एसएनसी-लेवालीन मुद्दे पर प्रधानमंत्री के साथ खुली चर्चा करना चाहते हैं शीर

औटवा। कंजरवेटिव प्रमुख एंड्रू शीर ने प्रधानमंत्री को लिखित पत्र द्वारा एसएनसी-लेवालीन पर चर्चा की खुली चुनौती दी, उन्होंने अपने पत्र में मांग की और कहा कि इस विषय पर सार्वजनिक चर्चा करके प्रधानमंत्री कार्यालय विलसन-रैबाउल्ड पर खुलकर बात करें और विपक्ष के साथ साथ देशवासियों की भी शंका का समाधान करें। इस पत्र द्वारा शीर ने सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास किया, रविवार को लिखे इस पत्र में उन्होंने स्पष्ट कहा कि पिछले दिनों रायरसन को बड़े वित्तीय गमन के आरोप में पदमुक्त कर दिया गया था। जबकि रायरसन पिछले कुछ दिनों से एसएनसी-लेवासीन की वकालत कर रहे थे। शीर ने अपने पत्र में आगे लिखा कि हमें अपने कानूनी नियमों का सदैव पालन करना चाहिए, इसमें यदि देश के वरिष्ठ नेतागण ही पीछे रहेंगे तो इसका नागरिकों पर बहुत गलत प्रभाव पड़ेगा। इस कारण से उन्होंने एसएनसी-लेवालीन पर होने वाली कानूनी कार्यवाही को सार्वजनिक करने की मांग उठाई। ज्ञात हो कि ट्रुडो कार्यालय ने अभी पिछले दिनों ही रायरसन के कार्यों को कुशलता का प्रमाण देते हुए एक रिपोर्ट में उनकी सफलता की बधाई दी। जिससे यह प्रमाणित होता हैं कि रायरसन व ट्रुडो सरकार का आपसी तालमेल बहुत अच्छा हैं। इन्हीं कारणों से एसएनसी-लेवालीन की ओर से नियुक्त किए पूर्व केंद्रीय वकील रायरसन मामले का ब्यौरा जानने का संपूर्ण देशवासियों का प्रथम अधिकार हैं। गौरतलब हैं कि पिछले दिनों क्यूबेक की एक इंजीनियरींग और निर्माण कंपनी पर लाखों डॉलर की घूस देकर लीबिया में सरकारी व्यापार डील के लिए अनुमति लेने का प्रयास करने का आरोप लगाया गया, जिसकी जांच के लिए विलसन-रायरसन की नियुक्ति की गई, परंतु अन्य जांच एजेंसियों के अनुसार रायरसन ने इस संस्था के साथ मिलकर उन्हें बचाने का प्रयास किया, जिसके लिए कोई भी ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया गया। शीर द्वारा लगाए गए इस आरोप के प्रतिउत्तर में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा दिए गए जवाब में कहा गया कि इसमें कोई भी गलत कार्य नहीं किया गया हैं और सभी प्रकार के साक्ष्य सरकार के पास मौजूद हैं, यद्यपि रायरसन पर गुटबाजी का आरोप हैं जिसकी जल्द ही जांच आरंभ हो चुकी हैं और यदि वह इस आरोप में दोषी पाएं जाते हैं तो उन पर अवश्य कार्यवाही होगी अन्यथा उन्हें छोड़ दिया जाएगा, सरकारी रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि जब रायरसन की नियुक्ति की गई तो सरकार को स्वयं नहीं पता था कि वह इस प्रकार की किसी डील में शामिल हैं या नहीं। विलसन-रायरसन ने किसी भी सार्वजनिक चर्चा से साफ तौर पर मना कर दिया हैं, इस बात ने राजनैतिक बातों पर आग में घी का काम कर दिया हैं और विपक्षी दलों में इसके लिए आक्रोश बढ़ता जा रहा हैं। इस आरोप में सरकार के ऊपर स्वयं आरोप लग रहे हैं, जिसे मिटाने के लिए स्वयं सरकार अवश्य ही कोई बड़ा कदम उठा सकती हैं।
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