विधानसभा के प्रशनकाल में उठा सरकारी कार्यों को राजनैतिक ड्रामा से जोड़ने पर सवाल?
टोरंटो। वर्ष 2014 में पाउल कालंद्रा को संसदीय धोखे की स्थाई समस्याओं को उजागर करने के लिए बहुत अधिक प्रसिद्धी मिली, उस समय एनडीपी प्रमुख टॉम मलकेयर ने कैनेडियन सेना का ईराक पर कड़ी कार्यवाही के लिए कई सवाल भी उठाएं गए, जिसके लिए कंजरवेटिव सांसद ने इस प्रकार के प्रशनों का कोई जबाब नहीं बनता यह कहकर टाल दिया गया। उन्होंने माना कि यह सवाल किसी की जिंदगी का नहीं बल्कि उस समय की गई हत्याओं का हैं, इसी प्रकार एनडीपी स्टाफर ने ईजराइल के मुद्दे पर भी सोशल मीडिया में अपने सवाल उठाएं और इसी राजनैतिक थियेटर में उन सवालों के जवाब नहीं मिल पाएं जिनकी वास्तव में आवश्यकता थी। उस समय कंजरवेटिव सांसद ने अपनी आंखों में आंसू भरकर यहीं कहा कि उन्हें इन मौतों पर बहुत अधिक दुख और गुस्सा हैं, इसके लिए विपक्ष उन कारणों के जवाब भी मांगता रहा जिसके कारण इतनी अधिक हत्याएं की गई, परंतु अंत में कुछ नहीं हो पाया और अंत में कालन्द्रा ने दुख के साथ इस कृत्य पर बिना किसी शर्त के खुलकर माफी मांगी और मामला वहीं शांत हो गया। परंतु सोचने की बात यह हैं कि इस प्रकार के विषयों पर सख्ती से कार्य क्यों नहीं होते, ज्ञात हो कि युनाईटेड किंगडम में भी इस प्रकार की कोई भी घटना होने पर सख्ती से निर्णय सुनाया जाता हैं और इसके जल्द ही परिणाम नहीं निकलने पर ठोस कार्यवाही भी की जाती हैं न कि किसी भी प्रकार को कोई राजनैतिक प्रपंच रचा जाता हैं, जिसके लिए कैनेडा को भी सोच विचार करना होगा। यदि आप चाहते हैं कि आपके पीछे खड़ा होकर कोई तालियां बजाएं और आप उन सभी का नेतृत्व उचित प्रकार से कर सके तो आपको इसके लिए ऐसे प्रस्तावों पर विचार करना होगा जो लोगों को भली प्रकार से समझ आएं और वे इसके लिए तैयार भी हो, आप उन्हें इसके लिए आश्वस्त कर सके तभी इस पूरी राजनैतिक छवि को बदला जा सकता हैं।
प्रशनकाल में सभी को अपने विचार रखने का मिलता हैं अवसर
औटवा। विपक्ष का मानना हैं कि 2019 के केंद्रीय चुनावों के लिए अभी से तैयारियां आरंभ हो गई हैं, केंद्रीय चुनावों में लगभग अभी 1 वर्ष का समय शेष हैं, परंतु अभी से कंजरवेटिवस अपने गुणगाण में लग गए हैं जिसके लिए उनके पास संबोधन के लिए केवल ”कार्बन कर” कटौती का विषय ही शेष रहा हैं, जबकि कैनेडा में अन्य कई ऐसे मसले मौजूद हैं जो किसी भी समय प्रशन काल में उठाएं जा सकते हैं, परंतु पीसी कार्यकर्त्ताओं द्वारा सदैव उससे संबंधित प्रशनों को उठाया जाना और उससे संबंधित प्रशनों के जवाब देना ही पसंद हैं। जानकारों के अनुसार प्रशन काल के पांचों दिन अधिकतर विधानसभा में यही मुद्दा उठाया जाता हैं और सभी राजनेता इसी विषय पर चर्चा करते नजर आते हैं, जिसके कारण आम लोग अब परेशान हो रहे हैं। विपक्ष और सत्तापक्ष को मिलकर ऐसे विषयों पर चर्चा करनी चाहिए जिससे देश में कार्यन्वित विकास कार्यों को जल्द से जल्द पूरा किया जा सके और इसके लिए मौजूदा परिस्थितियों को भी समझा जाना चाहिए, नहीं तो इसका दुष्प्रभाव लोगों पर पड़ेगा और विकास में अवरोध उत्पन्न होगा, यदि समय पर कोई निर्णय नहीं लिया गया तो ऐसी स्थितियां जल्द ही उत्पन्न हो सकती हैं।
गरीब परिवारों के लिए प्रशनकाल एक बेवजह की बहस :
स्थानीय मुद्दों से भटका प्रशनकाल गरीब वर्ग के लिए उदासीनता का कारण रहता हैं, उन्हें इसे देखने में ऐसा लगता हैं कि इस समय संसद में ऐसे मुद्दे उठाएं जा रहे हैं जिनकी उनके वर्ग को कोई आवश्यकता नहीं इसलिए वे इस ओर अधिक ध्यान नहीं देते और प्रशनकाल को उचित प्रकार से न तो सुनते हैं और न ही देखते हैं। अधिक रुचि नहीं होने के कारण वे इसमें लिए गए निर्णयों पर भी अधिक ध्यान नहीं देते।
उचित मुद्दों का कोई जवाब नहीं मिलना :
आजकल सोशल मीडिया द्वारा अपने प्रचार-प्रसार के लिए अधिक संवेदनशील मुद्दों को भी मसाला लगाकर लोगों के सामने रखा जा रहा हैं, जिससे उसके सवंदेनशीलता कहीं खो गई हैं और लोग उसे भी प्रचार का एक माध्यम समझ रहे हैं जिसे लोकतांत्रिकता कहीं गुम हो गई और लोगों में समाचार का महत्व ही धूमिल हो गया।
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