हम सांस्कृतिक चर्चा से भटक क्यों रहे हैं: कोहन
ओंटेरियो। यदि आप सोच रहे हैं कि यह भी एक सांस्कृतिक लेख हैं जिसपर संस्कृति की महत्ता और उसके बचाव के बारे में बताया जाएगा तो आप गलत हैं, क्योंकि शिक्षित वर्ग का यहीं मानना होता हैं कि इस प्रकार की चर्चा केवल दिग्गजों के मध्य ही हो सकती हैं, आम लोगों को इसके बारे में न तो इतनी रुचि होती हैं और न ही इतनी समझ, जबकि एक लेख में यह भी माना गया कि वर्तमान समय में सामाजिक समीक्षक अपनी सभाओं में अधिक लोग नहीं जुटा पा रहे, जिससे भी पता चलता हैं कि लोगों को अपनी संस्कृति के बारे में इतनी अधिक जिज्ञासा नहीं रही। ऑक्सफोर्ड उल्लेखित टिप्पणी के अनुसार इस प्रकार के विचारों की जननी मारक्सीस्ट क्लास एनालिसस हैं। जबकि इस चर्चा के लिए अल्पसंख्यक सदैव ही शिकायत करते रहे हैं, जबकि इस पर सुधार के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा। दूसरी ओर इस्लाम को मानने वाले भी अब फतवा पर विचार नहीं कर रहे, उन्हें इसकी कमियों का ज्ञान हो रहा हैं और वर्तमान स्थितियों को देखते हुए वे इस प्रकार के निर्णयों को उचित भी नहीं मान रहें। जानकारों का मानना हैं कि अब संस्कृति के नाम पर धार्मिक आंडबरों को अब कोई भी नहीं स्वीकार कर रहा, इसके लिए वे नए उपायों को खोज रहे हैं।
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