किशोर की उम्र सीमा घटाने से सुप्रीम कोर्ट का इन्कार
नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म और हत्या जैसे गंभीर अपराधों में शामिल नाबालिगों को किशोर कानून का लाभ न देने और उनके खिलाफ सामान्य अदालत में मुकदमा चलाए जाने की मांग ठुकरा दी है। कोर्ट ने किशोर की उम्र 18 से घटाकर 16 करने की मांग खारिज करते हुए किशोर न्याय [देखभाल एवं संरक्षण] कानून 2000 में दखल देने से साफ इन्कार कर दिया। इतना ही नहीं, कोर्ट ने कानून में किशोर के लिए तय 18 वर्ष की उम्र सीमा को सही ठहराया है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महत्वपूर्ण है क्योंकि गत दिसंबर में दिल्ली दुष्कर्म कांड के किशोर आरोपी के खिलाफ 25 जुलाई को फैसला आना है। सुप्रीम कोर्ट के किशोर न्याय कानून में दखल देने से इन्कार करने पर उस मामले के फैसले पर असर पडऩे की आशंकाएं समाप्त हो गई हैं। मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दिल्ली दुष्कर्म कांड के बाद गंभीर अपराधों में शामिल किशोरों को किशोर कानून का लाभ न देने की मांग वाली विभिन्न याचिकाएं खारिज करते हुए ये फैसला सुनाया है। पीठ ने कानून में बदलाव की मांग खारिज करते हुए कहा कि ये नियम कानून वास्तव में उपेक्षित बचों और किशोरों की देखभाल और संरक्षण के उद्देश्य से बनाए गए हैं। अगर इस उम्र तक का कोई किशोर या बचा कानून का उल्लंघन करता है तो उसे सुधार कर समाज की मुख्यधारा में शामिल होने लायक किया जाता है न कि भविष्य में खूंखार अपराधी बनने के लिए छोड़ दिया जाए। पीठ ने कहा कि ऐसे भी अपवाद है, जिसमें 16 से 18 वर्ष के किशोरों में आपराधिक प्रवृत्तियां आ गई हों और उनमें सुधार या बदलाव होना संभव नहीं है। लेकिन ऐसे मामलों की संख्या इतनी नहीं है कि इसके लिए कानून में दखल दिया जाए।
कोर्ट ने कहा कि उन्होंने सभी पक्षों को सुनने और जस्टिस वर्मा कमेटी की रपट देखने के बाद पाया है कि कानून में बदलाव की जरूरत नहीं है। वे कानून के उपबंधों को सही ठहराते हैं। बता दें कि 16 दिसंबर की दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद आपराधिक कानून में संशोधन पर विचार करने के लिए जस्टिस जेएस वर्मा की समिति गठित की गई थी। समिति ने भी कानून में किशोर की उम्र 18 से घटाकर 16 करने का विरोध किया था। मामले में बहस के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कानून में संशोधन की मांग की थी। जबकि सरकार ने कानून में संशोधन का विरोध किया था।
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