क्या चीन का उभार कभी नहीं रुकेगा?
टोरंटो – ब्रिटेन, जर्मनी, स्पेन, कैनेडा, फ्रांस, पोलैंड, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया के ज़्यादातर लोग मानते हैं कि चीन महाशक्ति के रूप में अमरीका को पछाड़ देगा। कई लोग तो मानते हैं कि चीन अब भी अमरीका से आगे ही है।
लेकिन चीन द्वारा अफ्रीका के ज़मीन और खनिज़ों के दोहन के बावजूद बहुत कम अफ्रीकी यह मानते हैं कि चीन कभी भी राजनीतिक और आर्थिक रूप से अमरीका जैसा शक्तिशाली बन पाएगा।
इसी तरह मध्य पूर्व के अधिकांश हिस्सों और दक्षिण अमरीका के कुछ भाग में चीन के विकास की निरंतरता को लेकर अविश्वास है।
जहां तक रूसियों का सवाल है वह इस मसले पर पूरी तरह विभाजित हैं। हालांकि अमरीका और चीन के साथ उनके असहज ऐतिहासिक संबंधों को देखते हुए यह बात समझी जा सकती है।
इस साल मार्च से मई तक 39 देशों के 38,000 लोगों के बीच किए गए प्यू रिसर्च के सर्वेक्षण में ये बातें सामने आई हैं।
कजऱ् की तेज़ गति
आर्थिक शक्ति के संबंध में इस सर्वेक्षण के परिणाम ज़्यादा चौंकाने वाले हैं।
करीब 44त्न अमरीकियों का कहना था कि चीन दुनिया की सबसे मजबूत क्लिक करें अर्थव्यवस्था है जबकि सिफऱ् 39त्न ने अमरीकियों ने अमरीका को चुना।
ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, स्पेन और चेक रिपब्लिक ने स्पष्ट बहुमत से चीन को दुनिया की उभरती हुई आर्थिक शक्ति माना। तो सवाल यह है कि कौन सही है- यूरोपियन लोग जो चीन की शक्ति को स्वीकारने लगे हैं या अफ्रीकन, जो इसके बावजूद कि चीन उनकी संपत्तियां खऱीद रहा है, यह मानने को तैयार नहीं हैं कि अमरीका को महाशक्ति के पद से हटाया जा सकता है।
आईएमएफ़ का अनुमान है कि चीन की विकास दर 7 फ़ीसदी से ज़्यादा रहेगी। इसकी दो वजह हैं: अमरीका में धीरे-धीरे आर्थिक स्थिति सुधर रही है और इसे रफ़्तार पकडऩी चाहिए, यह पकड़ेगी।
लेकिन जैसा कि मैं पहले भी कहता रहा हूं कि क्लिक करें चीन का तीव्र विकास तेजी से कम हो सकता है और यहां तक की रुक भी सकता है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के क्लिक करें चीन पर जारी आर्टिकल-4 में इस तरह के मुश्किल स्थिति आने का अनुमान नहीं है।
आईएमएफ़ को अब भी उम्मीद है कि चीन की आर्थिक विकास दर इस साल 7।75त्न रहेगी- हालांकि यह इसके नकारात्मक रहने की आशंका को भी स्वीकार करता है।
आश्चर्यजनक बात यह है कि आईएमएफ़ के आंकड़े पहले के उन अनाधिकारिक अनुमानों की पुष्टि करते हैं। जिनमें 2008 के विश्व वित्तीय संकट के बाद कजऱ् देने की तीव्र या ख़तरनाक गति के बारे में बताया गया था।
चुनौती चीन की जीडीपी का 50 फ़ीसदी हिस्सा निवेश का है। चार साल में, आईएमएफ़ के ऐसे कर्ज- जिन्हें हम निजी क्षेत्र को दिया गया कजऱ् कह सकते हैं, क्योंकि यह सरकार के खाते में नहीं हैं। यह चीन की सकल घरेलू आय का 70त्न से बढक़र कुल जीडीपी का 200त्न तक हो गया है।
इसे इस संदर्भ में समझना ठीक रहेगा कि आईएमएफ़ के अनुसार चीन में जीडीपी के अनुपात में शुद्ध घरेलू कजऱ् उन देशों के मुकाबले ज़्यादा है जिनमें प्रति व्यक्ति आय कम है।
चीन में निजी क्षेत्र पर कजऱ् अमरीका और जर्मनी के मुकाबले ज़्यादा है- जहां प्रति व्यक्ति आय इसके मुकाबले आठ से नौ गुना है।
भारत, रूस, ब्राज़ील, वियतनाम और मलेशिया जैसी अन्य तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले चीन पर कजऱ् कहीं ज़्यादा है।
इसका अर्थ यह हुआ कि पिछले कुछ सालों में चीन कर्ज पर आधारित विकास पर बहुत निर्भर हो गया है।
और इस बात के भी संकेत हैं कि चीनी सरकार और केंद्रीय बैंक भी मान रहे हैं कि उधार का यह चलन ख़तरनाक है और इसे काबू करने के उपाय कर रहे हैं।
चीन के केंद्रीय बैंक का मानना है कि कर्ज पर आधारित निवेश का यह खतरनाक है
लेकिन एक कम विकसित दुनिया में कजऱ् से भी अगर चीन में विकास न हो जाए, तो क्या होगा?
यकीनन चीन के कजऱ् में यह वृद्धि 2008 के वित्तीय संकट से पहले ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को खोखला करने वाले कजऱ् से बेहद अलग है। हमारे मामले में हुआ यह था कि लोगों ने बहुत ज़्यादा कजऱ् ले लिया था।
चीन की अर्थव्यवस्था की मूल दिक्कत यह है कि यह कर्ज लेकर किए गए गैर आनुपातिक निवेशों की वजह से यह चढ़ रही है।
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