टाइटलर को मिली कभी राहत तो कभी आफत
नई दिल्ली ,वर्ष 1984 में गुरुद्वारा पुल बंगश में हुए सिख विरोधी दंगा मामले में आरोपी कांग्रेसी नेता जगदीश टाइटलर ने अदालती कार्यवाही में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। सीबीआइ व अदालत से एक बार क्लीन चिट पा चुके टाइटलर ने कभी सोचा भी न होगा कि उनके लिए सिख दंगा मामले में दोबारा भी जांच हो सकती है। उन्होंने बचाव के लिए जो सबूत के तौर पर जो सीडी पेश की थी, वही उनके लिए दोबारा जांच का आदेश का सबब बनी। मामले की सत्र अदालत में अपील होने पर उनके खिलाफ दोबारा से जांच के आदेश दे दिए गए। इस फैसले को उच्च न्यायालय ने भी हरी झंडी दे दी, तो सुप्रीम कोर्ट ने भी दोबारा से जांच के निर्णय को सही बताया है।
सिख दंगा मामले में 1984 से लेकर अब तक जो हुआ वह इस प्रकार है-
01 नवंबर 1984 में गुरुद्वारा पुल बंगश के पास सिख विरोधी दंगे दंगाइयों ने तीन लोगों को जिंदा जला दिया था। इस घटना में मरने वालों में मामले की शिकायतकर्ता लखविंदर कौर के पति भी शामिल थे। इस मामले में पुलिस ने 31 आरोपियों के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल किए, जिन्हें ट्रायल के बाद बरी कर दिया गया, लेकिन नानावटी आयोग की संस्तुति पर केंद्र सरकार ने सीबीआइ को मामले की जांच के निर्देश दिए। सीबीआइ ने कांग्रेसी नेता टाइटलर के खिलाफ मामले की जांच शुरू की और इस संबंध में वर्ष 2005 में दोबारा से प्राथमिकी दर्ज की गई। सीबीआइ ने मामले की जांच कर एक व्यक्ति सुरेश कुमार उर्फ पानेवाला के खिलाफ भी आरोप पत्र दाखिल किया और बताया कि टाइटलर के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है, लेकिन एक व्यक्ति अदालत में पेश हुआ और खुद को चश्मदीद बताते हुए कहा कि सीबीआइ ने उसका बयान दर्ज नहीं किया है। जिस पर अदालत ने 18 दिसंबर 2007 को सीबीआइ को दोबारा से मामले की जांच के आदेश दिए। सीबीआइ ने दोबारा जांच के बाद भी अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी और टाइटलर को मामले में क्लीन चिट दे दी। कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त मुख्य महानगर दंडाधिकारी ने इस क्लोजर रिपोर्ट को 27 अप्रैल 2010 को स्वीकार कर लिया। फिर लखविंदर कौर ने मामले में सेशन कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की। सेशन कोर्ट ने मामले में निचली अदालत के फैसले को रद कर सीबीआइ को मामले की दोबारा जांच के आदेश दिए। अदालत ने कहा कि सीबीआइ ने उन प्रेस रिपोर्टरों के बयान नहीं लिए, जिनकी मौजूदगी में एक प्रेस कांफ्रेंस में जगदीश टाइटलर ने पुलिस कमिश्नर से कहा था कि आपने मेरे लोगों को हिरासत में लिया हुआ है। यह इस ओर इशारा करता है कि सिख विरोधी दंगे में टाइटलर के लोग शामिल थे। निचली अदालत ने उस सीडी पर विश्वास किया, जिसमें दंगे के दौरान टाइटलर की मौजूदगी तीन मूर्ति भवन में इंदिरा गांधी के निवास पर दिखाई दे रही है। इस जगह से घटना स्थल की दूरी मात्र 10 से 15 मिनट की है। सीबीआइ ने उन दो गवाहों रेशम सिंह और चंचल सिंह के भी बयान नहीं लिए, जिन्होंने खुद को घटना का चश्मदीद बताया था।
सीबीआइ ने अपने जवाब में कहा था कि दो गवाहों ने घटना के समय टाइटलर की मौजूदगी के बारे में बताया था, लेकिन उनके बयान पर भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि सुरेंद्र सिंह के बयानों में विरोधाभास है। उसने अपने बयान में पहले चंचल सिंह, संतोष सिंह और आलम सिंह की मौजूदगी के बारे में नहीं बताया था। इनके नाम उसने बाद में जोड़े। इसी तरह सीबीआइ ने जसबीर सिंह के बयान को भी संदेहास्पद बताया था।
सीबीआइ और दंगा पीड़ितों की दलील सुनने के बाद अदालत ने 10 अप्रैल 2013 को सीबीआइ की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया और सीबीआइ को निर्देश दिया कि मामले की जांच नए तथ्यों को ध्यान में रखते हुए करे। इस निर्णय को उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने भी 31 मई 2013 दोबारा से जांच किए जाने पर सहमति जताई थी। इसके बाद टाइटलर ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी।
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