ओंटेरियो। ओंटेरियो सरकार (Government of Ontario) ने विधानसभा में उस प्रस्ताव को पारित कर दिया जिसमें वरिष्ठ नागरिकों को बिना किसी अनुमति के लोन्ग टर्म केयर होम से किसी भी नर्सिंग होम में स्थानांतरित कर सकते हैं। सोमवार को विधानसभा में इस प्रस्ताव को पारित करते हुए कमेटी ने घोषणा करते हुए कहा कि अब भविष्य में भी इस प्रस्ताव के लिए किसी भी प्रकार की सार्वजनिक सुनवाई की आवश्यकता नहीं होगी।
वहीं दूसरी ओर एनडीपी ने यह भी कहा कि विधानसभा में यह प्रस्ताव फेल हो गया हैं। उनके अनुसार इस प्रस्ताव के अंतर्गत अस्पताल अपने उन मरीजों को अस्थाई तौर पर लोन्ग-टर्म केयर होम में बिना किसी अनुमति जाने की मान्यता प्रदान करते थे, जबकि इस नए प्रस्ताव के पारित होने के पश्चात उन्हें अपने वांछित बैड के लिए इंतजार करना पड़ेगा। वहीं राज्य सरकार ने अपनी सफाई में कहा कि इस प्रस्ताव के पारित होने से राज्य के लगभग 6000 मरीजों को राहत मिलेगी और वे जल्द ही अस्पतालों से छुट्टी लेकर अपने वांछित नर्सिंग होमस में जा सकेगे। आंकड़ों के अनुसार अभी भी लगभग 2000 ऐसे मरीज है जो लोन्ग-टर्म केयर होमस के लिए प्रतीक्षा सूची में हैं।
जानकारों का भी मानना है कि प्रत्येक मरीज को इस बात का अधिकार मिलना चाहिए कि वे अपने पसंदीदा स्वास्थ्य केंद्र में बिना किसी प्रतिबंध के जा सके। राज्य के अधिकतर वरिष्ठ नागरिकों की भी यही आशा होती है कि वे अस्पताल से अधिक समय लोन्ग-टर्म केयर होमस में बिताएं। विधानसभा के आंतरिक सूत्रों के अनुसार अभी तक इस विषय पर कोई भी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई हैं और पक्ष-विपक्ष दोनों ही इस बात पर सामंजस्य नहीं बना सके है कि इस प्रस्ताव को पारित किया जाएं अथवा नहीं? विपक्ष की तीनों प्रमुख पार्टियों एनडीपी, लिबरल और ग्रीन का मानना है कि विपक्ष के बिना किसी सहयोग के इस प्रकार से संबंधित प्रस्ताव को पारित करना गैर-लोकतांत्रिकता हैं, जिसके लिए सरकार को आगामी सत्र में सफाई देनी होगी।
वहीं ग्रीन पार्टी के प्रमुख ने भी अपनी बयान में कहा कि विपक्ष का कार्य होता है कि वे सत्तापक्ष की सरकार के किसी भी कार्य में जो गैर-लोकतांत्रिक हो उसमें दखल दें और उसे एक उचित प्रक्रिया द्वारा पूरा करें इस बात पर सहमति बनाएं, यदि ऐसा नहीं होता है तो तुरंत ही इसके विरोध में आवाज भी उठाएं। ज्ञात हो कि पिछले वर्ष एक घटना घटने के पश्चात एनडीपी ने इस विषय पर अपनी याचिका विधानसभा के सामने रखी थी, जिसके प्रतिउत्तर में मौजूदा सरकार ने इसे खारिज करते हुए सार्वजनिक सुनवाई की मनाहीं के प्रस्ताव को पारित कर दिया।
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