कोरोना बना ट्रंप के रिइलेक्शन का सबसे बड़ा खतरा
वॉशिंगटन । अमेरिका में नवंबर महीने में राष्ट्रपति चुनाव कराए जाने हैं लेकिन इसके पहले विश्वशक्ति एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है जो डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा चुनकर आने के रास्ते में रोड़ा बन गया है। कोरोना संकट गहराने से पहले मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए फरवरी तक स्थिति बिल्कुल सामान्य थी और शायद उनके लिए दोबारा चुनकर आना उतना कठिन नहीं होता जितना कठिन मार्च के बाद हो गया है। मार्च के बाद इसलिए क्योंकि कोरोना वायरस महामारी ने अमेरिका में इंसानों और अर्थव्यवस्था दोनों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। हर रोज सैंकड़ों लोग मर रहे हैं और तो मार्केट गिरने से लोगों को वित्तीय नुकसान भी हो रहा है वहीं इससे निपटने में ट्रंप के मैनेजमेंट से लोग खुश नहीं हैं। ऐसे में ट्रंप के दोबारा चुनकर आना कठिन तो बन ही गया है इसने डेमोक्रैटिक के संभावित उम्मीदवार जो बाइडेन के लिए उम्मीद बढ़ा दी है। पूर्व उपराष्ट्रपति बाइडेन के लिए एक लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति वरदान बन गई है। वहीं, बर्नी सैंडर्स के नाम वापस लेने का भी उन्हें फायदा मिल रहा है।
कोरोना बना ट्रंप के लिए सबसे बड़ा खतरा
कोरोना वायरस ने अमेरिका के बड़े उद्योगों को काफी नुकसान पहुंचाा है, तेल के दाम गिर रहे हैं, स्टॉक मार्केट हिल चुका है और स्कूल व ऑफिस भी बंद हैं जिससे देश में एक नए तरीके का वित्तीय संकट पैदा होने जा रहा है जो ट्रंप की दावेदारी को प्रभावित करेगा। टाइम मैगजीन के मुताबिक, रिपब्लिकन के डोनर डैन एबेरहार्ट कहते हैं, ‘कोरोना वायरस का अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला असर ट्रंप के दोबारा चुने जाने की संभावना को प्रभावित करेगा और हो सकता है वह चुनकर न आएं।’
2008 की मंदी ने रचा था इतिहास, बाइडेन को मिल सकता है फायदा
2008 की आर्थिक मंदी ने अमेरिका में इतिहास रच दिया था जब बराक ओबामा पहले अश्वेत राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे। इस जीत में ओबामा के अपने कौशल की तो भूमिका थी ही इसके पीछे 2008 की वैश्विक मंदी भी जिम्मेदार थी जब सत्तारूढ़ रिपब्लिकन के वोटर डेमोक्रैटिक की तरफ चले आए थे और ओबामा को राष्ट्रपति चुना। वही इतिहास इसबार भी दोहराता नजर आ रहा है। नवंबर में चुनाव से पहले एकबार फिर अमेरिका मंदी की चपेट में आ रहा है। अगर फिर वोटर डेमोक्रैटिक की तरफ गए तो बाइडेन के लिए रास्ता खुल सकता है।
अपने भी मानते हैं कोरोना को कम आंकने की मिलेगी सजा
कुछ रिपब्लिकन भी मानते हैं कि कोरोना को लेकर सरकार की प्रतिक्रिया से वह जनता को भरोसे में नहीं ले पाई है। वे बताते हैं कि ट्रंप ने कोरोना वायरस के खतरे को कम कर आंका और यहां तक कि 26 फरवरी को कहा कि अमेरिका में कोरोना का खतरा काफी कम है या बड़ा नहीं है।ट्रंप की राय उनके हेल्थ एक्सपर्ट से एकदम उलट रही है जिन्होंने वायरस को लेकर आगाह किया था। कोरोना वायरस का केंद्र न्यूयॉर्क है और यहां के मेयर डेमोक्रैटिक पार्टी के हैं और उन्होंने ट्रंप पर आरोप लगाया है कि उन्होंने कोरोना को कम करके आंका और तैयारी नहीं की जिस वजह से न्यूयॉर्क इस चपेटे में आ गया। जाहिर है इसका प्रभाव वोटरों पर भी होगा।
ईरान, उत्तर कोरिया, महाभियोग से निपटने वाले कोरोना से हुए पस्त
विशेषज्ञ बताते हैं कि यह कोई ईरान और उत्तर कोरिया का मसला नहीं है जिससे ट्रंप निपट लेंगे। यह कोरोना वायरस का मसला है जिससे पूरी दुनिया जूझ रही है और अमेरिका में जिस तरह से व्यापक स्तर पर फैला है इससे सीधे ट्रंप की दोबारा निर्वाचन को ही चुनौती है। 2020 से पहले तक स्थितियां रही अनुकूल चाहे अमेरिका-चीन व्यापार सौदा हो या अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा व्यापार सौदा, सोलेमानी का मारा जाना हो या फिर सीनेट में महाभियोग से बरी हो जाने का मसला, हर मोर्चे पर ट्रंप का परफॉर्मेंस शानदार रहा।
लेकिन 2020 उनके लिए भयंकर चुनौतियां लेकर आया है तब जब इसी साल चुनाव होने जा रहे हैं। जनवरी फरवरी में उन्हें पार्टी के आंतरिक चुनाव में 94 फीसदी वोट मिले थे जबकि बराक ओबामा को 2012 के रिइलेक्शन से ठीक पहले डेमोक्रैटिक ने 80 फीसदी के आसपास ही समर्थन मिला था। हालांकि, उन्होंने अपनी जीत दोहरा दी थी, लेकिन ट्रंप के लिए जीत दोहराना उतना आसान नहीं है।
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