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अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस-8 मार्च 2023 पर विशेष

Special on International Women’s Day-8 March 2023-Amrit-kaal became the nectar page of women’s life

Special on International Women's Day-8 March 2023-Amrit-kaal became the nectar page of women's life
Special on International Women’s Day-8 March 2023-Amrit-kaal became the nectar page of women’s life

-ललित गर्ग-
परिवार, समाज, देश एवं दुनिया के विकास में जितना योगदान पुरुषों का है, उतना ही महिलाओं का। हालांकि महिलाओं को पुरुषों के समान उतने अधिक सम्मान, अवसर एवं स्वतंत्रता नहीं मिलती। लेकिन नया भारत-सशक्त भारत के निर्माण की प्रक्रिया में महिलाएं घर परिवार की चार दीवारों को पार करके राष्ट्र निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दे रही हैं। खेल जगत से लेकर मनोरंजन जगत तक और राजनीति से लेकर सैन्य व रक्षा तक में महिलाएं बड़ी भूमिका में हैं। महिलाओं की भागीदारी को हर क्षेत्र में बढ़ावा देने और महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। बात भारतीय या अभारतीय नारी की नहीं, बल्कि उसके प्रति दृष्टिकोण की है। आवश्यकता इस दृष्टिकोण को बदलने की है, जरूरत सम्पूर्ण विश्व में नारी के प्रति उपेक्षा एवं प्रताड़ना को समाप्त करने की है। इस दिवस की सार्थकता तभी है जब महिलाओं कां विकास में सहभागी ही न बनाये बल्कि उनके अस्तित्व एवं अस्मिता को नौंचने की वीभत्सताओं एवं त्रासदियों पर विराम लगे, ऐसा वातावरण बनाये।

महिला दिवस पर महिलाओं से जुड़े मामलों जैसे महिलाओं की स्थिति, कन्या भू्रण हत्या की बढ़ती घटनाएं, लड़कियों की तुलना में लड़कों की बढ़ती संख्या, गांवों में महिला की अशिक्षा एवं शोषण, महिलाओं की सुरक्षा, महिलाओं के साथ होने वाली बलात्कार की घटनाएं, अश्लील हरकतें और विशेष रूप से उनके खिलाफ होने वाले अपराध को एक बार फिर चर्चा में लाकर सार्थक वातावरण का निर्माण किया जाये। महिला दिवस जैसे आयोजनों, तमाम सरकारी प्रयत्नों एवं सामाजिक जन-चेतना के एक टीस से मन में उठती है कि आखिर नारी कब तक भोग की वस्तु बनी रहेगी? उसका जीवन कब तक खतरों से घिरा रहेगा?

बलात्कार, छेड़खानी, भ्रूण हत्या और दहेज की धधकती आग में वह कब तक भस्म होती रहेगी? कब तक उसके अस्तित्व एवं अस्मिता को नौचा जाता रहेगा? विडम्बनापूर्ण तो यह है कि महिला दिवस जैसे आयोजन भी नारी को उचित सम्मान एवं गौरव दिलाने की बजाय उनका दुरुपयोग करने के माध्यम बनते जा रहे हैं। नारी जीवन में प्रतिबिम्बित असीम करुणा और मर्मान्तक पीड़ा को भावप्रवण अभिव्यक्ति देना मेरा काम नहीं है। पर आज भी कुछ समाजों में उसकी जो स्थिति है, वह दयनीय और विचारणीय है। सब महिलाएं स्वयं इस स्थिति का अनुभव करती हैं या नहीं, मैं नहीं जानता। किन्तु कोई भी प्रबुद्ध महिला अपनी जाति की दासता और हीनतामूलक वृत्तियों से खुश नहीं हो सकती। शताब्दियों से चली आ रही अर्थहीन परम्पराओं और आत्महीनता के मनोभावों को निरस्त करने के लिए प्रतिरोधात्मक चेतना का विकास करना नितांत अपेक्षित है।

जब तक स्त्री की अन्याय के प्रति विद्रोही चेतना का जागरण नहीं होता, वह अपने अस्तित्व को सही रूप में नहीं समझ सकती। शरीर में जब तक रोग के कीटाणुओं को प्रतिहत करने की क्षमता रहती है, वह रोगाक्रांत नहीं होता। किन्तु प्रतिरोधात्मक शक्ति के क्षीण होते ही चारों ओर से बीमारियों का आक्रमण होता है जो शरीर को निस्तेज ही नहीं, खोखला बना देता है। इसलिए महिला समाज को अपनी प्रतिरोधात्मक शक्ति को विकसित कर जागृत जीवन जीने का अभ्यास करना है। उसे अपनी परम्परागत महत्व एवं शक्ति को समझना होगा, वैदिक परंपरा दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी के रूप में, बौद्ध अनुयायी चिरंतन शक्ति प्रज्ञा के रूप में और जैन धर्म में श्रुतदेवी और शासनदेवी के रूप में नारी की आराधना होती रही है। लोक मान्यता के अनुसार मातृ वंदना से व्यक्ति को आयु, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुण्य, बल, लक्ष्मी पशुधन, सुख, धनधान्य आदि प्राप्त होता है, फिर क्यों नारी की अवमानना होती है?

नारी का दुनिया में सर्वाधिक गौरवपूर्ण सम्मानजनक स्थान है। नारी धरती की धुरा है। स्नेह का स्रोत है। मांगल्य का महामंदिर है। परिवार की पीढ़िका है। पवित्रता का पैगाम है। उसके स्नेहिल साए में जिस सुरक्षा, शीतलता और शांति की अनुभूति होती है वह हिमालय की हिमशिलाओं पर भी नहीं होती। नारी जाति के अलंकरण हैं-सादगी और सात्विकता। सोने, चांदी, हीरे, मोती आदि से निर्मित आभूषण उसके सहज सौंदर्य को आवरित ही कर सकते हैं, निखार नहीं दे सकते। सत्यं, शिवं सुंदरं की समन्विति कृत्रिम संसाधनों से नहीं, अनंत स्तेज को निखारने से हो सकती है।

सुप्रसिद्ध कवयित्रि महादेवी वर्मा ने ठीक कहा था-‘नारी सत्यं, शिवं और सुंदर का प्रतीक है। उसमें नारी का रूप ही सत्य, वात्सल्य ही शिव और ममता ही सुंदर है। इन विलक्षणताओं और आदर्श गुणों को धारण करने वाली नारी फिर क्यों बार-बार छली जाती है, लूटी जाती है? स्वतंत्र भारत में यह कैसा समाज बन रहा है, जिसमें महिलाओं की आजादी छीनने की कोशिशें और उससे जुड़ी हिंसक एवं त्रासदीपूर्ण घटनाओं ने बार-बार हम सबको शर्मसार किया है। विश्व नारी दिवस का अवसर नारी के साथ नाइंसाफी की स्थितियों पर आत्म-मंथन करने का है, उस अहं के शोधन करने का है जिसमें पुरुष-समाज श्रेष्ठताओं को गुमनामी में धकेलकर अपना अस्तित्व स्थापित करना चाहता है।

महिलाओं के युग बनते बिगड़ते रहे हैं। कभी उनको विकास की खुली दिशाओं में पूरे वेग के साथ बढ़ने के अवसर मिले हैं तो कभी उनके एक-एक कदम को संदेह के नागों ने रोका है। कभी उन्हें पूरी सामाजिक प्रतिष्ठा मिली है तो कभी वे समाज के हाशिये पर खड़ी होकर स्त्री होने की विवशता को भोगती रही है। कभी वे परिवार के केंद्र में रहकर समग्र परिवार का संचालन करती हैं तो कभी अपने ही परिवार में उपेक्षित और प्रताड़ित होकर निष्क्रिय बन जाती है। इन विसंगतियों में संगति बिठाने के लिए महिलाओं को एक निश्चित लक्ष्य की दिशा में प्रस्थान करना होगा। बदलते परिवेश में आधुनिक महिलाएं मैथिलीशरण गुप्त के इस वाक्य-“आँचल में है दूध” को सदा याद रखें। उसकी लाज को बचाएँ रखें और भ्रूणहत्या जैसा घिनौना कृत्य कर मातृत्व पर कलंक न लगाएँ। बल्कि एक ऐसा सेतु बने जो टूटते हुए को जोड़ सके, रुकते हुए को मोड़ सके और गिरते हुए को उठा सके। नन्हे उगते अंकुरों और पौधों में आदर्श जीवनशैली का अभिसिंचन दें ताकि वे शतशाखी वृक्ष बनकर अपनी उपयोगिता साबित कर सकें।

‘यत्र पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता’- जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु आज हम देखते हैं कि नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे ‘भोग की वस्तु’ समझकर आदमी ‘अपने तरीके’ से ‘इस्तेमाल’ कर रहा है, यह बेहद चिंताजनक बात है। एक कहावत है कि औरत जन्मती नहीं, बना दी जाती है और कई कट्ट्टर मान्यता वाले औरत को मर्द की खेती समझते हैं। कानून का संरक्षण नहीं मिलने से औरत संघर्ष के अंतिम छोर पर लड़ाई हारती रही है। इसीलिये आज की औरत को हाशिया नहीं, पूरा पृष्ठ चाहिए। पूरे पृष्ठ, जितने पुरुषों को प्राप्त हैं। प्राचीन काल में भारतीय नारी को विशिष्ट सम्मान दिया जाता था। सीता, सती-सावित्री आदि अगणित भारतीय नारियों ने अपना विशिष्ट स्थान सिद्ध किया है।

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इसके अलावा अंग्रेजी शासनकाल में भी रानी लक्ष्मीबाई, चाँद बीबी आदि नारियाँ जिन्होंने अपनी सभी परंपराओं आदि से ऊपर उठ कर इतिहास के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। लेकिन समय परिवर्तन के साथ साथ देखा गया की देश पर अनेक आक्रमणों के पश्चात् भारतीय नारी की दशा में भी परिवर्तन आने लगे। अंग्रेजी और मुस्लिम शासनकाल के आते-आते भारतीय नारी की दशा अत्यंत चिंतनीय हो गई। दिन-प्रतिदिन उसे उपेक्षा एवं तिरस्कार का सामना करना पड़ता था। इसके साथ साथ भारतीय समाज में आई सामाजिक कुरीतियाँ जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, बहू पति विवाह और हमारी परंपरागत रूढ़िवादिता ने भी भारतीय नारी को दीन-हीन कमजोर बनाने में अहम भूमिका अदा की। लेकिन अब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना चुके हैं, अमृत काल में नारी का जीवन भी अमृतमय बने, यही अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने को वास्तविक अर्थ दे सकता है।

प्रेषकः-
(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कुंज अपार्टमेंट
25, आई0पी0 एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोनरू 22727486

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