पंजाब में हिंसा की उग्रता फिर नियति न बन जाये
May the intensity of violence not become destiny again in Punjab
-ललित गर्ग-
देश की कृषि एवं महापुरुषों की शांति भूमि राजनीतिक कारणों से हिंसा, आतंकवाद एवं नशे की भूमि बन गयी है। जबसे आम आदमी पार्टी की सरकार (Aam Aadmi Party Government) बनी है, हिंसा, हथियारों एवं नशे की उर्वरा भूमि बनकर जीवन की शांति पर कहर ढहा रही है। राज्य में तेजी से पनप रही बंदूक एवं नशे की संस्कृति चिन्ता का सबब बन रही है। निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं और अधिकांश लोग नशे में डूब रहे हैं। हथियारों का खुला प्रदर्शन, खूनखराबा आम बात हो गयी है। इस प्रकार यह हथियारों की शृंखला, नशे का नंगा नाच, अमानवीय कृत्य अनेक सवाल पैदा कर रहे हैं। कुछ सवाल लाशों के साथ सो गये। कुछ समय को मालूम है, जो भविष्य में उद्घाटित होंगे। इसके पीछे किसका दिमाग और किसका हाथ है? आज करोड़ों देशवासियों के दिल और दिमाग में यह सवाल है। क्या हो गया है हमारे पंजाब को? पिछले लम्बे दौर से हिंसा रूप बदल-बदल कर अपना करतब दिखाती है- विनाश और निर्दोष लोगों की हत्या का। निर्दोषों को मारना कोई मुश्किल नहीं। कोई वीरता नहीं। पर निर्दोष तब मरते हैं जब पूरा देश घायल होता है। पंजाब की घायल अवस्था पर आम आदमी पार्टी सरकार जागी है, प्राथमिक तौर पर ही सही, उसने पहला कदम तो यह उठाया कि हिंसा को बढ़ावा देने वाले गीतों और हथियारों के प्रदर्शन पर रोक लगा दी। अब सार्वजनिक स्थानों पर हथियारों का प्रदर्शन नहीं किया जा सकेगा। यानी सार्वजनिक समारोह, धार्मिक स्थलों, शादियों और इसी तरह के आयोजनों में हथियारों के प्रदर्शन और इस्तेमाल पर रोक रहेगी। संभावना है कि सरकार की जागरूकता से जटिल होते पंजाब के हालात सुधरेंगे।
पंजाब सरकार (Punjab Government) की सबसे बड़ी प्राथमिकता उन विद्रोही खूनी हाथों को खोजना होना चाहिए जो शांति एवं अमन के दुश्मन है। सरकार को इस काम में पूरी शक्ति और कौशल लगाना होगा। आदमखोरों की मांद तक जाना होगा। अन्यथा हमारी पंजाब की सारी खोजी एजेंसियों की काबिलीयत पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा कि कोई दो-चार व्यक्ति कभी भी पूरे प्रांत की शांति और जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर सकते हैं। कोई उद्योग, व्यापार ठप्प कर सकता है। कोई शासन प्रणाली को गूंगी बना सकता है। इसलिये सरकार का सारा जोर हथियारों पर रोक को लेकर है, क्योंकि राज्य में तेजी से पनप रही बंदूक संस्कृति ने सरकार की नींद उड़ा दी है। छोटे-मोटे विवादों में भी लोग आवेश में आ जाते हैं और हथियारों का इस्तेमाल करने से नहीं चूकते। ऐसे विवाद दुश्मनी में बदलते देर नहीं लगती और इसका नतीजा उसी खूनखराबे एवं हत्याओं के रूप में सामने आता है जो पिछले कुछ महीनों में देखने को मिलता रहा है। शिवसेना (टकसाली) के नेता सुधीर सूरी हो या डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी प्रदीप सिंह की हत्या की घटना, जिस तरह से बेखौफ आपराधिक तत्वों ने इन घटनाओं को अंजाम दिया, वह सरकार की कानून व्यवस्था के मुंह पर तमाचा है। जो सरकार की नाकामी को ही प्रदर्शित कर रहा है। क्या सरकार को यह नहीं देखना चाहिए कि हथियारों तक लोगों की पहुंच इतनी आसान कैसे होती जा रही है? आखिर राज्य पुलिस का सूचना तंत्र कर क्या रहा है? खुफिया एजंसियां क्या कर रही हैं?
पंजाब अपने सीने पर लम्बे समय तक आतंकवाद को झेला है, हिंसा, हत्याओं एवं आपराधिक गिरोहों का इतिहास पुराना है और अब तो यह साफ हो गया है कि राज्य में जिस तरह के अपराध हो रहे हैं, उन्हें अंजाम देने वाले सरगना विदेशों में बैठे हैं। कुछ महीने पहले पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद तो कोई संदेह ही नहीं रह गया कि राज्य में अपराध किस तेजी से बढ़ रहे हैं। पंजाब को आधार बनाकर विदेशी ताकते देश में अशांति, अराजकता, अपराध एवं आतंकवाद को पनपाने के लिये आर्थिक एवं अराजक मदद कर रहे हैं। पंजाब कई मायनों में अधिक संवेदनशील राज्य है। यह राज्य पाकिस्तान की सीमा से सटा है। सीमा पार से हथियारों और नशीली पदार्थों की तस्करी कोई छिपी बात नहीं है। अब तो पाकिस्तान की ओर से यहां ड्रोन से भी हथियार गिराने की घटनाएं आम हो गई हैं। ऐसे में कड़ी सुरक्षा की जरूरत है। वैसे पंजाब में सीमाई इलाकों में सीमा सुरक्षा बल और सेना भी तैनात रहती ही है, लेकिन राज्य पुलिस की भूमिका कहीं ज्यादा बढ़ जाती है। जाहिर है, हर स्तर पर पुलिस तंत्र को मजबूत, चौाकन्ना बनाने की जरूरत है। पंजाब सरकार राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर शांति एवं अमन कायम करना चाहिए, ज्यादा चुस्त-दुरुस्त एवं चौकन्ना रहना चाहिए।
पाकिस्तान देश में अशांति के लगातार प्रयत्न कर रहा है, उसमें युद्ध लड़ने की क्षमता एवं साधन-सुविधाओं का अभाव है। वैसे भी अब युद्ध मैदानांे में सैनिकों से नहीं, भीतरघात करके, निर्दोषों की हत्या कर लड़ा जाता है। सीने पर वार नहीं, पीठ में छुरा मारकर लड़ा जाता है। भारत को कमजोर करने के लिये पंजाब का आधार बनाकर यही सब किया जा रहा है। इसका मुकाबला हर स्तर पर हम राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर, एक होकर और सजग रहकर ही कर सकते हैं। यह भी तय है कि बिना किसी की गद्दारी के ऐसा संभव नहीं होता है। पंजाब, कश्मीर में हम बराबर देख रहे हैं कि प्रलोभन देकर कितनों को गुमराह किया गया और किया जा रहा है। पर यह जो पंजाब में लगातार घटनाएं हुई हैं इसका विकराल रूप कई संकेत दे रहा है, उसको समझना है। कई सवाल ख्रड़े कर रहा है, जिसका उत्तर देना है। इसने नागरिकों के संविधान प्रदत्त जीने के अधिकार पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया। यह बड़ा षड़यंत्र है इसलिए इसका फैलाव भी बड़ा हो सकता है। आम आदमी पार्टी जैसे राजनैतिक दल कुर्सी को पकडे़ बैठे हैं अन्य दल बैठने के लिए कोशिश कर रहे हैं। उन्हें नहीं मालूम कि इन कुर्सियों के नीचे क्या है। ये घटनाएं चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है सत्ता-कुर्सी के चारों तरफ चक्कर लगाने वालों से, हमारी खोजी एजेन्सियों से, हमारी सुरक्षा व्यवस्था से कि वक्त आ गया है अब जिम्मेदारी से और ईमानदारी से पंजाब प्रांत को संभालें। देर आये दुरुस्त आये की कहावत के अनुसार पंजाब सरकार को लग रहा है कि हथियारों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा कर अपराधों पर लगाम लगाई जा सकती है। इसीलिए नए हथियार जारी करने पर पाबंदी लगा दी गई है। साथ ही पुराने लाइसेंसों की हर तीन महीने में समीक्षा करने की बात कही जा रही है।
पंजाब सरकार ने जो कदम अब उठाये हैं, वे सब कदम ऐसे हैं जो पहले भी उठाए जा सकते थे। लेकिन मूसेवाला की हत्या के बाद भी सरकार सोती रही। इसका नतीजा यह हुआ कि पिछले दिनों दो और हत्याएं हो गईं। पुलिस तंत्र अपनी जिस तरह कार्य शैली और संस्कृति के लिए जाना जाता रहा है, उससे लगता नहीं कि आपराधिक तत्व आसानी से काबू आ पाएंगे। असल में इन अपराधिक तत्वों को आर्थिक एवं अन्य साधन-सुविधाएं पडोसी देश एवं अन्य दुश्मन देशों से बड़ी तादाद में आ रही है। कौन नहीं जानता कि हथियारों के लाइसेंस किस तरह से दिए जाते हैं और कैसे बाजार में चोरी-छिपे हथियारों का धंधा चलता रहा है। क्या बिना स्थानीय पुलिस की सांठगांठ के यह सब संभव है? बड़ा संकट तो यह है कि पंजाब में खालिस्तानी तत्व फिर से सक्रिय हो रहे हैं। नशे का कारोबार जोरों पर है। ऐसे में सरकार अगर नहीं चेती तो हालात बद से बदतर होते देर नहीं लगने वाली। पंजाब को आतंकवाद से मुक्ति दिलाने में काफी पापड़ बेलने पड़े हैं, फिर से हालात बिगड़े तो इस बार स्थितियां अधिक जटिल हो सकती है, जो प्रांत के साथ-साथ समूचे देश के लिये चुनौती बन सकती है।
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