ईसाइयत के आधार हैं प्रभु यीशु
संसार में प्रचलित धर्मों में इसाई धर्म का प्रमुख स्थान है। प्रभु यीशु इस धर्म के संस्थापक हैं। इनका जन्म इजरायल में हुआ था। इनके जन्म के संबंध में बहुत कुछ नहीं लिखा गया परन्तु खोज के आधार पर कुछ साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। ये मरियम व यूसुफ के पुत्र हैं। कहा जाता है कि इन्होंने कुंवारी मरियम से जन्म ग्रहण किया। यीशु के जन्म के समय देवदूतों ने इनका स्वागत किया और महात्मा सेंट जॉन के द्वारा इनके जन्म के विषय में भविष्यवाणी की गई थी कि मसीह पैदा होने वाला है, वह संपूर्ण विश्व के पापियों का उद्धार करेगा। कब्र से मुर्दों को जिन्दा करेगा और सबका न्याय करेगा। मसीह शब्द का अर्थ होता है- मुर्दों को जिलाने वाला।
जीसस जन्म से यहूदी थे परन्तु स्वतंत्र चिंतक होने के कारण इनके विचार यहूदी धर्म से कुछ भिन्न थे। यह यहूदी पुजारियों को असह्य था। अपने उच्च विचारों व आध्यात्मिक उपदेश के कारण ये लोकप्रिय होने लगे। इनकी शिक्षा अरमैक लैंग्वेज में थी जो जन सामान्य के लिए ग्राह्य थी। कहा जाता है कि इनके 12 प्रमुख शिष्य थे जिसमें सबसे अधिक उम्र का सेंट पीटर व सबसे कम उम्र का किशोर सेंट जॉन थे। पहले सेंट पीटर मछुवारा थे, कालान्तर में वह जीसस के शिष्य हो गए।
इसाई धर्म के अनुसार ये ईश्वर के पुत्र हैं और मानव को अपने पिता का अनुग्रह प्रदान करवाने के लिए पृथ्वी पर इनका अवतरण हुआ। इसाई धर्म की मान्यता के अनुसार बिना ईसा की कृपा से कोई स्वर्ग लोक में प्रवेश नहीं कर सकता। इनके जन्म के बाद 12 वर्ष का विवरण प्राप्त होता है। पुन: 18 वर्ष के विषय में कम जानकारी प्राप्त होती है। कहा जाता है कि ये 30 वर्ष की उम्र में अपना धर्मोपदेश देना शुरू किए और तीन वर्ष तक यह क्रम चलता रहा। 33 वर्ष की उम्र में यहूदियों ने पकडक़र न्यायाधीश के हवाले कर अभियोग लगाया कि ये स्वयं राजा होना चाहता है और अपने उपदेशों से पवित्र हिबू्र धर्म को नष्ट कर रहा है।
ये पकड़ में नहीं आते थे कि जनसामान्य के मध्य में रहते थे। इधर-उधर छिपकर उपदेश देते रहते थे। इनके शिष्यों में एक शिष्य जिसका नाम जूडास था, चंद सिक्कों के लिए उसने रात्रि के समय ठंडक के मौसम में जब वे अलाव के किनारे बैठे थे, पकड़वा दिया। इनके ऊपर राजद्रोही व धर्मद्रोही का आरोप लगाकर इन्हें मृत्यु दंड देने की मांग की गई। यद्यपि गवर्नर नहीं चाहता था परन्तु लोकमानस के समक्ष इन्हें मृत्यु दंड की सजा सुनाई कि इन्हें शूली पर चढ़ा दिया जाय। जिस दिन इन्हें मृत्यु दंड दिया गया वह शुक्रवार था। उसी की याद में आज भी गुड फ्राइडे का त्योहार मनाया जाता है। न्यू टेस्टामेंट जो इसाइयों का पवित्र धर्मगं्रथ है, के अनुसार क्रूस पर इनके साथ दो अन्य को भी लटकाया गया। वे दोनों तो कुछ घंटों के बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो गए परन्तु प्रभु यीशु का प्राण नहीं निकला, तत्पश्चात इनके पेट में भाले से छेदकर जल्लादों ने इनका प्राणान्त किया। चूंकि शनिवार का दिन यहूदियों के विश्राम का दिन होता था, इसलिए आनन-फानन में इनको एक पत्थर की गुफा वाली कब्र में दफना दिया। तीसरे दिन रविवार को वह कब्र से बाहर आए और सेंट थामस सहित अपने शिष्यों को दर्शन दिए। यह क्रम चालीस दिन तक चला और पुन: उनका पुनरुत्थान (स्वर्गारोहण) हुआ। इसाई धर्म के धर्मोपदेश बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट में चार अध्यायों में वर्णित हैं। इसमें यीशु मसीह के गॉस्पेल- धर्म की शिक्षा है। उस समय प्रधान शिष्यों के श्रुति व साक्ष्य के आधार पर वे लिखे गए हैं।
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