दो वरिष्ठ कवियों ने किया जुबिन मेहता की संगीत संध्या का बहिष्कार
श्रीनगर ,अहसास-ए-कश्मीर के जरिये देश-दुनिया को प्रेम व सौहार्द का संदेश देने के प्रयासों को एक और झटका लगा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त कश्मीर दो वरिष्ठ कवियों ने भी इस संगीत संध्या के बहिष्कार का एलान किया है। जर्मनी दूतावास की तरफ से सात सितंबर को जुबिन मेहता की संगीत संध्या शालीमार बाग में आयोजित किया जा रहा है। विभिन्न अलगाववादी, आतंकी और बुद्धिजीवी संगठन इस संगीत कार्यक्रम का विरोध कर चुके हैं। इनका कहना है कि कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है और संगीत संध्या से उसकी मौजूदा स्थिति प्रभावित होगी।
कश्मीरी भाषा में अपनी कविताओं के लिए वर्ष 2007 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रो. रहमान राही ने कहा कि मैं संगीत कार्यक्रमों, सांस्कृतिक गतिविधियों के आदान-प्रदान के खिलाफ नहीं हूं। मुझे भी इस कार्यक्रम के लिए बुलाया गया है। लेकिन मैं नहीं जाऊंगा, क्योंकि कश्मीर के मौजूदा हालात ऐसे संगीत कार्यक्रमों के योग्य नहीं है। उनके अलावा वरिष्ठ कवि जरीफ अहमद जरीफ ने भी इस संगीत समारोह के बहिष्कार का एलान किया है। उन्होंने कहा कि कश्मीर में बीते दो दशकों के दौरान हजारों की तादाद में लोग मारे गए हैं। सैकड़ों बचे अनाथ हुए और हजारों महिलाएं विधवा हुई हैं। यहां सैकड़ों गुमनाम कब्रें हैं। यहां मानवाधिकारों का हनन लगातार जारी है। अगर यह वाकई कश्मीरियों के लिए संगीत संध्या है तो फिर इसमें आम कश्मीरियों को क्यों नहीं बुलाया गया। इसमें सिर्फ कुछ धनाढ्य और सियासी प्रभाव के लोगों को ही बुलाया गया है।
दूसरी तरफ मानवाधिकार संगठन कोलेशन ऑफ सिविल सोसाइटी का कहना है कि वह सात सितंबर को हकीकत-ए-कश्मीर नामक एक कार्यक्रम का आयोजन कर वह यही दर्शाने की कोशिश करेंगे कि बीते दो दशकों से किस तरह से यहां मानव अधिकारियों की धजिायां उड़ाई गई।
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