इमरान खान पाक के कप्तान पर सेना के हाथ में होगी सत्ता की कमान
पाकिस्तान में हुए आम चुनावों के बाद वोटों की गिनती में यह साफ हो गया है कि तहरीक-ए-इंसाफ के अध्यक्ष इमरान खान पाकिस्तान के नए कप्तान होंगे। ऐसा कहा जा रहा है कि पाकिस्तान की सत्ता की चाभी एक बार फिर सेना के पास आ गई है। नवाज शरीफ और बिलावल भुट्टो की पार्टी को जोर का झटका लगा है। ऐसे में इमरान के नेतृत्व में पाकिस्तान की दिशा और और दशा क्या रहेगी, यह देखने वाली बात होगी। वैसे इमरान ने चुनाव प्रचार में खूब दावे भी किए थे जिसमें यह भी कहा था कि वह नए पाकिस्तान का निर्माण करेंगे जो भारत को कर्ज देने की काबलियत रखेगा। 11 खिलाड़ियों के योगदान से क्रिकेट में पाक को विश्व विजेता बनाने वाले इमरान को सत्ता के केंद्र में आने के लिए पाकिस्तान की सेना और ISI का समर्थन हासिल है। आपको पता ही होगा कि पाक में सेना और ISI की मर्जी के खिलाफ कुछ भी नहीं होता। पाक सेना और ISI पूर्व में दो पार्टियों पर दांव लगा चुकी हैं ऐसे में यह अनुमान पहले से लगाया जा रहा था कि शायद इन दोनों का सहयोग इस बार इमरान को मिलेगा और यही हुआ भी। इमरान की पार्टी PTI फिलहाल सत्ता के शिखर तक पहुंचती दिखाई दे रही है। पर सवाल यह उठता है कि आखिर इमरान को ही क्यों मिला सेना और ISI का समर्थन? आपको बता दें कि सेना और ISI को लोकतंत्र के नाम पर ऐसी पार्टी और नेता चाहिए जो उनकी कठपुतली बनकर रह सके और PPP और PML-N ने सेना को वक्त-वक्त पर आंखें भी दिखायी हैं। इमरान को पूर्ण बहुमत ना मिलना भी इसी का हिस्सा माना जा रहा है। इमरान की कम राजनीतिक समझ भी सेना के लिए फायदेमंद रहेगी।
इमरान का रुख
क्रिकेट की हर गेंद पर बल्ला चलाने में माहिर इमरान राजनीति के पिच पर भी सफल होते नजर आ रहे हैं। पर इमरान की राजनीति कैसी है, यह सभी जानना चाहते हैं। इमरान क्रिकेट के क्षेत्र में तो काफी Diplomate नजर आते थे पर राजनीति में उनकी धारा कुछ और ही है। चुनाव प्रचार में भारत के खिलाफ जहर उगलने के साथ-साथ इमरान जेहादी, कट्टरपंथ और तालिबानी आकाओं के समर्थन में अपनी बात कहते रहे हैं। इमरान भी कश्मीर पर पाक सेना जैसी ही राय रखते हैं जिसे वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर कहने से कतराते हैं। इमरान पूरे चुनाव प्रचार के दौरान भारत और यहां की सरकार पर आक्रमक रहे। साथ ही वहां की अवाम को नए पाकिस्तान का सपना भी दिखाया है।
PML-N की हार क्यों
नवाज शरीफ के पतन की पटकथा उसी दिन लिखी जा चुकी थी जिस दिन वह सेना की मर्जी के खिलाफ PM मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने भारत आए थे। जैसा कि कहा जाता है नवाज परिपक्व राजनेता होने के कारण सेना के फैसलों का समर्थन नहीं करते थे। साथ-ही-साथ नवाज लोकतंत्र और भारत से अच्छे रिश्तों के पक्षधर थे जो सेना के लिए चुभने वाली बात थी। यही कारण था कि पाकिस्तान में तख्तापलट के बात उन्हें निर्वासन का सामना करना पड़ा था। उसके अलावा हाल में ही भ्रष्टाचार के आरोप में नवाज को पाक की सत्ता से बेदखल होना पड़ा फिर बाद में जेल भी हुई। ऐसा माना जाता है कि यह सब सेना के इशारे पर ही हुआ।
क्या पड़ेगा भारत-पाक संबंध पर असर
खेल के मैदान में इमरान अपने आक्रामक रुख के लिए जाने जाते हैं जो आज उनकी राजनीति में भी देखने को मिलता है। भले ही भारतीय खिलाड़ियों से इमरान के अच्छे संबंध हैं पर राजनीति में यह हो पाएगा या नहीं, इस पर संशय है। हालांकि इमरान सार्वजनिक मंच पर भारत-पाक के अच्छे रिश्ते की बात तो करते रहे हैं पर हालिया चुनाव में उनके प्रचार का तरीका भारत के प्रति सकारात्मक नहीं था। “भारत का यार नवाज, गद्दार-गद्दार” इस लाइन से इमरान और उनके पार्टी का भारत के प्रति रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है। ताजपोशी के बाद इमरान पाक सेना की वह कठपुलती होंगे जिसे पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तो लोकतंत्र के नाम पर पेश करेगा पर होगा वही जो पाक सेना चाहेगी। ऐसे में समझा जा सकता है कि पाक का भारत के प्रति आने वाले दिनों में क्या रुख रहने वाला है।
इमरान की परेशानी और चुनौतियां
रंगीन मिजाज इमरान राजनीति में परिपक्व नहीं हैं और ना ही उनका राजनीति का कोई बैकग्राउंड है। ऐसे में इमरान के सामने कई चुनौतियां हैं। महिलाओं के प्रति अपनी छवि को लेकर बदनाम इमरान हमेशा अपने संबंधों को लेकर काफी चर्चा में रहते हैं। इमरान खान की दूसरी पत्नी रेहम खान ने अपनी किताब में कुछ खुलासा करते हुए उन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इमरान को ड्रग्स का आदी बताते हुए रेहम ने लिखा है कि उनके 5 नाजायज बच्चे हैं, जिनमें कुछ भारतीय हैं। इसके अलावा इमरान खान पर सेक्स, राजनीति और कुछ क्रिकेटरों के साथ समलैंगिक संबंध होने का भी आरोप लगाया था। ऐसे में इमरान के समक्ष अपनी छवि साफ करने की चुनौती है। इसके अलावा उन्हें मजबूत विपक्ष का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उनकी पार्टी के पास पूर्ण बहुमत नहीं है। साथ ही साथ सेना और ISI से हर फैसलों को मंजूर कराने के लिए उनके सामने घुटने भी टेकने पड़ेंगे।
– अंकित सिंह
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