संगीत सीमाओं में नहीं बंधा रह सकता : सलिल भट्ट

टोरंटो, संगीत को एक साधना मानते हैं प. सलिल भट्ट। उन्हें सात्विक वीणा के लिए जाना जाता है। सलिल जी को उनके विशेष योगदान के लिए कैनेडा का प्रतिष्ठित अवॉर्ड जूनो प्रदान किया गया। जयपुर घराने के इस सुपरिचित संगीतकार से इंदिरा की लंबी बातचीत के चुनिंदा अंश:
आपने सात्विक वीणा जैसा प्रयोग किया जिस पर आपको खूब प्रशंसा मिली। अब नया क्या कर रहे हैं? हर कलाकार के जीवन में कोई न कोई रचना ऐसी होती है, जो उसे एक मुकाम हासिल कराती है। मेरे पिता ने मोहन वीणा बनाई तो मैंने सात्विक वीणा। पिछले वर्ष मेरे गुरु और पिता पं. विश्व मोहन भट्ट की संगीत यात्रा के 50 वर्ष पूरे होने पर हमने एक नया एलबम निकाला जिसका नाम हैस्ट्रग्सिं ऑफ फ्रीडम। इसमें मैंने एक नए राग का समावेश किया है। यह है- राग विश्वकौंस। दरअसल यह दो रागों का सम्मिश्रण है। अहीर भैरव और राग विश्वकौंस। यह राग हिंदुस्तानी व कर्नाटक संगीत पद्धतियों को मिला कर बनाया गया है। इससे पहले स्लाइड टु फ्रीडम तो जूनो के लिए भी नामांकित हुआ। कैनेडा में इसे बहुत ख्याति मिली। यहां तक कि वहां के स्वतंत्रता दिवस पर मुझे बजाने का मौका मिला। यह भारतीय संगीत की ऊंचाई है जो सबके दिल में उतर जाती है।
स्लाइड टु फ्रीडम में आपने भारतीय व पाश्चात्य संगीत शैलियों को जोड़ा। शास्त्रीय संगीत के कई दिग्गज संगीत में ऐसे प्रयोगों के खिलाफ भी रहते हैं। आप इस बारे में क्या सोचते हैं?
विदेशी कलाकारों के साथ ब्ल्यूज कंट्री ब्ल्यूज रॉक जैज, ब्ल्यू ग्रास पर मैं लगातार काम कर रहा हूं। हर शैली का समायोजन कर रहा हूं। यही तो संगीत की ताकत है, जिसमें दो बिल्कुल अलग-अलग शैलियां एक-दूसरे में इस तरह गुंथ जाती हैं कि उन्हें अलग करना ही मुश्किल हो जाए। हमारे यहां हजारों सालों से वीणा है, उसी का आधुनिक रूप गिटार है। जिस तरह भारत में लोक संगीत, शास्त्रीय संगीत पॉप्युलर हैं, उसी तरह विदेशों में ब्ल्यूज, रॉक और कंट्री पॉपुलर हैं। मुझे तो इस संगीत में भी वैसी ही पुकार और संवेदना महसूस होती है, जो भारतीय संगीत में होती है। एक ऐसा मिलन-स्थल खोजा जाना चाहिए, जहां पूर्व-पश्चिम एकाकार हों। हमारे पास हजारों राग हैं तो उनके पास भी हैं। सबने एक-दूसरे को सुना और फि र एक कॉमन पॉइंट खोजा। दो विभिन्न गीत-शैलियां मिल रही हैं, लेकिन वे ऐसे मिल रही हैं जैसे गंगा जमुना। हर शैली महत्वपूर्ण है। दो तरह की महान संगीत पद्धतियों को मिलाना ही जुगलबंदी है। संगीत सीमाओं में नहीं बंधा रह सकता। अपने अहं मिटा देने का नाम ही संगीत है।

 

 

 

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