इको सेंसिटिव जोन बनाया होता तो न होता ऐसा खतरनाक मंजर

नई दिल्ली। उत्तराखंड के केदारनाथ और आसपास के इलाके में प्रकृति ने जिस तरह की तबाही मचाई है, उसे देखते हुए अब सभी मानने लगे हैं कि अगर इस क्षेत्र को इको सेंसिटिव जोन घोषित कर दिया गया होता तो शायद मंजर ऐसा नहीं होता। पिछले साल केंद्रीय पर्यावरण मंत्रलय ने इसके लिए बकायदा अधिसूचना भी जारी कर दी थी, लेकिन उत्तराखंड सरकार के विरोध की वजह से इसे अब तक अमल में नहीं लाया गया है। केदारनाथ और बद्रीनाथ में सबसे यादा तबाही देखी गई है, क्योंकि इन्हीं इलाकों में प्रकृति के साथ सबसे यादा छेड़छाड़ हुई है। बड़ी संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं की वजह से इन इलाकों में जमकर निर्माण कार्य हुआ है। राय सरकार इन पर कोई अंकुश नहीं रख सकी। इसके बावजूद राय सरकार केंद्रीय पर्यावरण मंत्रलय के इस प्रस्ताव को राय के हितों से खिलवाड़ बताकर विरोध करती रही। पिछले साल पर्यावरण मंत्रलय की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक उत्तरकाशी के बड़े इलाके को पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील (इको सेंसिटिव) क्षेत्र घोषित किया जाना था। ऐसा करने के बाद यहां नए निर्माण पर रोक लग जाती। साथ ही इलाके में पर्यटकों की संख्या भी सीमित करनी पड़ती। अधिसूचना के मुताबिक 4,179 वर्ग किमी को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया जाना था। इस इलाके में सभी जलविद्युत परियोजनाओं पर रोक का प्रस्ताव भी था, लेकिन राय सरकार ने इसका पुरजोर विरोध किया। यहां तक कि पिछले महीने ही मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से ही इसकी शिकायत कर दी थी। हालांकि, पर्यावरण मंत्रलय ने भी इस मामले में पूरी पारदर्शिता नहीं दिखाई। 18 दिसंबर, 2012 से प्रभावी बताई जा रही अधिसूचना को अप्रैल, 2013 में वेबसाइट पर पहली बार प्रकाशित किया गया।

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