लिबरल्स के साथ गठबंधन उचित प्रकार से नहीं होने के कारण कार्य आगे नहीं बढ़ पाया : वी चैरिटी

वी चैरिटी के संस्थापकों ने अपने बचाव में कहा कि पिछले दिनों केंद्र सरकार की छात्र वित्तीय राहत योजना को बीच में छोड़ने का मुख्य कारण आपसी गठबंधन का विश्वस्त नहीं होना था

औटवा। कोविड-19 के कारण देश के युवाओं और छात्रों को राहत देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा घोषित वित्तीय योजना को कार्यन्वित करने के लिए नियुक्त की गई संस्था वी चैरिटी द्वारा बीच में ही इस योजना से हटने को लेकर बहुत अधिक विवाद उठ रहा हैं, जहां एक ओर संसद में विपक्ष केंद्र सरकार पर इस योजना के नाम पर भारी घोटाले का आरोप लगा रही हैं वहीं देश के युवाओं में ट्रुडो सरकार के प्रति बहुत अधिक गुस्सा भरता जा रहा हैं। इन विवादों के मध्य आज वी चैरिटी के संस्थापकों ने अपने बचाव हेतु एक प्रैस वार्ता का आयोजन किया जिसमें उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार के साथ किसी भी मजबूत टाई नहीं होने के कारण यह योजना बीच में ही छोड़नी पड़ी, जिसका हमें बेहद दु:ख हैं। वी चैरिटी के संस्थापक ब्रदर्स क्रेग और मार्क किलबरगर ने मीडिया को बताया कि प्रारंभ से ही यह डील भ्रांतियों में फंसी रही, सोचने की बात यह थी कि यह योजना एक चैरिटी संस्था को क्यों दी गई, जबकि इसका हस्तांतरण सरकार स्वयं भी कर सकती थी। वहीं इसके आरंभ में सरकार की उदासीनता के कारण कोई पहल ही नहीं हो सकी, ब्रदर्स ने माना कि हम केंद्र सरकार के किसी भी ऐसे कार्य में नहीं आना चाहते थे जिससे हमारे पिछले 25 वर्षों के कार्यों पर कोई सवाल उठाएं जाएं। उन्होंने स्पष्ट रुप से बताया कि सरकार की घोषणा के अनुसार यह आवंटन 912 मिलीयन डॉलर का था, परंतु सरकारी अधिकारियों के अनुसार इस योजना के कार्यन्वयण में 543 मिलीयन डॉलर की लागत लगनी चाहिए, जबकि हमारे विशेषज्ञों के अनुसार इसमें और कम खर्चे में काम हो सकता था।
इसके अलावा योजना के शुरुआत से ही वी चैरिटी और ट्रुडो परिवार के परस्पर संबंधों को लेकर विपक्ष एक नया ही विवाद उत्पन्न कर रहा था, जिसके लिए भी संस्था ने योजना का प्रारुप आरंभ होने से पूर्व ही अपना हाथ खींच लिया। गौरतलब है कि पिछले दिनों केंद्र सरकार के कार्यों पर निगरानी रखने वाली वरिष्ठ पब्लिक सर्वेंट कमेटी का कहना है कि कोरोना काल में केंद्र सरकार द्वारा छात्रों को दिए जाने वाले वित्तीय राहत पैकेज के वितरण हेतु नियुक्त वी चैरिटी के साथ डील में किसी भी प्रकार का कोई घोटाला नहीं सामने आया हैं। गत दिनों वी चैरिटी द्वारा इस डील से अपना नाम वापस लिए जाने पर विपक्ष ने वी चैरिटी और प्रधानमंत्री के मध्य संबंध होने की बात कही थी और इस डील की प्रख्यात जांच की मांग उठाई, जिसके लिए प्रीवव्हाई काउन्सिल लेन शुगर्ट के क्लर्क ने अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया कि वी चैरिटी और प्रधानमंत्री के मध्य कोई भी निजी संबंध नहीं था, वहीं दूसरी ओर विपक्ष द्वारा यह कहना कि प्रधानमंत्री की पत्नी सौफिया ट्रुडो और प्रधानमंत्री की मां के साथ वी चैरिटी के साथ व्यापारिक डील तक की बात को स्वीकार किया। परंतु यह सभी बातें एक मात्र संयोग थी जिसे आपस में जोड़कर प्रधानमंत्री जस्टीन ट्रुडो को बदनाम करने की योजना बनाई गई थी। इस रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया कि इस डील की पूर्णत: जांच में यही पाया गया कि वी चैरिटी और प्रधानमंत्री के मध्य कोई भी निजी संबंध का कोई प्रमाण नहीं मिला जिससे प्रधानमंत्री 900 मिलीयन डॉलर की इस वित्तीय सहायता योजना से पूरी तरह बेदाग साबित हुए हैं। ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री ने अपने पूर्व संदेश में भी यहीं माना था कि उन्हें यदि इस बात का जरा भी संदेह होता तो वह वी चैरिटी को इस डील के लिए नहीं चुनते, उन्हें केवल देश के छात्रों के भविष्य की चिंता थी इसलिए उन्होंने एक गैर-लाभकारी संस्था को इसके वित्तीय वितरण के लिए चुना, जिसने कार्य की जटिलता को देखते हुए इससे अपना नाम वापस ले लिया।

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