भारत का दिल जीत सकते हैं इमरान खान, पर पहल उन्हें ही करनी होगी
कई दशकों बाद पाकिस्तान में एक ऐसी सरकार आई है, जो न तो पीपल्स पार्टी की है और न ही मुस्लिम लीग की है। न यह भुट्टो-परिवार की है और न ही नवाज़ शरीफ की है। यह सरकार न ही किसी जनरल अयूब या जनरल जिया-उल हक या जनरल मुशर्रफ की है। यह सरकार तहरीके-इंसाफ पार्टी के नेता इमरान खान की है। उस प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी इमरान खान की है, जो कई बार भारत आ चुका है और जिसके दर्जनों दोस्त भारत में फैले हुए हैं। इमरान ने चुनाव जीतते ही जो बयान दिया, मुझे याद नहीं पड़ता कि पाकिस्तान के किसी अन्य नेता ने आज तक वैसा बयान दिया है। भारत यदि एक कदम बढ़ाएगा तो संबंध सुधारने के लिए हम दो बढ़ाएंगे।
दोनों पार्टियां पटरी से उतर रही हैं। लेकिन दोनों देशों की सरकारें पटरी पर ही चलने की कोशिश कर रही हैं। देखिए, हमारे प्रधानमंत्री मोदी ने इमरान को फोन करके बधाई दी। अपने आप दी। शपथ के बाद उन्होंने चिट्ठी लिखी। चिट्ठी में भी कोई कटु बात नहीं लिखी। दोनों देशों के संबंध सुधारने के लिए उन्हें इमरान से क्या-क्या उम्मीदें हैं, यह लिखा। हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को सद्भावनापूर्ण पत्र लिखा। उधर कुरैशी ने जो बयान दिया, उसमें भारत-पाक संबंधों को सुधारने पर जोर दिया गया। उन्होंने कश्मीर और परमाणु-शक्ति का हवाला जरुर दिया लेकिन उनका जोर इसी बात पर था कि दोनों देशों के संबंधों में नए अध्याय की शुरुआत होनी चाहिए। हो सकता है, सुषमा और कुरैशी की सितंबर में भेंट हो जाए। दोनों संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन में भाग लेने के लिए सितंबर में न्यूयार्क में रहेंगे।
उधर इमरान खान ने ट्वीट करके फिर कहा है कि भारत के साथ हर मसले को बातचीत के द्वारा सुलझाया जाना चाहिए, कश्मीर-विवाद को भी! जब मुशर्रफ- जैसे फौजी तानाशाह के साथ अटलजी और मनमोहनसिंहजी ने कश्मीर विवाद पर कई कदम आगे बढ़ा लिये थे तो इसी प्रक्रिया को और आगे क्यों नहीं बढ़ाया जा सकता लेकिन यहां नाक का सवाल आड़े आ रहा है। बातचीत की पहल कौन करे ? कुरैशी ने अपने बयान में कह दिया कि मोदी ने वार्ता का प्रस्ताव रखा है। पाक विदेश मंत्रालय ने तुरंत सफाई दी कि नहीं, कुरैशी के कहने का अर्थ यह था कि मोदी ने दोनों देशों के बीच रचनात्मक शुरुआत की बात कही है। मैं पूछता हूं कि बिना बात के, कोई रचनात्मक शुरुआत कैसे हो सकती है ? मोदी ने तो अपना काम कर दिया। अब इमरान आगे बढ़ें और कमान संभालें। इमरान थोड़ा आगे बढ़े भी हैं। उन्होंने भारत-पाक व्यापार बढ़ाने की बात कही है। भारत ने 1996 से पाकिस्तान को ‘सर्वाधिक अनुग्रहीत राष्ट्र’ का दर्जा दे रखा है लेकिन पाकिस्तान यह दर्जा भारत को देने में झिझकता रहा है। इमरान हिम्मत करें, चाहे उस दर्जे का नाम थोड़ा बदल दें लेकिन भारत की चीज़ों के लिए अपने दरवाजे खोल दें तो दोनों देशों का जबर्दस्त फायदा होगा। यह कितनी विचित्र बात है कि पाकिस्तान के साथ भारत का व्यापार मुश्किल से सिर्फ 15 हजार करोड़ रु. का है, जो कि उसके विदेश व्यापार के एक प्रतिशत से भी कम है।
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