पटाखे, मिठाई और दीपों वाली दीपावली

images (6)दीपावली नजदीक है। त्योहारों के इस मौसम में भला कौन तुम्हें मस्ती करने से रोक सकता है। हम भी यही कहेंगे कि दोस्तों के साथ जमकर मजे करो। पर ये याद रखना कि जो भी करो एक हद में करना, अगर यादा मस्ती की, तो भुगतना भी पड़ सकता है तुम्हें। कैसे, बता रहे हैं पंकज घिल्डियाल
रविवार को दीपावली है। कल धनतेरस से तुम्हारी 3 दिन की छुट्टी। ये दिन हैं मस्ती करने के, खूब खेलने के, पकवान खाने के और नए-नए कपड़े पहनने के। तुम सभी को पता ही होगा कि दिवाली के दिन भगवान श्रीराम, बुराई के प्रतीक रावण को मारकर अयोध्या लौटे थे। उनके आने की खुशी में राय के लोगों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं, तभी से इस दिन को दीपावली के नाम से त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इसलिए इस दिन तुम्हें भी सारे अछे काम करने हैं। एक भी काम ऐसा न हो, जिससे मम्मी-पापा को या दादू-दादी को बुरा लगे। हर साल की तरह इस साल भी तुम जमकर मस्ती करो, पर हां, यह याद रखना कि किसी भी काम को हद से यादा करोगे तो नुकसान भी भुगतना होगा।

बाहर खूब खेलो, पर ध्यान से
फायदे
बाहर ग्रुप में खेलोगे तो तुम में टीम भावना आएगी। विश्वास करने, निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित होगी।
उछल-कूद से तुम व्यायाम कर खुद को फिट भी करते हो।
खेलने से तुम ताजगी महसूस करते हो। यह ताजगी तुम्हारे लिए पढ़ाई में रुचि लेने में मददगार हो सकती है।
हार-जीत से तुम यह सीखते हो कि जीवन में उतार-चढ़ाव चलते रहते हैं। हार जहां कुछ सुधारकर आगे के लिए तैयार होना सिखाती है, वहीं जीत से लगातार बेहतर करने का उत्साह बना रहता है।
खेलने से तुम समाज से जुड़ते हो, उनके सुख-दुख को महसूस करते हो और मदद के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाने का पाठ भी पढ़ते हो।

नुकसान
सावधानी नहीं बरती तो तुम्हें चोटें आ सकती हैं।
खेलते हुए बात-बात पर झगडऩे की आदत तुम्हारा स्वभाव गुस्सैला बना सकती है।
अधिक देर तक खेलने की आदत से तुम समय पर खान-पान व नींद से भी दूर हो सकते हो।
कभी-कभी खेल को खेल की तरह न लेने से तुम जरूरत से यादा मानसिक दबाव भी महसूस करोगे।

सजाओ घर, पर सावधानी बरतकर
फायदे
जब तुम घर की सजावट के लिए सोचना शुरू करोगे, उसके लिए जरूरी सामान जुटाना शुरू करोगे तो अपना बढ़ा हुआ आत्मविश्वास दूसरों के अलावा खुद महसूस करोगे।
दिवाली जैसे मौके पर तुम्हारे करीबी घर पर आएंगे और तुम्हारी की गई सजावट की तारीफ करेंगे तो तुम्हें अछा लगेगा। तुम खुश हो जाओगे।
बाजार की बनी बनावटी चीजों से घर सजाना और खुद की कलाकारी से घर को साजना, इसमें बहुत बड़ा अंतर होता है। इससे तुम क्रिएटिव भी बनते हो।
तुम्हारे पापा तुम्हारे कहे अनुसार सामान लाकर देंगे, मम्मी तुम्हारे कहे अनुसार तुम्हारा साथ देंगी, छोटे-बड़े भाई-बहन जब तुम्हारे निर्देशों का पालन कर रहे होंगे तो तुम में एक नेतृत्व भावना भी विकसित हो रही होगी।
घर में किसी भी कार्य में योगदान कैसे दिया जाता है, यह भी तुम्हें सीखने को मिलेगा।

नुकसान
कई बार ठीक-ठीक अनुमान न होने से यह कार्य काफी खर्चीला हो जाता है।
चीजों का इस्तेमाल सही प्रकार से न करने के कारण बहुत सी चीजें व्यर्थ हो जाती हैं।
अत्यधिक थकान तुम्हें बीमार भी कर सकती है।
इन दिनों बिजली की लडिम्यां आदि की तारें कहीं-कहीं खुली रह सकती हैं, सावधानी नहीं बरती गई तो करंट आदि लगने का खतरा हो सकता है।

पटाखों संग मस्ती, पर प्रदूषण का रखना ध्यान
फायदे
ईकोफ्रेंडली पटाखे वातारण में प्रदूषण को नहीं बढ़ाते।
धूम-धड़ाम करने वाले पटाखे मस्ती को दोगुना कर देते हैं।
रोशनी के इस त्योहार में आकाश में रंगबिरंगी रोशनी हममें उत्साह का संचार करती है।
नए पटाखे नया रोमांच।

नुकसान
सही तरीके से इस्तेमाल न करने पर पटाखे शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
तुम्हारे शहर सहित देश में प्रदूषण का स्तर ऊंचे स्तर पर होता है।
दमा के रोगी व दादू-दादी के उम्र के लोगों को इनसे खासतौर से परेशानी होती है।
ध्वनि प्रदूषण से सुनने की क्षमता पर भी बुरा असर पड़ता है।
कई घरों व फैक्टरियों में अकसर इनके कारण दिवाली की रात आग भी लग जाती है।

मिठाइयां खाओ, पर पेट संभालकर
फायदे
इन दिनों घर में अलग-अलग तरह की मिठाइयां चखने का मौका मिलता है।
मिठाइयां लेकर दोस्तों व रिश्तेदारों के घरों में जाने का भी अलग फन होता है।

नुकसान
यादा मिठाइयां हमें बीमार भी कर सकती हैं।
अगर तुम्हारे दादू या दादी डायबिटीज के रोगी हैं तो उनका शुगर लेवल बढ़ सकता है।

सजो, पर सहूलियत का रखना ध्यान
फायदे

ट्रेडिशनल लुक में बिलकुल अलग लग सकते हो।
अछे दिखते हो तो आत्मविश्वास बढ़ता है।

नुकसान
कॉटन के कपड़ों का चुनाव न करने से चिंगारी की चपेट में आने की संभावना अधिक रहती है।
कपड़े फिट न हों तो तुम सही से मजे नहीं कर पाओगे।

पेपर लैंप बनाना है आसान
दीपावली पर पुराने जमाने से चली आ रही कुछ ऐसी प्रथाएं हैं, वो आज भी उतना ही महत्व रखती हैं, जैसे लक्ष्मी-गणेश पूजा, द्वार पर बंदनवार लगाना, लडियों की माला सजाना, रंगोली बनाना और रंग-बिरंगे लैम्पों की सजावट। ये सब कई सालों से हमारी परंपरा का हिस्सा रहे हैं। कहते हैं कि इन सबसे लक्ष्मी खुश होती हैं और दिवाली वाले दिन तुम्हारे घर आती हैं। आजकल लैम्पों के विभिन्न आकार हो गए हैं। लेकिन हम तुम्हें बता रहे हैं, एरोप्लेन के आकार का लैम्प कैसे बना सकते हो।

क्या चाहिए- बांस की कमानियां, बांधने के लिए धागे, रंगीन कागज, चिपकाने के लिए आटे की लोई।

ऐसे बनाओ- पहले एरोप्लेन का ढांचा तैयार कर लो। बांस की कमानियां इसमें बांध दो। अब इसको रंगीन कागज से कवर कर दो। जैसे दोनों साइड वाली पंखियों को ब्लू पेपर से कवर करो। एरोप्लेन की बॉडी को पिंक से कवर करो। बॉडी को कवर करते वक्त ऊपर की ओर दो छोटी-छोटी कमानियां को खुला छोड़ देना। एरोप्लेन कागज से बिलकुल कवर हो जाना चाहिए। कहीं से भी कमानियां दिखें नहीं। छोटी-छोटी इन्हीं दो कमानियों में धागे बांधकर किसी ऊंचे स्थान पर टांगना है। टांगने से पहले खुले हिस्से में एक होल्डर में बल्ब लगाकर कमानी में फिक्स कर देना।

पेट्स को बचाकर रखना
जब तुम आतिशबाजी का मजा ले रहे होते हो, उस समय तुम्हारे घर के पालतू जानवर, जैसे कुत्ते, बिल्ली डर से सहमे रहते हैं। हम जानते हैं कि तुम उन्हें बहुत प्यार करते हो, उन्हें तुम तकलीफ में नहीं देख सकते हो, इसलिए दीपावली के दिन उनके नजदीक कोई भी धमाका मत करना और उस दिन उन्हें कहीं ऐसे स्थान में बांध कर रखना, जहां शोर न पहुंच रहा हो।

इन बातों का रखना ध्यान
बड़ों की निगरानी में ही पटाखों का इस्तेमाल करो, ताकि किसी भी स्थिति से निपटने के लिए वे तुम्हारे साथ रहें।
पटाखों के लिए किसी खुले स्थान का प्रयोग करो, आसपास ऐसी वस्तुओं को तुरंत हटा दो, जिनसे आग लगने का खतरा हो।
उन्हीं पटाखों की खरीदरी करो, जो लाइसेंस युक्त विश्वसनीय हों।
बीच सडक़ पर पटाखों का इस्तेमाल मत करो। इससे आने-जाने वालों को चोट आ सकती है।
पटाखे जलाते हुए उससे उचित दूरी बनाए रखो। कभी भी अपने चेहरे को उसके करीब में मत लाओ।
दिवाली के दिन फर्स्ट-एड बॉक्स तुम्हारे करीब होना चाहिए।

सुबह नहाने के भी हैं फायदे
दिवाली पर मम्मी तुम्हें सुबह उठकर नहाने को बोलती हैं तो तुम्हें आलस लगता है, लेकिन यह तुम्हारी सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। इस मौसम में सुबह के समय शरीर पर तेल लगाकर नहाने से शरीर से टॉक्सिन निकल जाते हैं और तुम काफी हेल्दी रहते हो। हमारी मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार दीपावली के दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। तुमने देखा होगा कि दिवाली के दिन तुम्हारे मम्मी-पापा, दादू-दादी व अन्य परिवार के सदस्य लक्ष्मी-पूजा करते हैं, इसलिए इस बार देखना कि कैसे पूजा की तैयारियां की गईं। अगर संभव हो तो उसमें सहयोग करना। पूजा के दौरान मंदिर में ही बैठना।

 

भीतरी अंधकार को मिटाने का पर्व है दीपावली
आनंदोत्सव का प्रतीक वात्सायन का शंृगारोत्सव-दीपावली, योति से योति जलाने का पर्व-दीपावली।
भीतरी अंधकार को मिटाने का पर्व है दीपावली- ललित गर्ग – दीपावली हम हर वर्ष मनाते हैं। पर्व एक पर्याय अनेक। धन की देवी महालक्ष्मी की आराधना का पर्व-दीपावली, ऋद्धि-सिद्धि, श्री और समृद्धि का पर्व-दीपावली, आनंदोत्सव का प्रतीक वात्सायन का शंृगारोत्सव-दीपावली, योति से योति जलाने का पर्व-दीपावली। दीपावली के इस पर्व का प्रत्येक भारतीय उल्लास एवं उमंग से स्वागत करता है। यह पर्व हमारी सभ्यता एवं संस्कृति की गौरव गाथा है। प्रत्येक भारतीय की रग-रग में यह पर्व रच-बस गया हैं।
दीपावली एक लौकिक पर्व है। फिर भी यह केवल बाहरी अंधकार को ही नहीं, बल्कि भीतरी अंधकार को मिटाने का पर्व भी बने। हम भीतर में धर्म का दीप जलाकर मोह और मूर्छा के अंधकार को दूर कर सकते हैं। दीपावली के मौके पर सभी आमतौर से अपने घरों की साफ-सफाई, साज-सजा और उसे संवारने-निखारने का प्रयास करते हैं। उसी प्रकार अगर भीतर चेतना के आँगन पर जमे कर्म के कचरे को बुहारकर साफ किया जाए, उसे संयम से सजाने-संवारने का प्रयास किया जाए और उसमें आत्मा रूपी दीपक की अखंड योति को प्रवलित कर दिया जाए तो मनुष्य शाश्वत सुख, शांति एवं आनंद को प्राप्त हो सकता है।
प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक अखंड योति जल रही है। उसकी लौ कभी-कभार मद्धिम जरूर हो जाती है, लेकिन बुझती नहीं है। उसका प्रकाश शाश्वत प्रकाश है। वह स्वयं में बहुत अधिक देदीप्यमान एवं प्रभामय है। इसी संदर्भ में महात्मा कबीरदासजी ने कहा था-‘बाहर से तो कुछ न दीसे, भीतर जल रही जोतÓ।
जो महापुरुष उस भीतरी योति तक पहुँच गए, वे स्वयं योतिर्मय बन गए। जो अपने भीतरी आलोक से आलोकित हो गए, वे सबके लिए आलोकमय बन गए। जिन्होंने अपनी भीतरी शक्तियों के स्रोत को जगाया, वे अनंत शक्तियों के स्रोत बन गए और जिन्होंने अपने भीतर की दीवाली को मनाया, लोगों ने उनके उपलक्ष में दीवाली का पर्व मनाना प्रारंभ कर दिया।
भगवान महावीर ने दीपावली की रात जो उपदेश दिया उसे हम प्रकाश पर्व का श्रेष्ठ संदेश मान सकते हैं। भगवान महावीर की यह शिक्षा मानव मात्र के आंतरिक जगत को आलोकित करने वाली है। तथागत बुद्ध की अमृत वाणी ‘अप्पदीवो भवÓ अर्थात ‘आत्मा के लिए दीपक बनÓ वह भी इसी भावना को पुष्ट कर रही है। इतिहासकार कहते हैं कि जिस दिन ज्ञान की योति लेकर नचिकेता यमलोक से मृत्युलोक में अवतरित हुए वह दिन भी दीपावली का ही दिन था।
यद्यपि लोक मानस में दीपावली एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में अपनी व्यापकता सिद्ध कर चुका है। फिर भी यह तो मानना ही होगा कि जिन ऐतिहासिक महापुरुषों के घटना प्रसंगों से इस पर्व की महत्ता जुड़ी है, वे अध्यात्म जगत के शिखर पुरुष थे। इस दृष्टि से दीपावली पर्व लौकिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का अनूठा पर्व है।
यह बात सच है कि मनुष्य का रूझान हमेशा प्रकाश की ओर रहा है। अंधकार को उसने कभी न चाहा न कभी माँगा। ‘तमसो मा योतिगर्मयÓ भक्त की अंतर भावना अथवा प्रार्थना का यह स्वर भी इसका पुष्ट प्रमाण है। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल इस प्रशस्त कामना की पूर्णता हेतु मनुष्य ने खोज शुरू की। उसने सोचा कि वह कौन-सा दीप है जो मंजिल तक जाने वाले पथ को आलोकित कर सकता है। अंधकार से घिरा हुआ आदमी दिशाहीन होकर चाहे जितनी गति करें, सार्थक नहीं हुआ करती। आचरण से पहले ज्ञान को, चारित्र पालन से पूर्व सम्यक्त्व को आवश्यक माना है। ज्ञान जीवन में प्रकाश करने वाला होता है। शास्त्र में भी कहा गया-‘नाणं पयासयरंÓ अर्थात ज्ञान प्रकाशकर है।
हमारे भीतर अज्ञान का तमस छाया हुआ है। वह ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता है। ज्ञान दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाश दीप है। जब ज्ञान का दीप जलता है तब भीतर और बाहर दोनों आलोकित हो जाते हैं। अंधकार का साम्राय स्वत: समाप्त हो जाता है। ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता केवल भीतर के अंधकार मोह-मूर्छा को मिटाने के लिए ही नहीं, अपितु लोभ और आसक्ति के परिणामस्वरूप खड़ी हुई पर्यावरण प्रदूषण और अनैतिकता जैसी बाहरी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी जरूरी है।
समाज में उजालों की जरूरत हर दौर में रही है। उजाला कई तरह का होता है- अपने भीतर का उजाला, भौतिक दुनिया का उजाला और ईश्वर प्रदत्त आत्मिक गुणों का उजाला। जिस मनुष्य ने अनंत आकाश का पता लगाया है, अपरिमित भूमि की खोज की है और महासागरों की गहराइयों में डूबकियां लगायी हैं। वह पाताल तक पहुंचा है। उसकी पहुंच वास्तव में असीम है। लेकिन इन उपलब्धियों के बावजूद उसने उजालों की पहचान की क्षमता को खोया है। कहीं-न-कहीं उसने जिसे उजाला समझा है, संभवत वह उजाला है ही नहीं। यही कारण है कि अपनी जागतिक सुख-सुविधाओं के लिए उसने जो विभिन्न आविष्कार किए हैं, वे वास्तविक सुख नहीं दे पा रहे हैं । उसने संपूर्ण प्रकृति को वैज्ञानिक आंख से आंका है, उसने अपने संपूर्ण जीवन को सुविधावादी नजरिये से देखा है, और ऐसा करते हुए वह अपनी जड़ों से, अपनी नींवों से दूर भी हुआ है। यही कारण है कि मनुष्य ने अपने आस-पास खड़े, अपने ही समान, अपने साधर्मी बंधु-बांधव को नहीं पहचाना है। जबतक मनुष्य मनुष्य को पहचान नहीं लेता तबतक उसकी सारी पहचान और सारे प्रयत्न निरर्थक ही हैं।
समाज में उजालों की जरूरत आज यादा महसूस की जा रही है, क्योंकि वास्तविक उजाला जीवन को खूबसूरती प्रदान करता है, वस्तुओं को आकार देता है, शिल्प देता है, रौनक एवं रंगत प्रदान करता है। उजाला इंसान के भीतर ज्ञान का संचार करता है और अंधकार को खत्म कर जीवन को सही मार्ग दिखाता है। नकारात्मक दृष्टिकोण दूर कर सकारात्मक दृष्टि और सोच प्रदान करता है।
खुली आंखों से सही सही देख न पाएं तो समझना चाहिए कि यह अंधेरा बाहर नहीं, हमारे भीतर ही कहीं घुसपैठ किये बैठा है और इसीलिये हम अंधेरों का ही रोना रोते हैं। जबकि जीवन में उजालों की कमी नहीं हैं । महावीर का त्याग, राम का राजवैभव छोड़ वनवासी बनना और गांधी का अहिंसक जीवन -ये उजालों के प्रतीक हैं जो भटकाव से बचाते रहे हैं।
महान दार्शनिक संत आचार्य श्री महाप्रज्ञ लिखते हैं-हमें यदि धर्म को, अंदर को, प्रकाश को समझना है और वास्तव में धर्म करना है तो सबसे पहले इंद्रियों को बंद करना सीखना होगा। आँखें बंद, कान बंद और मुँह बंद-ये सब बंद हो जाएँगे तो फिर नाटक या टी0वी0 देखने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। नाटक देखने की जरूरत उन्हें पड़ती है, जो अंतर्दर्शन में नहीं जाते। यदि आप केवल आधा घंटा के लिए सारी इंद्रियों को विश्राम देकर बिलकुल स्थिर और एकाग्र होकर अपने भीतर झाँकना शुरू कर दें और इसका नियमित अभ्यास करें तो एक दिन आपको कोई ऐसी झलक मिल जाएगी कि आप रोमांचित हो जाएँगे। आप देखेंगे-भीतर का जगत कितना विशाल है, कितना आनंदमय और प्रकाशमय है। वहाँ कोई अंधकार नहीं है, कोई समस्या नहीं है। आपको एक दिव्य प्रकाश मिलेगा।
मोह का अंधकार भगाने के लिए धर्म का दीप जलाना होगा। जहाँ धर्म का सूर्य उदित हो गया, वहाँ का अंधकार टिक नहीं सकता। दीपावली जीवन में वास्तविक उजालों से परिचित कराने का अवसर है।

दीपावली की रात देवी लक्ष्मी की पूजा क्यों?
भारतीय कालगणना के अनुसार 14 मनुओं का समय बीतने और प्रलय होने के पश्चात् पुनर्निर्माण तथा नई सृष्टि का आरंभ दीपावली के दिन ही हुआ माना जाता है। नवारंभ के कारण कार्तिक अमावस्या को कालरात्रि भी कहा जाने लगा है।
इस दिन सूर्य अपनी सातवीं अर्थात् तुला राशि में प्रवेश करता है तथा उत्तरार्द्ध का आरंभ होता है। अत: कार्तिक मास की पहली अमावस्या ही नई शुरुआत और नव निर्माण का समय होता है।
जीविद्यार्णव तंत्र में कालरात्रि को शक्ति रात्रि की संज्ञा दी गई है। कालरात्रि को शत्रु विनाशक माना गया है, साथ ही शुभत्व का प्रतीक, सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है।
एक मान्यता के अनुसार यह मां लक्ष्मी का जन्म दिवस का भी है। कुछ स्थानों पर कोजागरा को देवी लक्ष्मी का जन्म दिवस माना जाता है।

दीपावली लक्ष्मी पूजन मुहुर्त, छठ पूजा
दीपावली के पूजन पर इस बार कुछ खास बातें ध्यान में रखनी आवश्यक हैं। योतिषाचार्यो के अनुसार दीपदान, महालक्ष्मी पूजन, कुबेर पूजन तथा गृह स्थलों पर दीप प्रवलित करने के लिए समय का ध्यान रखना आवश्यक है। योतिषाचार्य दीप्ति श्रीकुंज ने बताया कि तीन नवम्बर रविवार को लक्ष्मी पूजन का शाम पांच बजकर 35 मिनट से लेकर 8 बजकर 14 मिनट के बीच शुभ रहेगा। इस काल को प्रदोषकाल कहेंगे। सायं छह बजकर 15 मिनट से रात्रि 8 बजकर नौ मिनट तक वृष लग्न है इसका विशेष महत्व है।

जानिए, क्या है मां लक्ष्मी की महिमा व इसकी पूजन विधि
इस समय पूजन करने से घर में लक्ष्मी स्थाई रूप से निवास करती हैं। प्रदोषकाल में व्याप्त वृष लग्न स्वाती नक्षत्र, तुला के सूर्य-चंद्र होने से अत्यंत शुभकाल रहेगा। क्योंकि शुक्र तुला राशि का स्वामी है तथा शुक्र ही लक्ष्मी कारक गृह है।
इस वर्ष अमावस सायं 6 बजकर 20 मिनट तक ही होने से यथासंभव प्रदोषकाल में ही पूजन प्रारंभ कर लेना चाहिए। निशीथ एवं महानिशीथ तंत्र यांत्रिक क्रियाओं के लिए उपयुक्त रहेंगे। योतिषाचार्य दीप्ति श्रीकुंज ने कहा कि दीपावली से लाभ प्राप्त करने के लिए इस योग में दीपदान, श्रीमहालक्ष्मी पूजन, कुबेर पूजन, बही-खाता पूजन, धर्म एवं गृह स्थलों पर दीप प्रवलित करना।
ब्राह्मणों व आश्रितों को भेंट, मिष्ठान्नदि बांटना शुभ रहेगा। 8 बजकर 54 मिनट से लेकर रात्रि 10 बजकर 33 मिनट तक चर चौघडिय़ां भी शुभ रहेंगी।

 

 

 

 

 

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