कोविड-19 के लिए सरकारी वित्तीय योजना सर्वसम्मति से संसद में पारित 

औटवा। हाऊस ऑफ कोमनस ने आपतिक महामारी से लड़ने के लिए सरकार की 82 बिलीयन डॉलर की सरकारी आपदा वित्तीय योजना को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया हैं। बुधवार को संसद के विशेष सत्र में इस योजना को पारित किया गया, इस बिल को कार्यन्वित करने के लिए इसे सीनेट के पास भेजा गया हैं, जहां से इसे पूर्ण स्वीकृति मिलेगी। लिबरल सरकार ने इस बिल को पारित करने के पीछे जल्दबाजी का कारण देश में तेजी से फैलते कोविड-19 संकट को बताया जिसके कारण देश की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही हैं और सरकार इन व्यक्तियों को चाहकर भी कोई मदद नहीं कर सकती, जो इसके संक्रमण में तेजी से आ रहे हैं। ज्ञात हो कि मौजूदा महामारी के कारण गत 13 मार्च को संसद अधिवेशन को निरस्त करते हुए इसे आगामी 20 अप्रैल को पुन: आरंभ करने की घोषणा कर दी गई थी, लेकिन इतने समय तक देश किसी भी वित्तीय सहयोग के लिए प्रतीक्षा नहीं कर सकता था, इसलिए संसद का विशेष सत्र बुलावाकर इस वित्तीय सहयोग को पारित किया गया हैं। बुधवार को संसद में केवल कुछ सांसदों की उपस्थिति ने ही इस बिल को पारित कर दिया और मामले की गंभीरता को समझते हुए इस प्रस्ताव पर कोई अन्य प्रतिक्रिया न लेने की सराहना भी की। लिबरलस के अनुसार यह बिल अगले 21 माह तक लागू रहेगा और इससे पूर्ण रुप से देश की कमजोर हुई वित्तीय स्थिति को मजबूती व दृढ़ता मिल सकेगी , इसके अलावा इसका लाभ कुछ वर्षों के पश्चात देश पर पड़ेगा। इस नई वित्तीय योजना के कारण मुख्य विपक्षी पार्टी कंसरवेटिवस ने लिबरलस पर गंभीर आरोप लगाएं हैं, उनके अनुसार इस संकट के समय में केंद्र सरकार ने केवल अपने बारे में सोचा और इसके लिए बिना विपक्ष को पूरी जानकारी दिए वित्तीय स्थिति को पारित करके मान्य करवा दिया गया, ये सरकार का ”पावर ग्रेबÓÓ हैं जिसके लिए विपक्ष पुरजोर विरोध करता हैं, कोविड-19 के कारण सोशल डिशटेन्सींग के निर्देश सभी सांसद पालन कर रहे हैं, जिसके कारण इस विशेष सत्र में केवल 32 सांसद ही उपस्थित हुए और सरकार के एकतरफा सहमति के पश्चात ही इस बिल को पारित कर दिया गया, जिसे अगले 21 माह तक मान्य माना जाएंगा। कंसरवेटिवस प्रमुख एंड्रू शीयर ने भी इस बिल के विरोध में संदेश देते हुए कहा गया कि ये मान्यता केवल केंद्र सरकार का एकतरफा फैसला हैं और इसके लिए विपक्ष में चर्चा अवश्य होनी चाहिए। नहीं तो आगामी सत्रों में विपक्ष के तथ्यों की मान्यता निरंतर शून्य होती जाएंगी और केंद्र सरकार स्वय को ही वित्तीय प्रस्तावों के लिए महत्वपूर्ण मानते हुए अनुमति प्रदान कर लेंगे।
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