Shardiya Navratri 2023: नौ शक्तियों के मिलन का पर्व है नवरात्रि
Shardiya Navratri 2023 : Navratri is the festival of union of nine powers.
Shardiya Navratri 2023 : नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि पर्व (Navratri Festival) की शुरूआत हो चुकी है। आदि शक्ति दुर्गा की पूजा के इस पावन पर्व का विशेष महत्व माना जाता है। नवरात्रि के ये नौ दिन देवी दुर्गा के विभिन्न नौ स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित हैं और इसीलिए नवरात्रि को नौ शक्तियों के मिलन का पर्व भी कहा जाता है। प्रतिपदा से शुरू होकर नवमी तक चलने वाले नवरात्र नवशक्तियों से युक्त हैं और हर शक्ति का अपना-अपना अलग महत्व है। शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri ) की शुरुआत इस वर्ष 15 अक्तूबर से हुई है, जिनका समापन 23 अक्तूबर को होगा।
पहले स्वरूप में पार्वती के रूप में
नवरात्र के पहले स्वरूप में मां दुर्गा पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में विराजमान हैं। नंदी नामक वृषभ पर सवार शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया। इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक माना जाता है। दुर्गम स्थलों पर स्थित बस्तियों में सबसे पहले शैलपुत्री के मंदिर की स्थापना इसीलिए की जाती है कि वह स्थान सुरक्षित रह सके।
‘ब्रह्मचारिणी’
मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप ‘ब्रह्मचारिणी’ को समस्त विद्याओं की ज्ञाता माना गया है। माना जाता है कि इनकी आराधना से अनंत फल की प्राप्ति और तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है। ‘ब्रह्मचारिणी’ अर्थात् तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए सुशोभित है। कहा जाता है कि देवी ब्रह्मचारिणी अपने पूर्व जन्म में पार्वती स्वरूप में थीं। वह भगवान शिव को पाने के लिए 1000 साल तक सिर्फ फल खाकर रहीं और 3000 साल तक शिव की तपस्या सिर्फ पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर की। इसी कड़ी तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया।
तीसरा स्वरूप है देवी चंद्रघंटा
मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप है चंद्रघंटा। शक्ति के रूप में विराजमान मां चंद्रघंटा मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्रमा है। देवी का यह तीसरा स्वरूप भक्तों का कल्याण करता है। इन्हें ज्ञान की देवी भी माना गया है। बाघ पर सवार मां चंद्रघंटा के चारों तरफ अद्भुत तेज है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। यह तीन नेत्रों और दस हाथों वाली हैं। इनके दस हाथों में कमल, धनुष-बाण, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र-शस्त्र हैं। कंठ में सफेद पुष्पों की माला और शीष पर रत्नजडि़त मुकुट विराजमान हैं। यह साधकों को चिरायु, आरोग्य, सुखी और सम्पन्न होने का वरदान देती हैं। कहा जाता है कि यह हर समय दुष्टों का संहार करने के लिए तत्पर रहती हैं और युद्ध से पहले उनके घंटे की आवाज ही राक्षसों को भयभीत करने के लिए काफी होती है।
चतुर्थ स्वरूप है कुष्मांडा
चतुर्थ स्वरूप है कुष्मांडा। देवी कुष्मांडा भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। यह बाघ की सवारी करती हुईं अष्टभुजाधारी, मस्तक पर रत्नजडि़त स्वर्ण मुकुट पहने उज्जवल स्वरूप वाली दुर्गा हैं। इन्होंने अपने हाथों में कमंडल, कलश, कमल, सुदर्शन चक्र, गदा, धनुष, बाण और अक्षमाला धारण की हैं। अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। कहा जाता है कि जब दुनिया नहीं थी तो चारों तरफ सिर्फ अंधकार था। ऐसे में देवी ने अपनी हल्की-सी हंसी से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की। वह सूरज के घेरे में रहती हैं। सिर्फ उन्हीं के अंदर इतनी शक्ति है, जो सूरज की तपिश को सहन कर सकें। मान्यता है कि वही जीवन की शक्ति प्रदान करती हैं।
पांचवां स्वरूप है स्कन्दमाता
दुर्गा का पांचवां स्वरूप है स्कन्दमाता। भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। यह कमल के आसन पर विराजमान हैं, इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। इन्हें कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री कहा जाता है। यह दोनों हाथों में कमलदल लिए हुए और एक हाथ से अपनी गोद में ब्रह्मस्वरूप सनतकुमार को थामे हुए हैं। स्कन्द माता की गोद में उन्हीं का सूक्ष्म रूप छह सिर वाली देवी का है।
छठा स्वरूप है कात्यायनी
दुर्गा मां का छठा स्वरूप है कात्यायनी। यह दुर्गा देवताओं और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं। उनकी पुत्री होने के कारण ही इनका नाम कात्यायनी पड़ा। देवी कात्यायनी दानवों व पापियों का नाश करने वाली हैं। वैदिक युग में ये ऋषि-मुनियों को कष्ट देने वाले दानवों को अपने तेज से ही नष्ट कर देती थीं। यह सिंह पर सवार, चार भुजाओं वाली और सुसज्जित आभा मंडल वाली देवी हैं। इनके बाएं हाथ में कमल और तलवार व दाएं हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा है।
सातवां स्वरूप कालरात्रि
दुर्गा का सातवां स्वरूप कालरात्रि है, जो देखने में भयानक है लेकिन सदैव शुभ फल देने वाला होता है। इन्हें ‘शुभंकारी’ भी कहा जाता है। ‘कालरात्रि’ केवल शत्रु एवं दुष्टों का संहार करती हैं। यह काले रंग-रूप वाली, केशों को फैलाकर रखने वाली और चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं। यह वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं। इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर दूसरे हाथ में खड़ग-तलवार से उनका नाश करने वाली कालरात्रि विकट रूप में विराजमान हैं। इनकी सवारी गधा है, जो समस्त जीव-जंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी माना गया है।
आठवें रूप महागौरी की उपासना
नवरात्र के आठवें दिन दुर्गा के आठवें रूप महागौरी की उपासना की जाती है। देवी ने कठिन तपस्या करके गौर वर्ण प्राप्त किया था। कहा जाता है कि उत्पत्ति के समय 8 वर्ष की आयु की होने के कारण नवरात्र के आठवें दिन इनकी पूजा की जाती है। भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप हैं, इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। यह धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनका स्वरूप उज्जवल, कोमल, श्वेतवर्णा तथा श्वेत वस्त्रधारी है। यह एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू लिए हुए हैं। गायन और संगीत से प्रसन्न होने वाली ‘महागौरी’ सफेद वृषभ यानी बैल पर सवार हैं।
नवीं शक्ति ‘सिद्धिदात्री’
नवीं शक्ति ‘सिद्धिदात्री’ सभी सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं, जिनकी उपासना से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कमल के आसन पर विराजमान देवी हाथों में कमल, शंख, गदा, सुदर्शन चक्र धारण किए हैं। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप हैं, जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से भक्तों को सम्मोहित करती हैं।
– योगेश कुमार गोयल
(लेखक 33 वर्षों से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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