अब से सही उम्र बताना वरना ये तकनीक खोलेगी पोल
दुनिया के सभी देशों के लोगों में उम्र छिपाने की प्रवृत्ति देखी जाती है। खासकर महिलाओं में यह आदत आम होती है लेकिन वैज्ञानिकों ने अब ऐसी तकनीक विकसित कर ली है जिससे उम्र के बारे में बोले जाने वाले झूठ को पकड़ा जा सकेगा।
ताइवान के वैज्ञानिकों ने लेजर आधारित ‘हॉर्मोनिक जेनरेशन माइक्रोस्कोपी’ या जीएचएम नामक तकनीक का विकास किया है। इस तकनीक की मदद से किसी भी व्यक्ति की वास्तविक उम्र का पता आसानी से लगाया जा सकता है। इस तकनीक के तहत त्वचा कोशिका के दो अलग-अलग प्रकार के आकार की तुलना कर त्वचा की प्राकृतिक उम्र को मापा जा सकता है।
इस तकनीक का इस्तेमाल न केवल अपराध विज्ञान में बल्कि त्वचा रोगों के इलाज में भी हो सकेगा। वचुर्अल बायोप्सी के नाम से भी जानी जाने वाली यह प्रक्रिया त्वचा में उम्र से संबंधित क्षति की सीमा को मापने वाली पहली मानकीकृत प्रक्रिया है। प्रमुख शोधकर्ता और नेशनल ताइवान विश्वविद्यालय के मोलेकुलर इमेजिंग सेंटर के प्रमुख चीकुआंग सन के अनुसार अभी तक ऐसी किसी प्रक्रिया का विकास नहीं हुआ था जिससे किसी व्यक्ति की उम्र का निर्धारण उसकी त्वचा से किया जाए। लेकिन यह प्रक्रिया त्वचा की उम्र के लिए एक संभावित सूचकांक के रूप में कार्य करती है।
इस प्रक्रिया से त्वचा रोगों का भी पता लगाया जा सकता है और उस पर निगरानी रखी जा सकती है और इसके साथ ही सूर्य से त्वचा को होने वाले नुकसान का भी पता लगाया जा सकता है। यह एंटीएजिंग स्किन उत्पादों की प्रभावशीलता को भी माप सकती है और त्वचा कोशिकाओं में होने वाले बदलाव का भी पता लगा सकती है। इसलिए इसकी मदद से त्वचा की अछी तरह से देखभाल की जा सकती है।
एचजीएम त्वचा रोगों की पहचान के लिए की जाने वाली स्किन बायोप्सी की ही तरह है। लेकिन यह स्किन बायोप्सी की तरह इंवैसिव नहीं है। चिकित्सक इस विधि का इस्तेमाल उम्र के कारण या पिगमेंटेड स्पॉट में मेलानिन की मात्रा के कारण कोलाजेन फाइबर का मूल्यांकन कर कॉस्मेटिक उत्पादों की प्रभावशीलता का पता लगा सकते हैं।
शोधर्कताओं ने त्वचा की प्राकृतिक उम्र का पता लगाने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल रोगियों के फोरआर्म के भीतरी भाग पर किया। मानव शरीर का यह भाग शायद ही कभी धूप के संपर्क में आता है और यह पर्यावरण के दुष्प्रभावों से भी मुक्त रहता है। इसलिए त्वचा की उम्र का अध्ययन करने के लिए यह भाग उपयुक्त है। हालांकि कूल्हो पर भी त्वचा की उम्र की जांच की जा सकती है क्योंकि यह भाग भी धूप के संपर्क में नहीं आता है लेकिन लोगों के लिए यह असुविधाजनक होगा।
वैज्ञानिकों के अनुसार एचजीएम प्रक्रिया सिर त्वचा की उम्र के अध्ययन तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका इस्तेमाल अन्य अंग प्रणालियों पर भी किया जा सकता है। यह प्रक्रिया त्वचा पर लेजर प्रकाश के हार्मोनिक प्रभाव पर निर्भर है।
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