महज कानून के जोर से राष्ट्रवाद लाना संभव नहीं
देश को आजादी मिले हुए 69 साल हो गए। यह आजादी भौगोलिक दृष्टि से ही मिली लगती है। देश की मौजूदा हालत के मद्देनजर यही लगता है कि असली आजादी के लिए लगातार संघर्ष जारी है। सुप्रीम कोर्ट का राष्ट्रगान को सिनेमाघरों में अनिवार्य किए जाने का ऐतिहासिक फैसला क्या राजनीतिक दलों और देशवासियों को इस दिशा में सोचने को विवश करेगा। इसके मायने हैं कि देश का हर नागरिक सबसे पहले देश के बारे में सोचे। निश्चित तौर पर जन्मभूमि के प्रति कृतज्ञता का भाव सर्वोच्च स्तर पर होना चाहिए। देश अभी तक जाति, धर्म, सम्प्रदाय, नस्ल और क्षेत्रवाद जैसे टुकड़ों में बंटा हुआ है। ‘करेला और नीम चढ़ा’ जैसी हालत यह है कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, अपराध, दुर्घटनाएं और बुजुर्ग, महिलाओं−बच्चों के प्रति अपमानजनक हालात राष्ट्रवाद के सवालों को मुंह चिढ़ा रहे हैं।
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