दुनिया में अमरीकी वर्चस्व का अंत
टोरंटो , अमरीका के एक प्रसिद्ध भू-राजनीतिज्ञ और भूतपूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बीग्न्येव ब्रेजि़ंस्की ने, जिन्हें एक राजनीतिक शिकरा भी माना जाता है, कहा है कि अब दुनिया में अमरीकी वर्चस्व का अंत हो गया है। लेकिन अमरीका ने वैश्विक नेता बने रहने के लिए अपना संघर्ष जारी रखा हुआ है हालांकि, उसने अपने इस संघर्ष के लिए बिल्कुल नए तरीके अपना लिए हैं।
अभी हाल ही में वाशिंगटन में स्थित जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में बीग्न्येव ब्रेजि़ंस्की पर लिखी गई एक पुस्तक के विमोचन-समारोह का आयोजन किया गया था। यह पुस्तक बीग्न्येव ब्रेजि़ंस्की के पुराने सहयोगियों और छात्रों द्वारा लिखी गई है। इस पुस्तक विमोचन समारोह में बोलते हुए बीग्न्येव ब्रेजि़ंस्की ने पूरे विश्व में अमरीकी वर्चस्व को स्थापित करने के अपने कार्यों पर ही सवाल खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि शीतयुद्ध के बाद के 13 वर्षों में बने रहे अमरीकी प्रभुत्व का अब अंत हो गया है। और अब सबसे अधिक संभावना इस बात की है कि निकट भविष्य में इस प्रभुत्व को बहाल करना असंभव होगा।
रूस की विदेश और रक्षा नीति परिषद के उप-निदेशक दिमित्री सूस्लोव ने रेडियो रूस को बताया है कि दुनिया में अमरीकी वर्चस्व का अंत होने के दो मुख्य कारण हैं। उनके अनुसार, पहला कारण यह है कि पिछले दशक के मध्य में पूरी दुनिया में राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य प्रभाव बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर एक होढ़ शुरू हो गई थी। तेजग़ति से शुरू हुई यह होढ़ दुनिया में नए शक्ति-केंद्रों के उभरने और पुराने केंद्रों के पुनरुत्थान का ही एक परिणाम था। इस संबंध में दिमित्री सूस्लोव ने कहा-
चीन, भारत, ब्राज़ील, तुर्की और रूस जैसे देशों में बहुत तेजग़ति से चहुंमुखी विकास की शुरूआत हुई। तदनुसार, उनकी क्षमताएं भी बढऩी शुरू हो गईं। सैन्य क्षेत्र में भी वे बहुत आगे बढऩे लगे। साथ-साथ दुनिया में उनका राजनीतिक और राजनयिक प्रभाव भी सुदृढ़ होने लगा। दूसरा मुख्य कारण यह है कि इस समय के दौरान अमरीका ने कई ग़लतियां की हैं। उसने 1990 के दशक में क्लिंटन युग के मुलायम वर्चस्व को कठोर प्रभुत्व में बदलने की कोशिश की। इस प्रकार उसने ख़ुद ही अपने आधिपत्य के अंत की प्रक्रिया को तीव्र करने में सहायता की है। बुश प्रशासन ने कुछ ऐसे लक्ष्य निर्धारित कर लिए थे जिन्हें पा लेना कोई आसान काम नहीं था। बुश प्रशासन की इस नीति के कारण दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अमरीका के खिलाफ़ हो गया। अमरीका की प्रतिष्ठा पर प्रहार होने लगे। पूरी दुनिया में उसकी स्थिति खऱाब होने लगी। वास्तव में, अमरीकी वर्चस्व का पतन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश जुनियर के कार्यकाल में ही शुरू हो गया था।
रूस में स्थित अमरीका-कैनेडा संस्थान के उप-निदेशक वालेरी गर्बूज़ोव का रहना है कि द्वितीय विश्व युद्ध का अंत होने के बाद कई दशकों के दौरान कुछ देशों या देशों के समूहों द्वारा अमरीकी वर्चस्व को चुनौती दी जाती रही है। अमरीका के मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक बहुध्रुवीय विश्व के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया है और कहा है कि अब विश्व राजनीति के अखाड़े में अन्य खिलाडिय़ों के हितों का खय़ाल रखना भी आवश्यक है। इससे पता चलता है कि अमरीका विश्व में घटनेवाली घटनाओं को सही दृष्टि से देखने-समझने की आवश्यकता को महसूस करने लगा है।
अरब वसंत की घटनाओं ने भी यह दर्शाया है कि अमरीका का राजनीतिक प्रभाव असीम नहीं है और अब वाशिंगटन दुनिया में घटनेवाली घटनाओं की दिशा को अपनी इछा के अनुसार बदलने में सक्षम नहीं रहा है।
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