आरसीएमपी में पूर्व कॉन्सटेबल पर हुए नस्लीय विवादों पर होगी कार्यवाही
वैनकुअर। लगभग चार दशक पूर्व मारगोरली हडसन ने अपने ऊपर हुए नस्लीय शोषण के विरुद्ध आवाज उठाते हुए इस मामले को फेडरल कोर्ट में पेश किया, जिसके लिए कोर्ट ने आरोपियों पर कार्यवाही का वचन दिया हैं। हससन के अनुसार उन्होंने वर्ष 1979 में पुलिस बल ज्वाइंन किया था, जहां उन्हें स्पेशल नेटिव कॉन्सटेबल का पद प्राप्त हुआ, परंतु कुछ दिनों पश्चात ही उनके साथ व अन्य कुछ कर्मचारियों के साथ संस्था के दूसरे बड़े अधिकारियों और कर्मचारियों ने नस्लीय टिप्पणियां आरंभ कर दी, इसके अलावा कई बार उनके साथ दुर्व्यवहार भी किया गया। इन्हीं सब यातनाओं के कारण हडसन ने अपनी नौकरी 2009 में ही छोड़ दी, उन्होंने बताया कि नस्लीय शोषण की सीमा पार हो चुकी थी, इतने अधिक तनाव के कारण उनका शारिरीक व मानसिक संतुलन भी खराब होने लगा था। इस आरोप के पश्चात आरसीएमपी ने जवाब देते हुए कहा कि हडसन का निष्कासन एक सेवानिवृत्ति थी, जिसका उन्होंने अपने साक्षात्कार में गलत रुप पेश किया हैं और फिलहाल मामले की जांच चल रही हैं कोर्ट में अभी तक यह प्रमाणित नहीं हुआ है कि इतने वर्ष पूर्व लगाए गए ये आरोप सही थे, इसलिए कोर्ट में प्रमाणित होने के पश्चात ही इन तथ्यों पर विचार किया जा सकता हैं। आसीएमपी की महिला प्रवक्ता ने कहा कि कोर्ट का फैसला आने से पूर्व कोई भी टिप्पणी करना अनुचित होगा। आरसीएमपी में संस्थागत नस्लवाद संबंधी कई विवाद सामने आएं हैं, परंतु प्रत्येक अधिकारी पर आरोप लगाना उचित नहीं, संस्था से इस बुराई को समाप्त करने के लिए भरसक प्रयास जारी हैं और पिछले कुछ वर्षों में हमें इसमें भारी सफलता भी प्राप्त हुई हैं। फिलहाल कोर्ट में यह प्रमाणित हुआ है कि पूर्व नस्लीय टिप्पणियों से हडसन व अन्य पीड़ित कर्मचारियों को किसी भी प्रकार की वित्तीय हानि नहीं हुई हैं, परंतु उन्हें मानसिक पीड़ा सबसे अधिक पहुंची हैं, जिसके लिए दोषियों को सजा देना अनिवार्य हैं।
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