तीन तलाक असंवैधानिक, संसद 6 माह में कानून बनायेः सुप्रीम कोर्ट

पीठ ने कुल सात याचिकाओं पर सुनवाई की, जिनमें मुस्लिम महिलाओं द्वारा समुदाय में व्याप्त ‘तीन तलाक’ की प्रथा को चुनौती देने वाली पांच अलग याचिकाएं भी शामिल थीं। याचिककर्ताओं ने दावा किया था कि ‘तीन तलाक’ की प्रथा असंवैधानिक है। याचिकाएं दायर करने वाली मुस्लिम महिलाओं ने ‘तीन तलाक’ की उस प्रथा को चुनौती दी थी, जिसके तहत पति तलाक देने के लिए एक बार में तीन बार ‘तलाक’ बोल देता है। कई बार वह फोन पर या मोबाइल संदेश में ही तलाक बोल देता है। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि मुस्लिमों में शादी को तोड़ने के लिए ‘तीन तलाक’ की प्रथा ‘सबसे बुरी’ है और यह ‘‘वांछित तरीका’’ नहीं है। हालांकि कुछ ऐसे पक्ष भी हैं, जो इसे ‘वैध’ बताते हैं। इससे पहले केंद्र ने पीठ को बताया था कि यदि ‘तीन तलाक’ को शीर्ष न्यायालय द्वारा अमान्य और असंवैधानिक ठहराया जाता है तो वह मुस्लिमों में शादी और तलाक का नियमन करने के लिए एक कानून लेकर आएगा। सरकार ने मुस्लिम समुदाय में तलाक की तीनों किस्मों- तलाक-ए-बिद्दत, तलाक हसन और तलाक अहसन को ‘एकपक्षीय’ और ‘न्यायेतर’ बताया था। सरकार ने कहा था कि हर पर्सनल लॉ को संविधान के अनुरूप होना चाहिए और विवाह, तलाक, संपत्ति और उत्तराधिकार के अधिकारों को एक ही श्रेणी में रखना चाहिए और ये संविधान के अनुरूप होने चाहिए। केंद्र ने कहा था कि ‘तीन तलाक’ न तो इस्लाम का मौलिक हिस्सा है और न ही यह ‘बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक’ का मुद्दा है। यह मुस्लिम पुरूषों और वंचित महिलाओं के बीच ‘‘अंतरसमुदायिक संघर्ष’’ है। याचिकाओं में ‘निकाह हलाला’ और मुस्लिमों में बहुविवाह को भी चुनौती दी गई। पीठ ने खुद मुख्य मुद्दा उठाया। उस याचिका पर लिखा था, ‘‘मुस्लिम महिलाओं की समानता की तलाश’’। शीर्ष अदालत ने इस सवाल का स्वत: संज्ञान लिया कि क्या तलाक की स्थिति में या अपने पतियों की अन्य शादियों के चलते मुस्लिम महिलाओं को लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है?
Comments are closed.