उत्तरी ध्रुव क्षेत्र का अब तेज़ी से विकास होगा

टोरंटो ,रूस की सरकार का मानना है कि उत्तरी ध्रुव के क्षेत्र में टकराव पैदा होने का संकट बढ़ता जा रहा है। इस इलाके में रूस के भूराजनीतिक और आर्थिक हितों की सुरक्षा के लिए मास्को रूस के सैन्य-ढाँचे में सुधार करके रूसी सेना को सैन्य-आर्थिक रूप से और तकनीक की दृष्टि से ताक़तवर बनाना चाहता है। सन् 2020 तक इस इलाके के विकास का जो राजकीय कार्यक्रम तैयार किया जा रहा है, उसमें भी इन सब बातों का बड़ा खय़ाल रखा जा रहा है।
उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र या आर्कटिक क्षेत्र का भूराजनीतिक और आर्थिक महत्त्व बढ़ता जा रहा है। इस इलाके में खनिज-पदार्थों के बड़े भण्डार उपस्थित हैं तथा इस इलाके का उपयोग जहाजऱानी के लिए भी किया जा सकता है। इसके अलावा यह इलाका सैन्य-रणनीतिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उत्तरी ध्रुव क्षेत्र के आसपास बसे देशों जैसे रूस, अमरीका, कनाडा, नॉर्वे और डेनमार्क के विकास में उत्तरी ध्रुव का यह इलाका भविष्य में बड़ी भूमिका निभाएगा। इन सभी देशों के नेताओं का कहना है कि आर्कटिक क्षेत्र के बारे में बातचीत की जानी चाहिए और यहाँ पर सभी देशों को आपस में आर्थिक और वैज्ञानिक सहयोग करना चाहिए।
रूस की सरकार ने इस इलाके के विकास का जो राजकीय कार्यक्रम तैयार किया है उस पर अमल करने के लिए कऱीब 600 अरब रुबल खर्च किए जाएँगे। इस सिलसिले में तैयार किए गए दस्तावेज़ों में बताया गया है कि इतना बड़ा निवेश देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखने, उसकी अन्तरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा में वृद्धि करने और आर्कटिक के रूसी क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास में बड़ी भूमिका निभाएगा। रूस की सरकार इस इलाके में इतनी गहरी रुचि क्यों दिखा रही है, रेडियो रूस से इसकी चर्चा करते हुए रूस के सामाजिक-राजनीतिक अनुसन्धान केन्द्र के निदेशक व्लदीमिर येव्सेयेफ़ ने बताया :
रूस की धरती पर खनिज-पदार्थों के दोहन के साथ-साथ रूस अपने समुद्री तटवर्ती क्षेत्र में भी खनिज-पदार्थों का दोहन शुरू करना चाहता है। बात सबसे पहले कुछ बड़े गैस-भण्डारों में कुएँ बनाने की हो रही है। इसके अलावा उत्तरी ध्रुव क्षेत्र की जलवायु गर्म होती जा रही है, इसलिए उत्तरी ध्रुवीय इलाके के समुद्र का इस्तेमाल अब जहाजऱानी के लिए भी किया जा सकता है। इस इलाके में समुद्री डकैतों का कोई खतरा नहीं है और एशिया से यूरोप तक मालों का परिवहन करने के लिए यह रास्ता बहुत छोटा भी है, इसलिए इस उत्तरी समुद्री रास्ते का इस्तेमाल करने में दुनिया की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। इस रास्ते का एक बड़ा हिस्सा रूस के समुद्री इलाके से होकर गुजऱता है, इसलिए रूस इस रास्ते का विकास करने में गहरी रुचि ले रहा है।
आर्कटिक क्षेत्र का विशाल पैमाने पर उपयोग करके रूस की सरकार सन् 2020 तक रूस के सकल घरेलू उत्पाद में इस इलाके के योग को 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 14 प्रतिशत तक करने की आशा रखती है। यानी उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र का योगदान रूस की अर्थव्यवस्था में बढक़र कऱीब-कऱीब तीन गुना हो जाएगा। वहाँ नवीनतम यन्त्र-उपकरणों का उपयोग भी काफ़ी बढ़ जाएगा और श्रम-शक्ति का इस्तेमाल भी बढ़ जाएगा। लेकिन कुछ अयाचित परिस्थितियाँ इसमें बाधा भी पैदा कर सकती हैं। इनमें उत्तरी ध्रुव क्षेत्र में उपस्थित दूसरे देशों की तरफ़ से डाले जाने वाले अड़ँगे या सम्भावित संकट भी शामिल हैं। हालाँकि इस बात की सम्भावना कम ही है, लेकिन मास्को सारी परिस्थितियों का खय़ाल रखकर ही क़दम आगे बढ़ाना चाहता है। चिन्ता करने के वास्तव में कुछ कारण भी हैं। रूस की भूराजनीतिक संकट अध्ययन अकादमी के प्रथम उपाध्यक्ष कंस्तान्तिन सिवकोफ़ ने कहा :
इस इलाके पर नियन्त्रण जमाने के लिए दूसरे देशों के दावे बढ़ते ही चले जाएँगे। जऱा अमरीका के उस कथन को याद करें कि उत्तरी समुद्री मार्ग अन्तरराष्ट्रीय परिवहन मार्ग है और उसको इस्तेमाल करने के अधिकार का दावा सिफऱ् रूस को ही नहीं करना चाहिए। इसलिए मास्को को इस इलाके में अपने हितों की सुरक्षा करनी पड़ेगी और इसके लिए राजनीतिक व कूटनीतिक रास्ते का नहीं, बल्कि सैन्य-रणनीतिक क़दमों का इस्तेमाल करना होगा। कूटनीति भी तभी प्रभावशाली होती है, जब कोई देश आर्थिक और सैनिक दृष्टि से सुदृढ़ हो।
भावी संकटों से बचने के लिए रूस की सरकार ने अपने समुद्री क्षेत्र पर और उसके ऊपर आकाश में यानी वायु क्षेत्र पर पूरा नियन्त्रण स्थापित करने का निर्णय किया है तथा इस इलाके में रणनीतिक सुरक्षा का पूरा-पूरा इन्तज़ाम करने का निर्णय लिया है। यदि यहाँ सैन्य-संकट पैदा होगा तो उस हमले को और युद्ध को फिर रूस के हितों को नुक़सान पहुँचाकर ही रोकना सम्भव होगा। इसलिए उत्तरी-ध्रुव के क्षेत्र में रूस के हितों की सुरक्षा के लिए आज भी गम्भीर क़दम उठाए जा रहे हैं क्योंकि निकट भविष्य में यह इलाका औद्योगिक विकास तथा रूस के आर्थिक और ढाँचागत विकास का प्रतीक बन सकता है। रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन भी कई बार इस बात को कहते रहे हैं।

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