मुजफ्फरनगर हिंसा पर यूपी, केंद्र को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस
नई दिल्ली, मुजफ्फरनगर हिंसा की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने और प्रभावितों को तत्काल राहत पहुंचाने की मांग करने वाली याचिका पर सर्वोच न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया। इस हिंसा में अब तक 38 लोगों की जान जा चुकी है।
प्रधान न्यायाधीश पी. सतशिवम, न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस भेजा। पहली याचिका मोहम्मद हारून और मुजफ्फरनगर के आठ निवासियों की ओर से, जबकि दूसरी याचिका सर्वोच न्यायालय बार काउंसिल की ओर से दाखिल कराई गई है।
अदालत ने साफ किया कि वह केंद्र सरकार को संविधान के अनुछेद 355 के तहत निर्देश देने की दलील पर कोई टिप्पणी नहीं कर रही है। यह अनुछेद राय में राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित है।
न्यायमूर्ति सतशिवम ने कहा, हम अनुछेद 355 पर कुछ भी नहीं कह रहे हैं।
न्यायालय ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि वे अदालत को इस बात की जानकारी मुहैया कराएं कि प्रभावितों तथा मुजफ्फरनगर में फंसे और शरण विहीन स्थिति में बिना भोजन-पानी के रह रहे लोगों की राहत के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।
न्यायालय ने शुरू किए गए राहत शिविरों एवं पीडि़तों को मनोवैज्ञानिक सलाह दिए जाने के बारे में भी विस्तृत जानकारी देने का निर्देश दिया।
अदालत ने शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त सम्मानित और निर्विवाद न्यायाधीश से हिंसा की जांच कराने की प्रार्थना का विकल्प खुला रखा है।
हारून की ओर से पैरवी करते हुए वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम ने अदालत को बताया कि राय में करीब एक वर्ष से हिंसा की परिस्थिति निर्मित हो रही थी।
मुजफ्फरनगर में चीजें जुलाई से ही बिगडऩी शुरू हो गई थी और इसकी खुफिया रिपोर्ट भी थी, लेकिन स्थिति से निपटने के लिए कुछ भी नहीं किया गया।
सुब्रह्मण्यम द्वारा केंद्र व राय सरकार पर बराबर आरोप लगाने पर प्रधान न्यायाधीश सतशिवम ने कहा, आपके मुताबिक ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार की भूमिका बढ़ जाती है।
सुब्रह्मण्यम ने कहा, हर जिम्मेदार व्यक्ति से संपर्क किया गया। प्रधानमंत्री, सचिव, गृह मंत्रालय और रायपाल सभी से गुजारिश की गई और कहीं से कोई पहल नहीं हुई।
बार काउंसिल के अध्यक्ष एम. एन. कृष्णमणि ने मुजफ्फरनगर हिंसा की सीबीआई से जांच कराने पर जोर दिया।
सीबीआई जांच और संविधान के अनुछेद 355 के तहत निर्देश देने की मांग का विरोध करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पैरवी करते हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने अदालत से नोटिस को प्रभावितों और फंसे हुए लोगों को राहत मुहैया कराने की मांग के प्ररिप्रेक्ष्य तक ही सीमित रखने का आग्रह किया।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 16 सितंबर की तारीख तय कर दी।
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