भारत का अपना निगरानी कार्यक्रम
टोरंटो,भारत अपनी निगरानी व्यवस्था का विस्तार कर रहा है, ताकि खुफिया एजेसिंयां टेलीकॉम और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के पास पड़ीं नागरिकों से संबंधित सूचनाओं तक जल्द पहुंच बना सकें। जब यूएस और विश्वभर में इंटरनेट प्राइवेसी पर चर्चा गर्माई हुई है, भारत अपनी निगरानी व्यवस्था का विस्तार कर रहा है, ताकि खुफिया एजेसिंयां टेलीकॉम और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के पास पड़ीं नागरिकों से संबंधित सूचनाओं तक जल्द पहुंच बना सकें।
ठीक इसी दौरान, सरकार ने ब्लैकबेरी कॉरपोरेट ईमेलों की निगरानी हेतु क:नेडाकी रिसर्च इन मोशन लिमिटेड के साथ गतिरोध को भी समाप्त किया, जिसके बारे में सरकार का कहना था कि इसकी जरूरत उसे राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए है। सरकार ने कहा कि उसने आरआईएम से कूटबद्ध संदेशों को प्रकट करने के लिए कोड सौंपे जाने को कहे बगैर ब्लैकबेरी कॉरपोरेट ईमेल पर निगरानी का रास्ता ढूंढ लिया। आरआईएम ने इस पर टिप्पणी से इन्कार कर दिया।
केन्द्रीकृत नेटवर्क, केन्द्रीकृत निगरानी व्यवस्था, जिससे देश के सभी टेलीकॉम और इंटरनेट नेटवर्क जुड़े हुए हैं, कॉल अवरोधन, आंकड़ों के निरीक्षण एवं विश्लेषण और लक्ष्यों के सोशल नेटवर्किंग नमूनों को लेकर खुफिया एजेसिंयों की क्षमताएं तीव्र कर रहा है, 2013 में खत्म हुए वित्त वर्ष के लिए दूरसंचार विभाग की सालाना रिपोर्ट में ये कहा गया है।
एजेसियों के पास अब कुछ रायों में सेवा प्रदाता की उपेक्षा कर नियत लक्ष्यों के कॉल सीधे सुनने, टेक्स्ट संदेश और ईमेल पढऩे की क्षमता है, सालाना रिपोर्ट कहती है।
टेलीमैटिक्स विकास केन्द्र, एक सरकारी तकनीकी विकास केन्द्र, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है, द्वारा देशभर में ये व्यवस्था स्थापित की जा रही है।
सीएमएस की शुरुआत से पहले, जब सुरक्षा एजेसीं को किसी विशिष्ट नियत लक्ष्य की गतिविधियों पर नजऱ रखनी होती थी, तो टेलीकॉम प्रदाता अथवा इंटरनेट सेवा प्रदाता को व्यक्तिगत दरख्वास्त भेजनी होती थी। 2011 में प्रायोगिक, व्यवस्था का फिलहाल भारतीय टेलीग्राफ एक्ट 1885 के तहत एक राय से दूसरे राय में विस्तार किया जा रहा है। भारतीय टेलीग्राफ एक्ट सार्वजनिक सुरक्षा के मद्देनजऱ सरकार को निजी संदेशों के अवरोधन की इजाज़त देता है।
भारत सरकार द्वारा निगरानी का केन्द्रीकरण डरावना है, सिनथिया वॉन्ग ने सप्ताहांत में जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा। सुश्री वॉन्ग न्यूयॉर्क के मानवाधिकार समूह ह्यूमन राइट वॉच में एक वरिष्ठ इंटरनेट शोधकर्ता हैं। सरकार और नौकरशाह निगरानी उपकरणों का इस्तेमाल सुरक्षा उद्देश्यों की बजाय राजनीतिक उदेश्यों के लिए करते रहे हैं और वो भी अकसर गुप्त तरीकों से, जो मानवाधिकार का उल्लघंन है, सुश्री वॉन्ग ने कहा।
भारत में निजता के कानून के अभाव का तात्पर्य नागरिकों की निजता में मनमाने ढंग से घुसपैठ के खिलाफ संरक्षण नहीं मिलने से है, उन्होंने आगे जोड़ा।
2008 में मुंबई में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा किए हमले में, जिसमें 160 से यादा लोगों की मौत हो गई थी, के बाद भारत संचार के अवरोधन हेतु अपनी शक्तियों के विस्तार की दिशा की ओर अग्रसर हुआ। 2009 में, तत्कालीन संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री गुरुदास कामत ने संसद में कहा था कि केन्द्रीकृत निगरानी व्यवस्था से कानून प्रवर्तन एजेसियां नियत लक्ष्यों द्वारा किए फोन कॉल्स की जगह चिन्हित करने हेतु विवरणों के विश्लेषण और कॉल रिकॉर्ड करने में सक्षम होगीं।
2011 में सरकार ने एक वेब सेंसरशिप नियम लागू किया, जिसमें इंटरनेट कंपनियों के लिए आपत्तिजनक विषय वस्तु को 36 घंटों के भीतर-भीतर हटाने वाले प्रावधान को भी शामिल किया गया था।
इंटरनेट मध्यवर्ती संस्थाएं जैसे फेसबुक और गूगल अपनी साइट पर कथित तौर पर आपत्तिजनक विषय वस्तु रखने के कारण आपराधिक अभियोग का सामना कर रही हैं।
अगस्त में, सरकार ने सांप्रदायिक घृणा फैलाने संबंधी दलील देकर सरकार-विरोधी टीकाकारों और मुख्यधारा वाले सूचना संगठनों की वेबसाइट और ट्वीटर अकाउंट प्रतिबंधित करने वाले कदम के कारण आलोचना का सामना किया।
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