न्यायमूर्ति कबीर आज हो रहे हैं रिटायर

नई दिल्ली। न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर ने 29 सितंबर 2012 को उचतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण की थी। न्यायमूर्ति कबीर को नौ सितंबर 2005 को उचतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। उन्होंने मानवाधिकार और निर्वाचन कानूनों के संबंध में तथा कई अन्य मामलों में ऐतिहासिक फैसले दिए हैं। 39वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल 18 जुलाई, 2013 तक है। आज उनके कार्यकाल का अंतिम दिन है।
न्यायमूर्ति कबीर का जन्म कोलकाता में 19 जुलाई, 1948 को हुआ था। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से एमए और एलएलबी की डिग्री प्राप्त की थी। 1 अगस्त 1973 को न्यायमूर्ति कबीर ने बार की सदस्यता ली थी और 6 अगस्त 1990 को कोलकाता हाई कोर्ट के स्थायी न्यायाधीश बन गए थे। न्यायमूर्ति कबीर ने 11 जनवरी 2005 को कोलकाता हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश का पद संभाला और 1 मार्च 2005 को उन्हें पदोन्नत कर झारखंड हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था। 9 सितंबर 2005 को वे उचतम न्यायालय के न्यायाधीश बने। न्यायमूर्ति कबीर को कोलकाता हाई कोर्ट, सिटी सिविल कोर्ट और कोलकाता की अन्य अदालतों को कंप्यूटरीकृत करने का श्रेय भी दिया जाता है।
न्यायमूर्ति कबीर केरल के दो मछुआरों की कथित तौर पर हत्या करने वाले दो इतालवी मरीन के मामलों की सुनवाई कर रही पीठ में शामिल रहे हैं।
उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने हाल ही में कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष की ओर से भाजपा के कुछ बागी विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने पर फैसला किया था। विधानसभा अध्यक्ष के आदेश को रद्द कर दिया गया था। उन्होंने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर फैसला दिया था कि क्या किसी पार्टी से निलंबित किए गए सांसद की सदस्यता बरकरार रह सकती है। उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि किसी पार्टी से निकाला गया अथवा निलंबित किए गए सांसद की सदस्यता बरकरार रहेगी और वह संसद की कार्यवाही में भाग लेने के साथ ही मत देने का भी अधिकार रखेगा।
न्यायमूर्ति कबीर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की ओर से आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई जांच के आदेश के फैसले की समीक्षा के लिए दायर याचिका पर गौर कर रहे हैं।
16 दिसंबर 2012 को दिल्ली के वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म कांड के बाद आम लोगों के भडक़ने को न्यायमूर्ति कबीर ने अपनी एक टिप्पणी में न्यायोचित और आवश्यक बताया था।

 

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