रमजान मुबारक-साबिर बनाता है रोजा
रमजान का मुबारक महीना पैगाम देता है कि हक की राह पर चलो। अहम बात ये है कि रोजा रखने से इंसान साबिर(सब्र करने वाला)बनता है। आम दिनों में जब कोई इंसान थोड़ी देर के लिए भी भूखा, प्यासा रहे तो परेशान हो जाता है। लेकिन इस मुबारक महीने में जब रोजे की नीयत बांधी जाती है तो अल्लाह मियां रोजेदार को सब्र की तौफीक अता फरमाते हैं। ये परवरदिगार के करम की ही बात है कि बड़ों के साथ छोटे बचे भी रोजा रखते हैं। तकरीबन पंद्रह घंटे भूखे, प्यासे रहकर अल्लाह की इबादत भी करते हैं। फजर में उठते हैं, सहरी की जाती है और ईशा के बाद तराबी भी पढ़ते हैं। असल में रोजे रखने से अल्लाह राजी होते हैं। जो लोग अल्लाह, रसूल की मानते हैं यानी फर्ज व सुन्नत को समझते हैं, उन पर अल्लाह की रहमत बरसती है। फिर रमजान तो बरकत वाला महीना है। इस एक महीने में ईमान ताजा होता है। मस्जिदों में खास तकरीर व पढ़ाई होती है। ईमान की राह पर चलने की हिदायतें मिलती हैं। ऐसे में बुराई से बचने के रास्ते खुलते हैं, इंसान अछाई की तरफ मुड़ता है। पुख्ता ईमान भी उसी का माना जाता है जो अल्लाह-रसूल के फरमानों को मानता है। दुनियावी जमा, खर्च से कुछ हासिल नहीं होता। ईमान की रोशनी या यूं कह सकते हैं कि शरीयत के मुताबिक जो जिंदगी जीता है, वही सुकून हासिल कर पाता है। हर चीज अल्लाह के इख्तियार में है। हमें अल्लाह के बताए रास्ते पर चलते हुए अपनी जिंदगी को तो संवारना ही है, औरों को भी हक की राह पर चलने की दावत देनी है। असल में इस्लाम की बुनियाद मुहब्बत है। यही पैगाम रमजान का भी है। आओ इस मुबारक महीने में अपने गुनाहों की तौबा कर लें और अल्लाह-रसूल के बताए गए रास्ते पर चलें।
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