पुलिस ही परवान चढ़ा रही अवैध असलहों का धंधा
लखनऊ -स्पेशल टास्क फोर्स ने हमीरपुर से शनिवार को अवैध शस्त्र और कारतूसों की तस्करी करने वाले गिरोह के तीन सदस्यों को गिरफ्तार किया तो फिर वर्दी बेनकाब हो गयी। तीनों तस्कर पुलिसकर्मी हैं। अहम बात यह कि इन्हीं पर शस्त्र और कारतूसों के रखरखाव की जिम्मेदारी थी, लेकिन पैसों के आगे कर्तव्य भूल गये। इनकी गिरफ्तारी से यह तो तय हो गया कि तस्करों को कारतूस मुहैया कराकर अवैध असलहे के धंधे को पुलिस ही परवान चढ़ा रही है।
यूपी कुछ वर्षो में अवैध असलहों की तस्करी का हब बन गया है। यहां बिहार के मुंगेर में बनने वाले देसी असलहों से लेकर विदेशी असलहे भी बेखौफ बेचे जा रहे हैं। दो-चार दिन के अंतराल में छोटे-बड़े असलहा तस्कर जरूर पकड़े जा रहे हैं। कानपुर से हाल में ही पकड़े गये तस्करों ने सिंगापुर और कैनेडा से असलहों के पुर्जे लाकर उसे अवैध तरीके से मुंह मांगी कीमतों पर बेचने का राजफाश किया तो पुलिस भी सकते में आ गयी। असलहा तस्करों की गिरफ्तारियों के साथ हमेशा सवाल वजूद में रहा कि आखिर असलहा खरीदने वालों को कारतूस कौन मुहैया करा रहा है, क्योंकि असलहे तो आसानी से तैयार हो सकते हैं, लेकिन कारतूस तो फैक्ट्रियों में ही बनाये जा सकते हैं। इन सवालों को लेकर पुलिस हमेशा शक के घेरे में रही है।
लाइसेंसी शस्त्र विक्रेता भी खेल में शामिल
दो वर्ष पहले एसटीएफ ने लखनऊ के मोहनलालगंज से हिमाचल प्रदेश के लाइसेंसी शस्त्र विक्रेता मनवीर कैथू और रामप्रताप भदौरिया पकड़े गए तो पता चला कि इस कारोबार की जड़ पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, हिमाचल व बिहार तक जुड़ी है। तस्कर लाइसेंसी शस्त्र विक्रेताओं का नेटवर्क बनाकर माफियाओं, नक्सलियों और बीहड़ों में असलहा और कारतूस आपूर्ति कर रहे हैं। इसमें ग्वालियर के एक लाइसेंसी शस्त्र विक्रेता और औरैया के एक तस्कर का नाम सामने आया। कुछ दिनों की सक्रियता के बाद पुलिस चुप बैठ गयी। सियासी हस्तक्षेप के चलते दोनों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। पता चला कि इन सबके रिश्ते कई वर्दी वालों से भी जुड़े थे।
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