशों में दी जा रही है और यह सफल है। बेबी के साथ ट्रेनिंग के बाद बचे उतने आक्रामक नहीं रहते, वे सहिष्णु हो जाते हैं। कई सर्वे में इस ट्रेनिंग से उनकी सामाजिक क्षमता बढऩे की पुष्टि हुई है।
आलोचक कह सकते हैं कि बेबी का ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल करना उचित नहीं है। लारा की मां मेलानी इस पर हंस देती है। वे बचे की मदद से बचों को कुछ सिखाने को गलत नहीं मानती और कहती हैं कि उन्हें नहीं लगता कि इससे लारा को कोई नुकसान होता है। उस पर यहां इतना ध्यान दिया जाता है कि कोर्स खत्म हो जाने के बाद शायद वह बचों को मिस करेगी। बचे भी उसे हमेशा याद रखेंगे, क्योंकि यह कोर्स उनके लिए स्कूली रोजमर्रे में क्लाइमेक्स है।
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