सभी एकादशियों का फल प्रदान करती है निर्जला एकादशी
ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इस दिन महिलाएं एवं पुरुष अन्न, फल और यहां तक कि जल के बिना पूरे दिन उपवास करते हैं। इसी कारण इस एकादशी का सर्वाधिक महत्व है। इस एकादशी का व्रत करने से आयु और अरोग्य में वृद्धि होती है और उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। महाभारत में कहा गया है कि अधिमास सहित एक वर्ष की 26 एकादशी यदि न की जा सके तो केवल निर्जला एकादशी का व्रत करने से ही पूरा फल प्राप्त हो जाता है। निर्जला एकादशी को संपूर्ण दिन-रात बिन जल व अन्य किसी आहार का सेवन किए उपवास करना चाहिए।
ज्योतिषाचार्य पं. शरदचंद्र मिश्र के अनुसार 19 जून दिन बुधवार को सूर्योदय 5 बजकर 13 मिनट पर और एकादशी तिथि का मान 51 दंड 40 पला अर्थात दिन व्यतीत होने के पश्चात रात्रि को 1 बजकर 53 मिनट तक है। इस दिन सर्वप्रथम भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा करनी चाहिए। ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करना चाहिए। इस दिन व्रत करने वालों को चाहिए कि वह जल से कलश भरें व सफेद वस्त्र का उसपर ढक्कन रखें और उस चीनी तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें। एकादशी व्रत करे यथा संभव अन्न, जल, वस्त्र, आसन, जूता, छतरी, पंखी तथा फल इत्यादि का दान करना चाहिए। इस दिन विधि पूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है तथा व्रत करने वाले सभी पापों से मुक्त होकर अविनाशी पद को प्राप्त करते हैं।
निर्जला एकादशी व्रत का महात्म्य- महाभारत काल में एक दिन महर्षि वेदव्यास पाण्डवों को एकादशी व्रत का महत्व समझा रहे थे। उस महत्व को सुनकर भीम के अतिरिक्त सभी पाण्डवों तथा द्रोपदी ने एकादशी व्रत का संकल्प लिया। चूंकि भीम के उदर में वृक्क नामक अग्नि थी जिसके कारण उन्हें ज्यादा भूख लगती थी। नाग प्रदेश में दस कुण्डों का रस पीने से जब उनमें दस हजार हाथियों की शक्ति आ गई तो उनकी भूख और बढ़ गई, अत: बारह महीनों की 24 एकादशियों का व्रत रखने में स्वयं को वह असमर्थ पा रहे थे, एकादशी का महात्म्य सुनकर उन्होंने इसे करना चाहा और अपनी स्थिति महर्षि वेदव्यास के समक्ष रखी। महर्षि वेदव्यास ने कहा कि यदि तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला व्रत रखो तो समस्त एकादशियों का फल तुम्हें प्राप्त हो जाएगा। वेदव्यास की सलाह पर भीम ने इस व्रत को किया। इसीलिए इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं।
विशेष- एकादशी का व्रत तीन दिनों तक आचार-विचार को महत्व देता है। इसके लिए दशमी, एकादशी व द्वादशी इन तीन दिनों तक आचार-विचार पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जैसे इन तीन दिनों में कांसे के बर्तन, मसूर, चना, शाक, शहद, तेल, मैथुन, द्युतक्रीड़ा, मिथ्या भाषण, हिंसा, अधिक जलपान आदि से बचना चाहिए। दशमी तथा द्वादशी को जौ, मूंग, सेंधा नमक, काली मिर्च, शक्कर, गोघृत, साठी का चावल आदि केवल एक बार खाना चाहिए। एकादशी व्रत यथाशक्ति 80 वर्ष की अवस्था तक करना चाहिए। यदि न चल सके तो बीच में भी उद्यापन करके समाप्त किया जा सकता है।
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