एलिस मुनरो को लिटरेचर का नोबेल पुरस्कार दिए जाने पर हुई थोड़ी हैरानी

ALICE-MUNRO_2699032bटोरंटो, कैनेडा की कहानीकार एलिस मुनरो को लिटरेचर का नोबेल पुरस्कार दिए जाने पर साहित्य जगत को थोड़ी हैरानी सिर्फ इसलिए हुई है कि कहानीकारों की ओर निर्णायकों का ध्यान अब तक कम ही गया है। पर इस बार मुनरो को पुरस्कृत कर नोबेल समिति ने यह संकेत दे दिया गया है कि विधा या शिल्प मायने नहीं रखता। महत्वपूर्ण है रचनाकार की दृष्टि। छोटी-छोटी कहानियां भी मानवीय संबंधों की परतों के भीतर धंसकर कोई बड़ा सच सामने लाती हैं तो अमूल्य बन जाती हैं। मुनरो ऐसी ही लेखिका हैं।
उनकी कहानियों में भी बहुत कुछ घटित नहीं होता, बस कुछ स्थितियां होती हैं, चित्र या फ्लैश होते हैं। पर उनकी कुछ अलग ही तरह की कौंध होती है जिसमें मानव मन की बारीकियां दिख जाती हैं। कुछ गहरे सवालों से हमारा सामना हो जाता है। इस स्तर पर उनकी तुलना चेखव से की जाती है। कैनेडा में लोग उन्हें हमारी चेखव कहते हैं। 10 जुलाई 1931 को पैदा हुईं एलिस मुनरो की कहानियां ओंटारियो नामक कस्बे की पृष्ठभूमि में आकार लेती हैं। कस्बे का परिवेश, उसके चरित्र उनकी कहानियों में अपनी पूरी विविधता के साथ आते हैं। कई अलग-अलग वर्गों के पात्रों को अगर उनमें जगह मिली है तो इसकी एक बड़ी वजह है लेखिका का खुद उनसे परिचित होना। उनके पिता किसान थे और मां स्कूल टीचर। स्वयं उन्होंने एक वेट्रेस, तंबाकू चुनने वाली और लाइब्रेरी क्लर्क का काम किया।
वर्ष 1968 में अपने पहले कहानी संग्रह डांस ऑफ दि हैपी शेड्स से ही वह चर्चा में आ गईं। इसे कैनेडा का सर्वोच सम्मान गवर्नर जनरल्स अवार्ड मिला। उनकी शुरुआती कहानियों में प्रौढ़ होती हुई युवतियां खूब आती हैं जो अपने सपनों, परिवार और अपने छोटे शहर के परिवेश के बीच तालमेल बिठाने के जतन में लगी रहती हैं। हालांकि बाद की कहानियों में कई उम्रदराज औरतों के जीवन की भी झलक मिलती है जो अपने अकेलेपन से जूझ रही होती हैं। ये महिलाएं अपनी इछाओं का खुलकर इजहार करती हैं, यहां तक कि कामेछा का भी। मुनरो की महिलाएं यौन विषयक चर्चा से परहेज नहीं करतीं। असल में मुनरो उस दौर की लेखिका हैं जब यौन संबंधी अभिव्यक्ति स्त्री स्वतंत्रता का पर्याय बन गई थी। उनके चरित्र कई बार चौंकाते भी हैं। यकीन नहीं होता कि एक साधारण सा दिखने वाला पात्र इस तरह फट पड़ेगा। एक आम आदमी अचानक रहस्य से पर्दा हटाता है और शोषण के एक तंत्र को बेनकाब कर देता है। साधारण लोगों के भीतर की असाधारणता को उजागर करना ही मुनरो को महान रचनाकारों की पंक्ति में ला खड़ा करता है। 2009 में उन्हें मैनबुकर पुरस्कार से नवाजा गया था। उन्हें नोबेल देकर एक तरह से विश्व की स्त्री रचनाशीलता के प्रति भी सम्मान व्यक्त किया गया है।

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